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त्रिशूर में यह शख्श हर दिन 200 गरीबों को फ्री में खिलाता है खाना

दुनिया में कई ऐसे लोग हैं जो अपनी जेब देखकर नेक काम नहीं करते हैं। ऐसा ही एक व्यक्ति है जो खुद फल बेचता है और गरीबों को खाना खिलाकर उनका पेट भरता है।

09:02 AM Nov 17, 2019 IST | Desk Team

दुनिया में कई ऐसे लोग हैं जो अपनी जेब देखकर नेक काम नहीं करते हैं। ऐसा ही एक व्यक्ति है जो खुद फल बेचता है और गरीबों को खाना खिलाकर उनका पेट भरता है।

दुनिया में कई ऐसे लोग हैं जो अपनी जेब देखकर नेक काम नहीं करते हैं। ऐसा ही एक व्यक्ति है जो खुद फल बेचता है और गरीबों को खाना खिलाकर उनका पेट भरता है। दरअसल यह व्यक्ति रोजाना 200 लोगों को खाना खिलाता है। 
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यह मामला केरल के त्रिशिर जिले का है। केरल के त्रिशुर जिले के वादूकारा में एक बस शेल्टर कई सालों से बंद है लेकिन हर रोज खाना गरीब, बेघर और बेसहारा लोगों को खिलाते हैं। जैसन पॉल नाम के एक शख्स ने इस नेक काम को शुरु किया है। जैसन पॉल खुद फल बेचते हैं। 
इसकी प्रेरणा उन्हें कहां से मिली

खबरों के अनुसार 37 साल के जैसन पॉल को मदर टेरेसा से यह खूबसूरत काम करने की प्रेरणा मिली। जैसन पॉल के साथ मिलकर मदर टेरेसा की एक टीम रोजाना 175-200 लोगों को खाला खिलाते हैं। जरूरतमंद लोगों को साफ और स्वस्‍थ खाना खिलाने का उद्देशय उनकी टीम का है। 
गरीबों का पेट भर रहे हैं यह लोग

जैसन पॉल के साथ उनकी पत्नी बीनू मारिया, ऑटो ड्राईवर श्रीजीत, पूर्व बस ड्राईवर शाइन जेम्स और वर्कशॉप वर्कर वीए स्माइल यह सब उनके साथ इस खूबसूरत काम में जुड़े हुए हैं। ये नेक काम यह लोग पिछले दो सालों से कर रहे हैं। सोमवार से लेकर शनिवार तक यह नेक काम वह करते हैं। 
इतने रूपए खर्च होते हैं हर महीने

बता दें कि जैसन पॉल फल बेचने का काम करते हैं और इस ट्रस्ट में हर महीने वह पैसे दान करते हैं। जब यह काम पॉल ने शुरु किया था तब वह दाल-चावल और दलिया लोगों को खिलाते थे। लेकिन अब चावल, सांभर, फिश करी, सब्जियां, अचार और सलाद यह सब लोगों को खाने के लिए देते हैं। वेजीटेरियन मील में हर महीने करीब 5 हजार रूपए का खर्च होता है जबकि 6 हजार रूपए नॉन-वेजीटेरियन मील में लगते हैं। 
मदद करते हैं कई लोग 

गरीब लोगों के लिए दान भी इस ग्रुप को कई लोग अब करते हैं। कुछ लोग पैसे दान दे देते हैं तो कुछ चावल, दाल, सब्जियां आदि यह सब देते हैं। इसके अलावा टीम इस बात का भी ध्यान रखती है कि खाना बिल्‍कुल भी बर्बाद ना हो सके। खाना खिलाने में वह प्लास्टिक का उपयोग नहीं करते। यह लोगों को खाना केले के पत्तों में परोसते हैं। उसके बाद उन सभी पत्तों को एक गड्ढे के डिब्बे में डाल दिया जाता है। 
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