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13 दिसंबर के बाद से नहीं होंगी शादियां क्योंकि लग जाएगा खरमास, जानें इससे जुडी कुछ खास बातें

हिंदू पंचांग के अनुसार शरद ऋतु में एक महीने के लिए सभी शुभ कार्यों को ररोक दिया जाता है। इस महीने को खरमास कहते हैं।

03:41 AM Dec 13, 2019 IST | Desk Team

हिंदू पंचांग के अनुसार शरद ऋतु में एक महीने के लिए सभी शुभ कार्यों को ररोक दिया जाता है। इस महीने को खरमास कहते हैं।

हिंदू पंचांग के अनुसार शरद ऋतु में एक महीने के लिए सभी शुभ कार्यों को ररोक दिया जाता है। इस महीने को खरमास कहते हैं। इस साल16 दिसंबर से खरमास शुरू हो रहा है। यह मकर संक्राति यानी 14 जनवरी 2020 तक रहेगा। जबकि गुरु अस्त होने के  कारण बढ़ चले हैं इसी वजह से 13 दिसंबर के बाद से सभी मांगलिक  कार्य बंद हो जाएंगे। 
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इस समय कोई शादी,मुंडन आदि कोई कार्य नहीं किया जा सकता है। ऐसा कहा जाता है कि खरमास में मांगलिक कार्य करने से उनका वंाछित फल प्राप्त नहीं हो पाता है। खरमास में सूर्य अपने गुरू बृहस्पति के घर धनु और मीन में प्रेवश करता है। तो आइए आपको बताते हैं खरमास में मांगलिक कार्यों के संपन्न न होने के पीछे ये कुछ मान्यताएं….
खरमास क्या है
सूर्य जब 12 राशियों का भ्रमण करते हुए बृहस्पति की राशियों धनु या मनी में प्रवेश करता है तब इसे खरमास कहा जाता है। खरमास साल में दो बार चैत्र और पूस में आता है। खरमास के पूरे महीने कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है जैसे मुंडन,विवाह,नवगृह प्रवेश आदि। 
सूर्य हो जाता है प्रभावहीन
खरमास के महीने को लेकर बहुत तरह की मान्यताएं हैं। सबसे पहली मान्यता के मुताबिक सूर्य अपने तेज को अपने गुरु के घर में पहुंचते ही समेट लेता है। साथ ही अपने प्रभाव को छिपा लेता है और गुरु को साष्टïांग नमन कर प्रभावहीन होने की वजह से सभी शुभ कार्य बंद हो जाते हैं,क्योंकि किसी भी कार्य में ऊर्जा की जरूरत होती है। 
इसलिए पड़ा खरमास नाम
इस महीने का नाम खरमास होने के पीछे एक कथा चली हुई आ रही है। सूर्यदेव अपने सात घोड़ों के रथ में भ्रमण कर रहे थे। घूमते-फिरते अचानक उनके घोड़े प्यास बुझाने के लिए तालाब के किनारे पानी पीने लगे। पानी पीते के साथ ही घोड़ों को अलस आ गया और तब से ही सूर्यदेव को स्मरण हुआ कि सृष्टिï के नियमानुसार उन्हें निरंतर ऊर्जावान होकर चलते रहने का आदेश है। 
घोड़ों के थक  जाने के बाद सूर्यदेव को तालाब के किनारे दो गधे नजर आए। इसके बाद सूर्यदेव उन गधों को अपने रथ में जोतकर वहां से चले गए। इस तरह सूर्यदेव इस पूरे महीने मंद गति से गधों की सवारी से चलते रहे। इस वक्त उनका तेज भी कम हो गया। इसके बाद मकर राशि में प्रेवश करने के समय एक महीने के बाद वो अपने सातों घोड़ोंं पर सवार हुए। 
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