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खादी : विकसित भारत की स्वदेशी पहचान

03:45 AM Sep 15, 2025 IST | Editorial

पूरी दुनिया इन दिनों ‘टैरिफ वॉर के चक्रव्यूह’ में उलझी है। हर देश अपने-अपने हितों को साधने के लिए आयात-निर्यात पर शुल्क की दीवारें खड़ी कर रहा है। वैश्विक कूटनीति के इस दौर में आर्थिक प्रतिस्पर्धा ने नए तनाव पैदा किए हैं और वैश्विक व्यापार का संतुलन डगमगा रहा है। प्रत्येक देश इस चक्रव्यूह को भेदने के रास्ते खोज रहा है, लेकिन इससे निकलने के लिए भारत के पास पूर्व में आजमाया हुआ एक शाश्वत समाधान है- स्वदेशी।
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान दक्षिण अफ्रीका से लौटकर पूज्य बापू ने चरखे के माध्यम से स्वदेशी से स्वावलंबन का बिगुल फूंका था। आज वही चरखा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संकल्प से ‘स्वदेशी क्रांति’ का आधार बन गया है। हाल ही में गुजरात की धरती से प्रधानमंत्री जी ने कहा था- “गुजरात की ये धरती दो मोहन की है- एक सुदर्शन-चक्रधारी द्वारकाधीश श्रीकृष्ण और दूसरे चरखाधारी मोहन, साबरमती के संत पूज्य बापू।” इन दोनों के मार्गदर्शन पर भारत निरंतर सशक्त हो रहा है। सच्चे अर्थों में मैं कहूं तो खादी के माध्यम से ‘स्वदेशी क्रांति का ये मोदी युग है’। आज जब गांवों में चरखे-करघे की घरघराहट गूंजती है, तो उसमें केवल सूत नहीं, बल्कि विकसित भारत की आत्मा का ताना-बाना बुनता है। जिस चरखे को महात्मा गांधी ने ‘आजादी का अस्त्र’ बनाया था, उसी चरखे को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘विकसित भारत का आधार’ बना दिया है। खादी अब केवल वस्त्र नहीं, बल्कि ‘स्वदेशी क्रांति की ध्वजवाहक’ बन चुकी है।
स्वदेशी क्रांति के अगुवा प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी विभिन्न मंचों से लगातार देशवासियों से खादी और स्वदेशी उत्पाद अपनाने का आह्वान करते रहे हैं। 31 अगस्त, 2025 को ‘मन की बात’ में उन्होंने कहा-आने वाले दिनों में त्याैहारों की रौनक होगी। इन त्याैहारों में स्वदेशी को कभी न भूलें- उपहार वही जो भारत में बना हो, पहनावा वही जो भारत में बुना हो, सजावट वही जो भारत में बने सामानों से हो, रोशनी वही जो भारत में बनी झालरों से हो। जीवन की हर जरूरत में स्वदेशी हो और गर्व से कहो- ये स्वदेशी है। इसी तरह से उन्होंने 15 अगस्त, 2025 को लाल किले से संबोधन के दौरान सभी दुकानदारों व व्यापारियों से अपील की कि वे अपनी दुकानों पर बोर्ड लगाएं जिसमें लिखा हो, ‘यहां स्वदेशी माल बिकता है’। हाल ही में दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा-जब भी हमने संकल्प लिया है, तब-तब उसे सिद्ध कर दिखाया है। खादी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। खादी विलुप्त होने के कगार पर थी, कोई पूछने वाला नहीं था। जब मुझे सेवा का अवसर मिला, मैंने देश से आह्वान किया और लोगों ने संकल्प लिया। नतीजा यह हुआ कि एक दशक में खादी की बिक्री लगभग सात गुना बढ़ी है। देशवासियों ने ‘वोकल फॉर लोकल’ के मंत्र के साथ खादी को अपनाया है।
