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केरल : बाढ़ की त्रासदी

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11:36 PM Aug 12, 2018 IST | Desk Team

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देशभर में आसमान से पानी नहीं आफत बरस रही है। सबसे खराब हालत केरल की है, जहां बारिश और बाढ़ ने भारी तबाही मचाई है। अनेक लोगों की मौत हो चुकी है और 60 हजार से ज्यादा लोग बेघर हो चुके हैं। केन्द्र सरकार, सेना और डिजास्टर रिस्पान्स फोर्स समेत तमाम एजेंसियां वहां के हालात पर काबू पाने की कोशिश में जुटी हैं। बारिश और बाढ़ का ऐसा मंजर केरल में दशकों से नहीं देखा था। सड़कें खुद-ब-खुद पानी के सामने आत्मसमर्पण कर रही हैं। इडुक्की बांध से पानी छोड़े जाने से हालात और बदतर हो गए हैं। बांध में पानी का स्तर लगातार बढ़ रहा था, इसलिए पहले एक गेट खोला गया, फिर तीन गेट और फिर पांचों गेट खोले गए। बांध के गेट खोले जाने से राज्य का काफी हिस्सा जलमग्न हो गया है।

समस्या से निपटने के लिए लगभग 500 राहत शिविर स्थापित किए गए हैं। सबसे ज्यादा बाढ़ प्रभावित जिलों पनामारम, वायलार, इडुक्की, मलप्पुरम, कन्नूर आैर कोझीकोड में राहत-बचाव के लिए सेना तैनात कर दी गई है। केरल के 58 बांधों में से 24 में क्षमता से ज्यादा पानी भरा हुआ है। यही कारण था कि 40 वर्षों में पहली बार इडुक्की बांध के सभी गेट खोलने पड़े। पेरियार नदी का जलस्तर लगातार बढ़ने से मुश्किलें और भी बढ़ गई हैं। इस बार मानसून की वर्षा ने देशभर में काफी कहर बरपाया है। इस वर्ष मानसून के दौरान सात राज्यों में 718 लोगों की मौत हो चुकी है। सबसे ज्यादा केरल में 178 लोगों ने जान गंवाई है। इसके बाद उत्तर प्रदेश में 171, बंगाल में 170, महाराष्ट्र में 139, गुजरात में 52, असम में 44 और नगालैंड में 8 लोगों की मौत हो चुकी है। सरकारी आंकड़ों में कुल मिलाकर 718 लोगों की मौत हुई है। गैर-सरकारी आंकड़ा इससे कहीं अधिक हो सकता है।

केरल में बीते 50 वर्षों में पहली बार बारिश से इतनी भीषण तबाही हुई है। गांव, खेत-खलिहान सब डूबे हुए हैं। प्राकृतिक आपदाएं हर वर्ष किसी न किसी राज्य को भारी नुक्सान पहुंचाती हैं। वर्षा रुकने से नदियों का जलस्तर सामान्य हो जाता है लेकिन लोगों की समस्याएं कम नहीं होतीं। जिनके घर और सम्पत्ति बर्बाद हो जाती है उन्हें फिर से दिनचर्या सामान्य बनाने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। बाढ़ का पानी तो निकल जाता है ​लेकिन अपने पीछे छोड़ जाता है संक्रामक बीमारियां।

केरल और पर्यटन लगभग एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं। भरपूर ट्रॉपिकल यानी ऊष्ण कटिबंधीय हरियाली, नारियल के पेड़, तटों पर दूर तक फैले पाम, गद्गद् कर देने वाली पानी पर तैरती हाऊस बोट, कई मंदिर, आयुर्वेद की सुगंध, समुद्री झीलें, नहरें, द्वीप केरल में ही देखे जा सकते हैं। जो लोग दुनिया भर की सैर के प्यासे यानी चहेते हों उनके लिए केरल का सफर बेहद यादगार रहता है। इस बाढ़ से निश्चित रूप से पर्यटन उद्योग प्रभावित होगा। केरल की संस्कृति भारत की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। देशभर के लोग केरल के सबरीमाला मंदिर, त्रिशुर में महादेव मंदिर, तिरुअनंतपुरम में पद्मनाभ स्वामी मंदिर के दर्शन करने जाते हैं।

अब सबसे अहम सवाल यह है कि केरल में इन विपरीत परिस्थि​तियों का प्रभाव कम कैसे किया जाए। केरल के लोगों को राहत पहुंचाने और राज्य के प्राकृतिक सौंदर्य की रक्षा के लिए केन्द्र ने भरपूर राशि देने का ऐलान किया है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने केरल में बाढ़ की स्थिति का जायजा लिया। केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन ने स्थिति को काफी विकट बताते हुए केंद्र से तुरंत मदद की मांग की थी। प्राकृतिक आपदाओं को नमन करना हर हाल में हमारी नियति है। संकट की घड़ी में सम्पूर्ण राष्ट्र का जन-जन एक साथ रहा है और मुझे उम्मीद है कि इस बार भी मानवीय प्रयास किए जाएंगे। न तो केंद्र सरकार पीछे रहेगी और न कोई राज्य सरकार और न ही भारत का आम नागरिक।

ओणम उत्सव आने वाला है। केरल मूल के लाखों लोग खाड़ी और अन्य देशों में हैं। जब भी ओणम उत्सव नजदीक आता है तो विदेशों से भारतीय अपने घर को लौटते हैं तब प्राइवेट एयरलाइंस कंपनियां अपने किराए बढ़ा देती हैं। भारत आने के लिए तीन या चार गुणा किराया बढ़ा देती हैं आैर जाने के लिए किराया और भी बढ़ा दिया जाता है। भयावह स्थिति में अपने परिजनों का हाल जानने भारतीय घरों को लौटने के इच्छुक होंगे। केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि भारतीय वाजिब किराए पर केरल आएं। इस संबंध में केंद्र सरकार को प्राइवेट एयरलाइंस से बात करनी चाहिए। प्राकृतिक विपदाएं क्यों आती हैं, इस पर मैंने एक प्राचीन ग्रंथ में पढ़ा था कि मनुष्य के स्वभाव को भी हम प्रकृति ही कहते हैं। मनुष्य जब अपनी प्रकृति से विमुख हो जाता है, परमात्मा की प्रकृति जिसे पराप्रकृति कहते हैं, वह भी रुष्ट हो जाती है। भविष्य में इस बात का ध्यान रखा जाए कि परियोजनाओं को ऐसा स्वरूप दिया जाए कि कभी प्रकृति रुष्ट भी हो तो वह ज्यादा नुक्सान न पहुंचाए। हमें परियोजनाओं को प्रकृति के अनुरूप बनाना होगा। सोचना होगा कि प्रबंधन के दावे हर साल में विफल क्यों हो जाते हैं। बाढ़ पर सियासत नहीं होनी चाहिए। सभी को केरल वासियों की मदद करनी चाहिए। नर सेवा ही नारायण सेवा है आैर सेवा का यह अवसर चूकना नहीं चाहिए।

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