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Explainer: Zero Hour से क्यों शुरू होता संसद सत्र, जानें इसकी टाइमिंग और महत्व

03:48 PM Jul 20, 2025 IST | Neha Singh
Zero Hour

Zero Hour: भारतीय संसद की कार्यवाही में ‘शून्य काल’ या Zero Hour एक ऐसा विशेष समय होता है, जो सांसदों को जनहित के जरूरी मुद्दों को तुरंत उठाने का मौका देता है। यह कोई औपचारिक नियमों में दर्ज प्रक्रिया नहीं है, लेकिन संसद की कार्यप्रणाली का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। हर सत्र में जब भी संसद की कार्यवाही शुरू होती है, तो प्रश्नकाल (Question Hour) के तुरंत बाद और दिन की निर्धारित कार्यसूची से पहले का जो समय होता है, वही शून्य काल कहलाता है।

शून्य काल (Zero Hour) की शुरुआत कैसे हुई?

Zero Hour की शुरुआत 1962 में हुई थी। उस समय संसद के कुछ सदस्यों ने यह महसूस किया कि कुछ ऐसे मुद्दे होते हैं, जो इतने महत्वपूर्ण और तात्कालिक होते हैं कि उन्हें बिना देरी के संसद के सामने रखा जाना चाहिए। विशेष रूप से 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान, जब संसद का शीतकालीन सत्र जल्द शुरू किया गया और प्रश्नकाल को स्थगित कर दिया गया, तब सांसदों ने बिना पूर्व सूचना के ऐसे महत्वपूर्ण विषयों को उठाना शुरू कर दिया। यहीं से जीरो आवर की परंपरा शुरू हुई। नौवें लोकसभा स्पीकर रबी रे ने इस प्रक्रिया को और व्यवस्थित बनाने के लिए कुछ नियम बनाए, ताकि सांसद एक तय ढांचे के भीतर अपने मुद्दे प्रभावी रूप से उठा सकें।

जीरो आवर क्या होता है?

शून्य काल एक अनौपचारिक प्रक्रिया है, जिसे भारतीय संसद की नियम पुस्तिका में औपचारिक रूप से दर्ज नहीं किया गया है। इस समय सांसद बिना 10 दिन पहले नोटिस दिए, जनता से जुड़े अत्यावश्यक मुद्दों को संसद में उठा सकते हैं। आमतौर पर संसद में किसी मुद्दे को उठाने के लिए पहले से नोटिस देना अनिवार्य होता है, लेकिन जीरो आवर में यह बाध्यता नहीं होती।

इसे ‘Zero Hour’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह दिन के 12 बजे शुरू होता है, यानी प्रश्नकाल खत्म होते ही, और दिन के निर्धारित एजेंडा के शुरू होने से ठीक पहले। दिलचस्प बात यह है कि राज्यसभा में 2014 के बाद इसमें बदलाव किया गया है। अब वहां शून्य काल सुबह 11 बजे से ही शुरू हो जाता है, जबकि प्रश्नकाल दोपहर 12 बजे से होता है।

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Zero Hour

जीरो आवर में मुद्दे कैसे उठाए जाते हैं?

सांसदों को शून्य काल में कोई मुद्दा उठाने के लिए उसी दिन सुबह 10 बजे तक लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति को लिखित रूप से सूचना देनी होती है। इस नोटिस में उस मुद्दे का विषय स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए।

इसके बाद स्पीकर या चेयरमैन यह तय करते हैं कि किन मुद्दों को प्राथमिकता दी जाएगी। लोकसभा में प्रतिदिन अधिकतम 20 ऐसे मुद्दों को चुना जाता है, जिन्हें सांसद जीरो आवर के दौरान उठा सकते हैं। प्रत्येक सांसद को 2-3 मिनट का समय दिया जाता है, और यदि स्पीकर या चेयरमैन को उचित लगे तो यह समय बढ़ भी सकता है।

मंत्रियों द्वारा जवाब देना अनिवार्य नहीं होता, जैसा कि प्रश्नकाल में होता है, लेकिन कई बार संबंधित मंत्री मुद्दे पर प्रतिक्रिया भी देते हैं। यह पूरी प्रक्रिया संसद में पारदर्शिता और तात्कालिकता लाने में मदद करती है।

जीरो आवर का महत्व

1. तात्कालिक मुद्दों पर ध्यान– जीरो आवर के दौरान प्राकृतिक आपदा, आतंकवाद, जन सुरक्षा, आर्थिक संकट, या सरकार की नीतियों से जुड़ी तात्कालिक समस्याएं तुरंत संसद के पटल पर लाई जा सकती हैं।

2. सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करना – भले ही यह मंच औपचारिक न हो, लेकिन इससे सरकार पर जनता के सवालों को तुरंत संबोधित करने का दबाव बनता है। इससे शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ती है।

3. लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बल देना – जीरो आवर सांसदों को जनता की आवाज संसद तक पहुंचाने का एक सीधा मंच देता है। इससे आम लोगों के मुद्दे संसद में सुनवाई पाते हैं, जो लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करता है।

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