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कश्मीर वादी : खौफ में है पुलिस

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08:14 AM Sep 05, 2018 IST | Desk Team

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कश्मीर घाटी में सुरक्षा बल लगातार आतंकवादियों को ढेर कर रहे हैं, उनकी ऑपरेशन में जम्मू-कश्मीर पुलिस वाले मदद कर रहे हैं लेकिन आतंकवादियों ने अब घाटी में पुलिसकर्मियों काे ही निशाना बनाना शुरू कर दिया है। इस वर्ष 31 पुलिसकर्मियों की हत्या की जा चुकी है। जुलाई 2016 में बुरहान वानी की मौत के बाद भड़की हिंसा के बाद स्थिति अब तक सामान्य नहीं हुई है। इसके बाद पुलिसकर्मी, खासकर स्थानीय मुस्लिम इस हिंसा का शिकार हुए हैं। आतंकवादी कश्मीरी युवक ही हैं, आतंक का घिनौना स्वरूप इससे अधिक क्या हो सकता है कि कश्मीरी ही कश्मीरियों की हत्या कर रहे हैं। पिछले दिनों एक आतंकी के पिता को गिरफ्तार करने पर आतंकियों ने पुलिस वालों के परिजनों को अगवा कर लिया था आैर धमकी दी थी कि कान के बदले कान, मकान के बदले मकान आैर परिवार के बदले परिवार। जून 2017 में सादे कपड़ों में मौजूद अयूब नाम के पुलिस अधिकारी को श्रीनगर में भीड़ ने पीट-पीटकर मार दिया था। जुलाई 2018 में कांस्टेबल मोहम्मद सलीम की हत्या कर दी गई थी। 22 अगस्त काे जब घाटी में ईद मनाई जा रही थी तो 34 वर्ष के पुलिस कांस्टेबल फयाज अहमद शाह की अपनी तीन साल की बेटी सुहाना के साथ ईदगाह से लौटते समय गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उसी शाम पुलवामा में स्पेशल पुलिस अफसर मोहम्मद याकूब शाह को गोलियों से छलनी कर दिया गया। इस हत्या को 12 घण्टे भी नहीं हुए थे कि अज्ञात बंदूकधारियों ने गांव में छुट्टी पर आए पुलिस इंस्पैक्टर मोहम्मद अशरफ डार की हत्या कर दी।

इन हत्याओं से पुलिसकर्मी खौफ में हैं और आतंकियों की धमकी के बाद पुलिस की नौकरी छोड़ रहे हैं। जान के खौफ के चलते बहुत से पुलिसकर्मी ऐसे हैं जिनका घर चलाने का जरिया केवल तनख्वाह ही है, वे भी नौकरी छोड़ने की सोच रहे हैं। कुछ घर-बार छोड़कर राज्य के दूसरे इलाकों में बस गए हैं। पुलिस वालों काे छुट्टी पर अपने घर नहीं जाने की हिदायत दी गई है। दक्षिण कश्मीर में तैनात पुलिसकर्मियों को तो पिछले डेढ़ माह से घर जाने की इजाजत नहीं दी गई। पहले पुलिस वालों के प​िरवार वालों को आतंकवादी कुछ नहीं कहते थे लेकिन अब उनके घरों में जाकर धमकाया जाता है, उन्हें नौकरी छोड़ने की चेतावनी दी जाती है। पुलिस में एक एसपीओ की तनख्वाह मुश्किल से 5 हजार भी नहीं, जो एसपीओ आतंकवाद के सफाये में सहयोग दे रहे हैं उनका वेतन 6 हजार रुपए होता है। ऑपरेशन में हिस्सा लें तो आतंकवादियों के निशाने पर आ जाते हैं। उनके आैर उनके प​िरवार वालों के लिए हालात न आर्थिक तौर पर अच्छे हैं, न ही सुरक्षा की दृष्टि से। इस स्थिति में अन्दाजा लगाया जा सकता है कि जम्मू-कश्मीर में पुलिस की नौकरी करना कितना जोखिम भरा हो चुका है।

पुलिस ने आतंकियों के एक दर्जन परिजनों को पूछताछ के लिए हिरासत में रखा था जिनमें आतंकी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन ने कमांडर रियाज नाइक के पिता और 11वीं कक्षा में पढ़ने वाला एक छात्र भी था। ऐसी मीडिया रिपोर्ट सामने आई है कि राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने इस पर सख्त रवैया अपनाते हुए तुरन्त नाइक के पिता सहित स्थानीय आतंकियों के परिजनों को रिहा करने का निर्देश दिया। जब इन्हें रिहा किया गया तो आतंकियों ने भी पुलिस वालों के अगवा परिजनों को चेतावनी देकर छोड़ दिया। घाटी में हालात बेहद संवेदनशील हैं, ऐसे में किसी भी कार्रवाई से स्थितियां 1990 के दशक जैसी बन सकती हैं जब बड़ी तादाद में कश्मीरी पंडितों को घाटी छोड़कर देश के दूसरे हिस्सों में जाने को मजबूर होना पड़ा था। देशभर में पुलिस की शैली एक जैसी ही है। अपराधी पकड़ में नहीं आए तो पुलिस उनके घरवालों को उठाकर ले आती है। एक तरफ पुलिस वाले अपनी ड्यूटी करते हैं तो दूसरी तरफ आतंकियों की बंदूकें उन पर निशाना लगाती हैं।

घाटी के हालात देश के दूसरे राज्यों से भिन्न हैं। पुलिस आैर सुरक्षा बलों को बहुत धैर्य आैर संयम के साथ ऑपरेशन ऑल आउट चलाना होगा। पुलिस आैर सुरक्षा बलों की तरफ से तीखी प्रतिक्रिया से हालात काबू से बाहर हो सकते हैं। आतंकियों और पुलिसकर्मियों में संघर्ष छिड़ गया तो स्थानीय लोग पुलिस से दूर हो सकते हैं। नीचे के स्तर पर काम करने वाले स्थानीय पुलिसकर्मी आतंकियों के खिलाफ अभियान में काफी सहायक होेते हैं। अगर वे ही पुलिस से अलग हो गए तो फिर आतंकवादियों के खिलाफ अ​भियानों में सुरक्षा बलों को सफलता नहीं मिल सकती। राज्यपाल सत्यपाल मलिक के सामने सबसे बड़ी चुनौती कश्मीर में शांति कायम करने की तो है ही, साथ ही चुनौती इस बात की भी है कि पुलिसकर्मी और उनके प​िरवारों को आतंकी निशाना नहीं बना सकें। ऐसा नहीं है कि कश्मीरी युवा पुलिस बल में आना नहीं चाहते, वे अब भी पुलिस में भर्ती होना चाहते हैं। इसकी एक वजह हिंसा और कमजोर अर्थव्यवस्था के चलते नौकरियों की कमी होना भी है। आतंकवादियों से मानवता की उम्मीद नहीं की जा सकती। घाटी में मानवता तो कब की खत्म हो चुकी है। कश्मीरी युवाओं को ज्वाइनिंग लैटर चाहिए। कश्मीरी युवा और युवतियां हर क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहते हैं इसलिए ऐसी योजनाओं को मूर्त रूप देना होगा ताकि युवा भटकें नहीं। युवा पीढ़ी को अलगाववादी हुर्रियत नेताओं के जाल से बचाना होगा। फिलहाल तो घाटी में पुलिस बनकर रहना काफी मुश्किल भरा हो चुका है।

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