Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

भारतीय सेना का गौरव बनाए रखें

मेरा यह सम्पादकीय भारत मां के उन बेटों को समर्पित है ​जो जल, थल और वायुसेना के नायक हैं। मेरे शब्द समर्पित हैं उन सभी सपूतों को जो छातियां तान कर सरहदों की रक्षा करते हैं।

03:33 AM Feb 05, 2020 IST | Aditya Chopra

मेरा यह सम्पादकीय भारत मां के उन बेटों को समर्पित है ​जो जल, थल और वायुसेना के नायक हैं। मेरे शब्द समर्पित हैं उन सभी सपूतों को जो छातियां तान कर सरहदों की रक्षा करते हैं।

मेरा यह सम्पादकीय भारत मां के उन बेटों को समर्पित है ​जो जल, थल और वायुसेना के नायक हैं। मेरे शब्द समर्पित हैं उन सभी सपूतों को जो छातियां तान कर सरहदों की रक्षा करते हैं। यह समर्पित है उनको जो शून्य से भी कम तापमान पर बर्फ में बैठकर राष्ट्र के मूल्यों की रक्षा कर रहे हैं या गर्मियों में तपती सरहदों में रहकर अपना कर्त्तव्य निभा रहे हैं। सेना की राजनिष्ठा केवल भारत के संविधान के प्र​ति और इसकी मूल प्रस्तावना में निहित बुनियादी मूल्यों स्वतंत्रता, समानत और भाईचारे के प्रति है। सीमाओं को सुरक्षित और देश की सार्वभौमिकता एवं क्षेत्रीय अखंडता को यकीनी बनाकर ही मूल्यों की रक्षा की जा सकती है। 
Advertisement
राष्ट्र और सत्ता का दायित्व है कि भारतीय सेना के जवानों को कोई कमी नहीं आने पाए। भारत के महालेखा परीक्षक यानी कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सियाचिन में तैनात भारतीय सैनिकों के पास सर्दियों के लिए विशेष कपड़ों और साजो-सामान के भंडार में काफी कमी है। यद्यपि सेना का कहना है कि यह रिपोर्ट 2015 से 2019 तक की है और अब चीजों में सुधार कर ​लिया गया है। बजट सत्र के दौरान लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में यह भी बताया गया है कि रक्षा मंत्रालय में दो लाख से अधिक पद रिक्त हैं। इस बार रक्षा बजट में भी मामूली बढ़ौतरी की गई है। पिछले वर्ष यह बजट 3.18 लाख करोड़ का था, इस बार इसे 3.37 लाख करोड़ रुपए कर दिया गया। यह बढ़ौतरी अच्छी है, लेकिन सेना के आधुनिकीकरण के लिए बजट में और राशि का प्रावधान करना होगा।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कुल रक्षा बजट में 1.13 लाख करोड़ रुपए पूंजीगत व्यय के लिए  दिए हैं। इसका इस्तेमाल नए हथियार, विमान, युद्धपोत और  अन्य सैन्य उपकरण खरीदने के लिए  किया जाएगा। राजस्व व्यय की मद में 2.09 लाख रुपए रखे गए हैं। कुल आवंटन में पेंशन भुगतान के लिए  अलग से रखे गए 1.33 लाख करोड़ रुपए शामिल नहीं हैं। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि रक्षा आवंटन जीडीपी का 1.5 फीसदी बना हुआ है, जो 1962 के बाद से सबसे कम है। 1962 में भारत और चीन में जंग हुई थी और भारत हथियारों की कमी के चलते चीन के विश्वासघात का सामना नहीं कर पाया था। अमेरिका सबसे ज्यादा धन अपने रक्षा बजट पर खर्च करता है। 
अमेरिका रक्षा पर 51.21 लाख करोड़, चीन 12.61 लाख करोड़, पाकिस्तान 53 हजार 164 करोड़, बंगलादेश 27 हजार 40 करोड़ रुपए खर्च करता है। बतौर सेनाध्यक्ष जनरल विपिन रावत ने हथियारों की खरीद के लिए पूंजीगत व्यय बढ़ौतरी की गुजारिश की थी, लेकिन इस पर भी कोई ध्यान नहीं दिया गया। अब सी.डी.एम. का पद सम्भाल रहे जनरल विपिन रावत का कहना है कि अगर फंड की कमी महसूस की गई तो सरकार से बात की जाएगी। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि इससे रक्षा सौदों और सेना के आधुनिकीकरण जैसे कामों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। धन की कमी के चलते एचएएल के कर्मचारी हड़ताल पर चले गए थे। ऐसी स्थिति दोबारा नहीं आनी चाहिए।
अब सवाल यह है कि रक्षा मंत्रालय में दो लाख से अधिक पद खाली क्यों हैं? दरअसल आज मध्यम वर्ग का हर युवा डाक्टर, इंजीनियर, बैंकर, प्रशासनिक अधिकारी, मैनेजर, कम्प्यूटर विशेषज्ञ, फैशन डिजाइनर, माडल, व्यवसायी आदि बनना चाहता है। सैनिक कमांडर बनना नहीं चाहता। क्या इसके पीछे भीरूता मात्र है, जो मरने से डरता  है और  सम्मान विहीन जैसा जीवन जीते रहना चाहता है। सम्भवतः कुछ लोगों के ​लिए यह भी सच है जो अपने बच्चों को सेना में नहीं भेजना चाहते।  मुख्य कारण यह रहा कि स्वतंत्र भारत की वैचारिकता देशभक्ति, देश की सुरक्षा और  सम्मान के प्रति दिनोंदिन उदासीन होती गई। 
देशभक्ति की जो भावना अपने राजनीतिक, वैचारिक, सांस्कृतिक नेतृत्व के लिए पहली प्रतिज्ञा थी, वह आजाद भारत में छोड़ दी गई। एक मूल्य के रूप में देशभक्ति का भारी अवमूल्यन हुआ। बदलते राजनीतिक परिदृश्य  में लोकतंत्र में गद्दार, गोली, वर्ग संघर्ष, हिन्दू-मुस्लिम आदि शब्दों ने विचारों को विकृत कर दिया है। राष्ट्रवाद शब्द को ही विकृत बना दिया गया है। ​ढिंढोरा कितना भी पीटा जाए, राजनीतिज्ञों के बच्चे भी राजनीतिज्ञ और व्यवसायी हैं, अपवाद स्वरूप ही कोई सेना में होगा। देश में ऐसा वातावरण तैयार करने की जरूरत है कि युवा सेना की और  आकर्षित हों, लेकिन क्या राजनीतिक दल ऐसा कर पाएंगे। सेना का गौरव बनाए रखने की जरूरत है। सेना के बल पर ही राष्ट्र का स्वाभिमान टिका है। उनकी चरण रज हमारे लिए किसी भी मंदिर की विभूति से कम पवित्र नहीं। देश की युवा पीढ़ी हर मुद्दे पर नागरिकों से कंधे से कंधा मिला कर चल रही है तो इस पीढ़ी को सेना के जज्बे को भी सलाम करना चाहिए।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
Advertisement
Next Article