Krishna Janmashtami 2025: कृष्ण जन्माष्टमी पर मंदिरों में उमड़ा आस्था का सैलाब
Krishna Janmashtami 2025: भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव जन्माष्टमी पूरे देश में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व हर वर्ष भाद्रपद माह की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने द्वापर युग में कृष्ण अवतार लेकर मथुरा में अत्याचार का अंत किया था। इस दिन श्रद्धालु व्रत-उपवास रखते हैं और रात 12 बजे भगवान के जन्मोत्सव का उत्सव मनाते हैं।
मंदिरों में उमड़ी भक्तों की भीड़
इस बार भी जन्माष्टमी पर सुबह से ही मंदिरों में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा। महिलाएँ पारंपरिक परिधानों में सजी-धजी नज़र आईं तो पुरुष भी श्रद्धा भाव से पूजा-अर्चना में लीन रहे। कई मंदिरों में भक्तों को लंबी कतारों का सामना करना पड़ा, परंतु भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए सभी का उत्साह देखते ही बन रहा था।
आकर्षक सजावट और झांकियाँ
देशभर के मंदिरों को विशेष रूप से सजाया गया। कहीं रंग-बिरंगी लाइटों से पूरा परिसर जगमगा उठा तो कहीं फूलों और बंदनवारों से वातावरण को भक्ति से भर दिया गया। भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप को पालने और झूलों में सजाया गया, जिन्हें देखकर श्रद्धालुओं के चेहरे पर असीम आनंद झलक उठा। कई जगहों पर ‘मथुरा नगरी’ और ‘गोकुल धाम’ की झांकियाँ भी बनाई गईं, जिनमें कृष्ण की बाल लीलाओं का सुंदर चित्रण देखने को मिला।
Krishna Janmashtami 2025 पर भजन-कीर्तन और सांस्कृतिक आयोजन
जन्माष्टमी की रात मंदिरों में भजन-कीर्तन का विशेष आयोजन किया गया। भक्तजन ढोल, मंजीरे और करताल की धुन पर झूम उठे। "कृष्ण जन्म" की झांकियों और नृत्य-नाटिकाओं ने वातावरण को और भी जीवंत बना दिया। बच्चों और युवाओं ने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं जैसे माखन चोरी और गोवर्धन लीला का मंचन किया, जिसे देखकर दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए।
मटकी फोड़ प्रतियोगिता बनी आकर्षण का केंद्र
जन्माष्टमी की परंपरा के अनुसार कई स्थानों पर ‘मटकी फोड़’ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। युवाओं की टोली ने पिरामिड बनाकर ऊँचाई पर टंगी मटकी को फोड़ा। जैसे ही मटकी टूटी, दही और मक्खन की बूंदें नीचे गिरीं और चारों ओर “गोविंदा आला रे” के जयकारे गूँज उठे। इस आयोजन ने माहौल को उल्लास और रोमांच से भर दिया।
मध्यरात्रि में मनाया गया जन्मोत्सव
जैसे ही घड़ी ने बारह बजाए, मंदिरों में ढोल-नगाड़ों की गूंज और शंखनाद के बीच भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया। भक्तों ने ‘नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की’ के नारों से पूरा वातावरण गुंजा दिया। मंदिर के पुजारियों ने भगवान को दुग्ध स्नान कराया और उन्हें नये वस्त्र एवं आभूषण पहनाए। तत्पश्चात आरती हुई, जिसमें हजारों भक्तों ने भाग लिया।
भक्तिभाव और सामाजिक संदेश
जन्माष्टमी केवल धार्मिक आस्था का पर्व ही नहीं, बल्कि यह सामाजिक एकता और भाईचारे का संदेश भी देता है। विभिन्न जातियों और समुदायों के लोग मिलकर इस पर्व में भाग लेते हैं। इस अवसर पर मंदिरों और धर्मस्थलों में प्रसाद वितरण और भंडारे का भी आयोजन किया गया, जिसमें सभी ने समान भाव से भाग लिया।
कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व हर वर्ष भक्तों के हृदय में नई ऊर्जा और उत्साह
कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व हर वर्ष भक्तों के हृदय में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार करता है। मंदिरों में उमड़ी भीड़ और गूंजते भजन इस बात का प्रतीक हैं कि भगवान श्रीकृष्ण आज भी जन-जन के जीवन में आस्था, भक्ति और प्रेम का स्रोत बने हुए हैं।
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