भारत में यह समय तीज और त्याैहारों का है। प्रधानमंत्री की अपील है कि यह त्याैहारों का मौसम केवल संस्कृति का उत्सव न होकर आत्मनिर्भरता का उत्सव भी बने। उनका मंत्र साफ है- “हम जो भी खरीदेंगे, वह मेड इन इंडिया होगा, स्वदेशी होगा और जो भी बेचेंगे वो भी स्वदेशी होगा।’’ आइए हम सभी आत्मनिर्भर भारत, मेड इन इंडिया को बढ़ावा देने जैसे संदेशों के साथ अमृतकाल का विकसित और समृद्ध भारत बनाने का संकल्प लें। ध्यान रहे कि, विकसित भारत की नींव हमें, अपनी-अपनी इकाई से ही रखनी होगी। हम 144 करोड़ भारतवासी संकल्प लें कि हम स्वदेशी वस्तुएं ही खरीदेंगे और बेचेंगे, जो एक स्वावलंबी, समृद्धि- शाली राष्ट्र बनाने में सहायक होगा।
बीते 11 वर्षों में खादी और ग्रामोद्योग आयोग ने ऐतिहासिक उपलब्धियां हासिल की हैं। कारोबार पहली बार पौने दो लाख करोड़ रुपये के पार पहुंचा है। खादी की बिक्री में सात गुना तक की वृद्धि हुई है। आज देशभर में लगभग 2 करोड़ लोग खादी और ग्रामोद्योग से जुड़कर रोजगार पा रहे हैं। यह केवल आंकड़े नहीं, बल्कि ‘स्वदेशी क्रांति’ का जीवंत प्रमाण है। मोदी के नेतृत्व में खादी और ग्रामोद्योग न केवल ‘वोकल फॉर लोकल’ का अगुवा है, बल्कि ‘मेक इन इंडिया’, ‘मेक फॉर द वर्ल्ड ‘की जीवंत मिसाल भी बन चुका है।
प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ से लेकर संसद और अंतर्राष्ट्रीय मंचों तक हर जगह खादी का गौरवगान किया है। उन्होंने कहा है- “जब आप खादी खरीदते हैं, तो यह सिर्फ वस्त्र नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों के जीवन को संबल देने वाला कदम होता है।” यही खादी आज ‘विकसित भारत @2047’ अभियान का आधार बन गई है।
राष्ट्र प्रथम की नीति और वंचितों के हितों की भावना से प्रेरित हमारे प्रधानसेवक सदैव लघु उद्यमियों, पशुपालकों, किसानों और श्रमजीवी भाइयों-बहनों की चिंता करते रहे हैं। अपने निजी अनुभव से कह सकता हूं कि प्रधानमंत्री जी दुनिया के ऐसे विलक्षण नेता हैं, जो अपने छोटे कारोबारियों और हस्तशिल्पियों के उत्पादों को स्वयं प्रोत्साहित और प्रचारित करते हैं। इतना सशक्त और स्पष्ट संदेश केवल वही दे सकते हैं कि ‘देश के उत्पादन में देशवासियों का पसीना झलके।’ यही भावना ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘स्वदेशी’ के संकल्प को जीवंत बनाती है। आज हम सबका एक ही मंत्र होना चाहिए- ‘एक ही संकल्प, स्वदेशी विकल्प’- ‘हर त्यौहार, सिर्फ स्वदेशी उपहार’
अभी भारत के धैर्य की परीक्षा का समय है लेकिन समय बदलते समय नहीं लगता। चरखे का पहिया निरंतर गति से घूम रहा है। भारतीय जनमानस का खून-पसीना पूरे उत्साह और सामर्थ्य से अर्थव्यवस्था को सींच रहा है। यही सामर्थ्य विकसित भारत की गाड़ी को उस मंजिल तक पहुंचाएगा, जहां विश्व की महाशक्तियां भी भारत की विराट शक्ति को स्वीकारेंगी। आज नहीं तो कल, भारत को ‘विश्व गुरु’ के रूप में मान्यता मिलकर रहेगी।

 -  मनोज कुमार
अध्यक्ष (खादी और ग्रामोद्योग आयोग)

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