Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

कश्मीरी पंडित : मोहन भागवत का संदेश

जम्मू-कश्मीर में कई दशकों से जिंदगी सामान्य नहीं थी।

01:38 AM Apr 05, 2022 IST | Aditya Chopra

जम्मू-कश्मीर में कई दशकों से जिंदगी सामान्य नहीं थी।

जम्मू-कश्मीर में कई दशकों से जिंदगी सामान्य नहीं थी। एक तरफ खूबसूरत वादियां हैं तो दूसरी तरफ आतंकवाद। कश्मीर का अवाम जिंदगी तलाशता रहा। यहां की युवा पीढ़ी भी बम धमाकों की गूंज, गोलियाें की दनदनाहट और सन्नाटे से पसरी सड़कों के माहौल में पली बढ़ी। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के ढाई साल से भी अधिक समय हो चुका है। इस दौरान काफी कुछ बदला है। इसमें कोई संदेह नहीं कि अब आतंकी वारदातों में 70 फीसदी की कमी आई है। पत्थरबाज नजर नहीं आ रहे और पर्यटन कारोबार भी पहले से नहीं अधिक बढ़ा है। श्रीनगर में घूमते हुए जगह-जगह चैकपोस्ट, बंकर दिखाई देते थे। सायरन की आवाजें सुनाई देती थी लेकिन अब बाजारों में अच्छी खासी चहल-पहल नजर आती है और डल झील भी पर्यटकों से गुलजार है। यद्यपि बचे खुचे आतंकवादी अब भी हिंसक वारदातें करते रहते हैं लेकिन हालात पहले से कहीं अिधक बेहतर है। फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ के चर्चित होने के बाद अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि कश्मीरी पंडितों की घर वापसी हो। फिल्म की प्रशंसा और आलोचना को एक तरफ रखकर देखें तो यह बात स्वीकार करनी होगी कि फिल्म ने 1990 से घाटी से कश्मीरी पंडितों पर अत्याचारों और पलायन के पीछे की वास्तविकता से देश भर में और बाहर जन जागरूकता पैदा करने का काम किया है।
Advertisement
कश्मीरी पंडितों को विस्थापित होने का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में है। इसी बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक प्रमुख श्री मोहन भागवत ने तीन दिवसीय उत्सव के अंतिम दिन कश्मीरी पंडित समुदाय को डिजिटल तरीके से सम्बोधित करते हुए जो कुछ कहा है, उसका बहुत महत्व है। उन्होंने एक तरफ से कश्मीरी पंडितों को आवश्वासन दिया है और साथ ही यह भी कहा है कि कश्मीर घाटी में उनके घर को लौटने के संकल्प को पूरा करने का समय आ गया है। उन्होंने यह भी कहा​ है कि कश्मीरी पंडितों की वापसी के लिए प्रयास जारी है और उनकी घर वापसी का सपना जल्द साकार हो जाएगा। घाटी में ऐसा माहौल बनाने का काम चल रहा है। जहां कश्मीरी पंडित अपने पड़ोसियों के साथ सुर​क्षित महसूस करेंगे और शांति से रहेंगे और उन्हें फिर से विस्थापित नहीं होना पड़ेगा।
उन्होंने इस्राइल का जिक्र करते हुए महत्पूर्ण तथ्य का उल्लेख ​किया। उन्होंने कहा कि यहूदियों ने अपनी मातृभूमि के लिए 1800 वर्षों तक संघर्ष किया। 1700 वर्षों से उनके द्वारा अपनी प्रतिज्ञा के लिए बहुत कुछ नहीं ​किया  गया था। पिछले सौ वर्षों में इस्राइल के इतिहास ने इसे अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हुए देखा और इस्राइल दुनिया के अग्रणी देशों में एक बन गया है। उनके कहने का अभिप्राय यही है कि स्वाभिमान से जीना है तो हमें अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए साहस और दृढता से काम लेना होगा। हर किसी के जीवन में चुनौतियां आती हैं, हम ऐसी स्थिति में हैं जहां तीन हजार दशक पहले हम अपने ही देश में विस्थापित हुए थे। समाधान यही है कि हम हार नहीं माने और अपने घरों को लौटकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करें।
संकल्प तब पूरा होगा जब कश्मीरी पंडितों के धर्मस्थलों पर पहले की भांति रौनक होगी। खीर भवानी मंदिर में वैसे तो हर वर्ष मेला लगता है। सालाना उत्सव में दूर-दूर के कश्मीरी पंडित यहां आ कर पूजा करते हैं। कश्मीरी पंडितों के पलायन के बाद उत्सव जरूर हुए लेकिन अब हमें इस आस्था के केन्द्र का वैभव लौटाना है। कोरोना काल में भी लोग कम ही आए। अब इंतजार है उस दिन का जब खीर भवानी मंदिर की घंटियां और शंख ध्वनियां शांति और  साम्प्रदायिक सद्भाव का संदेश देंगी। मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। मंदिर में हजारों साल पुराना कुंड भी है। मान्यता है कि जब भी इस क्षेत्र में कोई प्रलय या विपत्ति आने वाली होती है तब इस कुंड के पानी का रंग बदल जाता है। कहा तो यह भी जाता है कि कारगिल युद्ध के 10-15 दिन पहले कुंड का पानी लाल हो गया था। यह कुंड आज भी अबूझ पहेली बना हुआ है। इसी बीच कश्मीर के मुस्लिमों ने साम्प्रदायिक सद्भाव की मिसाल कायम कर दी। शारदा यात्रा मंदिर समिति ने कश्मीर में एलओसी टीटवाल में प्राचीन शादरा मंदिर का निर्माण कार्य शुरू करवाया है। इसके लिए मुस्लिमों ने कश्मीरी पंडितों को 75 साल बाद जमीन हैंडओवर की है। 1947 में नष्ट हुए प्राचीन विरासत स्थल के पुनर्निर्माण के बाद धर्मशाला और एक गुरुद्वारा शारदा यात्रा का आधार शिविर बनेगा। पूजा अर्चना में कश्मीरी पंडितों समेत स्थानीय सिखों और मुस्लिमों ने भारी संख्या में भाग लिया। अब सरकार और प्रशासन को वहां ऐसा वातावरण सृजित करना होगा। जहां कश्मीरी पंडित पहले की तरह सद्भाव से रह सके। जहां तक आरएसएस का सवाल है तो 1990 के दशक में जब जम्मू-कश्मीर आतंकवाद का दंश झेल रहा था तब संघ ने कई आयामों पर काम किया था जिसमें इस क्षेत्र को सेना को सौंपने  के लिए सरकार पर दबाव बनाने से लेकर कश्मीर को बचाने के वास्ते देशव्यापी जागरूकता फैलाना और घाटी में सामान्य नागरिकों की मदद करना शामिल था। उम्मीद है कि घाटी में एक बार फिर स्थितियां सामान्य होंगी और ऋषि कश्यप की भूमि जम्मू-कश्मीर जन्नत बन जाएगी।
Advertisement
Next Article