केरल विधानसभा हंगामा मामला: विपक्ष ने शिक्षा मंत्री के इस्तीफे की मांग की
केरल विधानसभा में 2015 में हुए हंगामे के संबंध में उच्चतम न्यायालय के फैसले से राज्य में पिनराई विजयन के नेतृत्व वाली दो महीने पुरानी सरकार को झटका लगा है।
01:52 AM Jul 29, 2021 IST | Shera Rajput
केरल विधानसभा में 2015 में हुए हंगामे के संबंध में उच्चतम न्यायालय के फैसले से राज्य में पिनराई विजयन के नेतृत्व वाली दो महीने पुरानी सरकार को झटका लगा है।
राज्य विधानसभा के भीतर 2015 में हुए हंगामे के संबंध में वी सिवनकुट्टी समेत एलडीएफ के विधायकों के विरुद्ध दर्ज एक आपराधिक मामले को वापस लेने के लिए राज्य सरकार की ओर से दाखिल की गई एक याचिका को उच्चतम न्यायालय ने खारिज कर दिया। इसके बाद विपक्षी दल कांग्रेस ने बुधवार को केरल के शिक्षा मंत्री सिवनकुट्टी के इस्तीफे की मांग की।
मांग को खारिज करते हुए, 2015 में विपक्षी वाम विधायकों द्वारा की गई जबरदस्त हिंसा में कथित रूप से सबसे आगे रहे सिवनकुट्टी ने कहा कि विधानसभा में आंदोलन वाम लोकतांत्रिक मोर्चे (एलडीएफ) का निर्णय था और वे उस दिन उस निर्णय को लागू कर रहे थे।
मंत्री का बचाव करते हुए, एलडीएफ के संयोजक और माकपा के कार्यवाहक सचिव ए विजयराघवन ने कहा कि शीर्ष अदालत ने मंत्री के खिलाफ किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई नहीं की है।
विजयराघवन ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘एक मामला (हंगामे का) है। उस मामले की सुनवाई अभी शुरू नहीं हुई है।’’
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रमेश चेन्निथला ने उच्चतम न्यायालय के आदेश के मद्देनजर, मुख्यमंत्री पिनराई विजयन से सिवनकुट्टी का इस्तीफा तत्काल मांगने का आग्रह किया। चेन्नीथला ने हंगामे में शामिल विधायकों के विरुद्ध कानूनी लड़ाई छेड़ी थी।
कांग्रेस के के. सुधाकरन, वी डी सतीशन समेत संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (यूडीएफ) के अन्य नेताओं तथा मुस्लिम लीग के नेता पी. के. कुन्हालिकुट्टी और भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के. सुरेंद्रन ने भी सिवनकुट्टी से तत्काल इस्तीफा देने को कहा है।
उन्होंने कहा कि सिवनकुट्टी को मंत्री के पद पर रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। हालांकि, सिवनकुट्टी ने संकेत दिया है कि वह इस्तीफा नहीं देंगे क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने ऐसा कोई फैसला नहीं सुनाया है, जिससे उन्हें इस्तीफा देना पड़े।
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार और विधायकों के विशेषाधिकार उन्हें आपराधिक कानून से नहीं बचा सकते। न्यायालय ने कहा कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की तुलना सदन की कार्यवाही से नहीं की जा सकती।
केरल विधानसभा में 13 मार्च 2015 को अभूतपूर्व घटना हुई थी जब तत्कालीन विपक्षी दल वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) के विधायकों ने तत्कालीन वित्त मंत्री के. एम. मणि को बजट पेश करने से रोका था। उस समय मणि पर रिश्वत लेने के आरोप लगे थे।
मणि ने कहा कि वह मामले पर निचली अदालत के फैसले के बाद प्रतिक्रिया देंगे। विधानसभा सचिव की शिकायत के मुताबिक, मणि द्वारा बजट पेश करने को लेकर हुई हिंसा में पांच लाख रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ है।
Advertisement
Advertisement

Join Channel