For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

‘गोकुल’ के कृष्ण ‘कर्पूरी ठाकुर’

04:40 AM Jan 25, 2024 IST | Aditya Chopra
‘गोकुल’ के कृष्ण ‘कर्पूरी ठाकुर’

कर्पूरी ठाकुर को आधुनिक भारत का 24 जनवरी, 1924 को बिहार के समस्तीपुर जिले के एक गांव में श्री गोपाल ठाकुर के घर जन्मा एेसा नन्दलाल या श्री कृष्ण भी कहा जा सकता है जिसका पूरा जीवन भारतीय समाज में व्याप्त अन्याय की समाप्ति के लिए बीता। भारतीय राजनीति में कांग्रेस के महाप्रतापी राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे स्व. कामराज नाडार के बाद यदि कोई दूसरा व्यक्ति नितान्त गरीबी के थपेड़ों के बीच उठकर शिखर तक पहुंचा तो निश्चित रूप से वह कर्पूरी ठाकुर ही थे जिनकी आज जन्म शताब्दी मनाई गई और उन्हें भारत रत्न सम्मान से अलंकृत किया गया। कर्पूरी समाज के अन्तिम पायदान पर खड़े अन्तिम आदमी की ऐसी स्वर्णिम आभा थे जिसकी रोशनी से न केवल इस समाज को नई ऊर्जा मिली बल्कि समूचे भारतीय समाज का माथा दमका। उनके जीवन का प्रारम्भिक पारिवारिक संघर्ष शहरों में रहने वाली आज की पीढ़ी के लिए किसी रोमांचकारी कथा के समान हो सकता है परन्तु वह गुलाम भारत के गांवों की ऐसी हकीकत है जिसका वर्णन हमें मुंशी प्रेम चन्द की ‘सवा सेर गेहूं’ जैसी कहानियों में मिलता है।
कर्पूरी मनुष्य की उस असीम साधना व लगन के जीवन्त प्रमाण थे जिसका लक्ष्य ‘बदला’ न होकर ‘बदलाव’ था। सामाजिक बदलाव की इस लौ से सर्वदा ज्योतिर्मान रहने वाले कर्पूरी ठाकुर ने केवल बिहार के लोगों में ही नहीं बल्कि समूचे भारत के लोगों को समाजवाद अर्थात समता मूलक समाज के लिए इस प्रकार अभिप्रेरित किया कि गांधी का अहिंसक सिद्धान्त बदलाव का सर्वोच्च अस्त्र बन सके। महात्मा गांधी, डा. राम मनोहर लोहिया व जय प्रकाश नारायण व आचार्य नरेन्द्र देव जैसे तपस्वी नेताओं की संगत में रहते हुए कर्पूरी ठाकुर ने समाज के मजदूर-किसान या कमेरे कहे जाने वाले वर्ग के हितों के लिए जो अलख स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान से लेकर आजाद भारत तक में जगाई उसकी मिसालें बहुत कम ही मिलेंगी क्योंकि उन्होंने पहली 28 दिनों की भूख हड़ताल गुलाम भारत में दरभंगा जेल के कैदियों के साथ किये जा रहे निर्मम व्यवहार के विरुद्ध की थी। हड़ताल के 29वें दिन अंग्रेज सरकार को उनकी सभी मांगें माननी पड़ी थीं मगर उन्हें भागलपुर जेल में निर्वासित कर दिया गया था। वहां पहुंच कर भी उन्होंने वहां के कैदियों के साथ उचित व्यवहार करने का बीड़ा उठाया। कैसा विकट व्यक्तित्व था कर्पूरी ठाकुर का कि जून 1975 में देश में लगी इमरजेंसी के 19 महीनों के दौरान वह तत्कालीन सरकार की पकड़ में नहीं आये और नेपाल, कोलकाता व चेन्नई तक में घूमते रहे और इस दौरान वहां स्व. कामराज की अत्येष्टि में भी शामिल हुए। केवल यही पक्ष बताता है कि वह आजाद भारत में उदार, सहिष्णु लोकतन्त्र के कर्मशील कार्यकर्ता थे।
इमरजेंसी में जिस सरकार ने देश के सभी छोटे-बड़े नेताओं को जेलों में भर दिया था वह कर्पूरी ठाकुर को गिरफ्तार नहीं कर सकी। जबकि कर्पूरी ठाकुर उससे पहले 1969 में बिहार के उपमुख्यमन्त्री व मुख्यमन्त्री 1970 में रह चुके थे। एेसे व्यक्तित्व के भारत रत्न विभूषण पाने से उसका सम्मान नहीं हुआ है बल्कि स्वयं भारत रत्न सम्मान विभूषित हुआ है क्योंकि कर्पूरी ठाकुर गणतन्त्र में साधारण भारतीय को सम्मानित किये जाने की जिजिविषा के प्रतीक थे। उनके बारे में यह भर कह देना कि उन्होंने 1978 में मुख्यमन्त्री रहते हुए बिहार में पिछड़ों व गरीबों व महिलाओं के लिए आरक्षण लागू किया केवल उनके व्यक्तित्व को एक विशेष सांचे में ढालने का प्रयास ही कहा जायेगा क्योंकि एेसा करके उन्होंने केवल आजाद भारत की वरीयताओं को ही रेखांकित किया था। उनका असल कार्य बिहार की समूची सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक व्यवस्था में न्याय स्थापित करना था। उन्होंने पहले आठवीं तक मुफ्त शिक्षा शुरू की और उसके बाद मैट्रिक तक। उनकी दृष्टि राजनीति के संकीर्ण दायरों जातिवाद या साम्प्रदायिक घेरों से ऊपर कहीं गांधीवादी थी जिसमें मानव समाज के कष्टों को सत्ता द्वारा ओढ़ने का प्रयास था।
लोकतन्त्र का पहला सिद्धान्त भी यही होता है। इसी वजह से वह अपने विधायक की आधी तनख्वाह भी बच्चों की शिक्षा के लिए दान दे देते थे। वह संसदीय मामलों के सफल भाष्यकार भी थे और जन नेता भी थे। इसी वजह से उनका यह नारा खूब चला था,
‘‘कमाने वाला खायेगा, लूटने वाला जायेगा
नया जमाना आयेगा....’’
कर्पूरी की राजनीति की यह अन्तर्दृष्टि थी जो उन्हें गांधी व आचार्य नरेन्द्र देव व लोहिया से मिली थी। उनका पूरा जीवन इन्हीं सिद्धान्तों को समर्पित रहा। मगर 1979 में अपने मुख्यमन्त्रित्वकाल के दौरान वर्तमान की बदलती राजनीति ने उन्हें भी नहीं छोड़ा। उन पर कुछ अनर्गल आरोप भी लगाये गये। मगर धरती के इस लाल ने जब अपना जीवन त्यागा तो उसकी निजी सम्पत्ति ताजपुर विधानसभा क्षेत्र का कच्चा मकान था और बैंक खाते में कुछ सौ रुपये थे। यह वही ताजपुर है जहां से वह जीवन पर्यन्त विधायक रहे और 1952 से लेकर 1988 तक कभी चुनाव नहीं हारे, हालांकि एक बार स्वयं इन्दिरा गांधी उनके चुनाव क्षेत्र में उन्हें चुनाव हराने की गरज से गई थीं। एेसे गोकुल के निर्धन कृष्ण को शत-शत नमन।

Advertisement
Advertisement
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
×