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सिख धर्म में एकजुटता की कमी

06:00 AM Aug 21, 2025 IST | Sudeep Singh

सिख कौम एक बहादुर कौम है जो गुरु साहिबान के दिखाए मार्ग पर चलते हुए न तो बिना वजह किसी पर जुल्म करते हैं और न ही किसी पर जुल्म होते देख सकते हैं। शायद इसी के चलते हर कोई यह सोचकर कौम को कमजोर करने की कोशिश में रहता है कि अगर कौम में एकजुटता रहेगी तो यह अपने साथ-साथ दूसरों के अधिकारों की रक्षा हेतु भी आवाज उठाते रहेंगे। इतिहास गवाह है कि देश की आजादी के आंदोलन में इस बहादुर कौम ने जो केवल 2 प्रतिशत थी न सिर्फ आवाज उठाई बल्कि 85 प्रतिशत से अधिक कुर्बानियां देकर देश को आजादी दिलाई। देश की सरहदों पर सिख सैनिक आज भी सीना तानकर खड़े हैं। अंग्रेज तो भारत से चले गए मगर जिन लोगों के हाथों में देश की कमान सौंप गए। उन्होंने सबसे पहला काम सिखों मे फूट डालने का किया। सिख कौम को कई गुटों में बांट कर रख दिया। सिखों की पंथक जमात शिरोमणि अकाली दल थी उसे कमजोर करने की भी समय-समय पर कई बार साजिशें हुए परिणाम स्वरूप आज कई अकाली दल बन चुके हैं। इतना ही नहीं सिखों के गुरुद्वारों मे चुनाव प्रक्रिया लागू कर दी गई जिसके चलते जब भी चुनाव होते हैं सिख कौम आपस में ही लड़कर एक-दूसरे के खून के प्यासी हो जाते हैं।

कौम के युवाओं को नशे का आदि बना दिया गया। कौम में दरार डलवाने के लिए कई एजेन्सियां कार्यरत हैं जिनका काम कौम को एकजुट होने से रोकना है, क्योंकि वह भलीभांति जानते हैं कि अगर यह कौम एकजुट हो गई तो उनके लिए कई तरह की मुश्किल पैदा कर सकती है। सिख बु़द्धिजीवियों की राय में आज सिख कौम को सबसे अधिक जरूरत इस बात की है कि कोई आगे आकर कौम में फैली दुविधा को दूर करे और सभी सिख जत्थेबं​दियों को एक निशान साहिब के नीचे लाकर मिलकर कौम की बेहतरी के लिए कार्य करने को कहे। असल में यह काम कौम के धर्म गुरु भाव जत्थेदार साहिबान का रहता है मगर आज ऐसा प्रतीत होता है कि जत्थेदारों की हौंद भी स्वतंत्र नहीं है वह किसी न किसी राजनीति दल या जत्थेबंदी के अधीन रहकर कार्य करते आ रहे हैं जिसके फलस्वरूप वह चाहकर भी समूची कौम को एक करने की मुहिम शुरू नहीं कर सकते। इस सबसे दुखी होकर ही आज सिख कौम का युवा वर्ग सिखी से दूर होता चला जा रहा है, अगर सिख कौम में एकजुटता लानी है तो सबसे पहले कौम के जत्थेदारों, धार्मिक जत्थबंदियों के नुमाईंदों को अपनी सोच में बदलावा लाना होगा तभी कुछ सुधार आ सकता है।

इस साल समूचा सिख पंथ गुरु तेग बहादुर जी का 350वां शहीदी दिवस मनाने जा रहा है, मगर इसमें भी सिख कौम की धार्मिक जत्थेबंदियों में एकजुट होकर मनाने पर सहमति नहीं बन पाई और आज हर कोई अपनी अलग डफली बजाते हुए अपने हिसाब से पर्व को मनाने की तैयारियों में जुटा है, बेहतर होता अगर सभी एक होकर शहीदी पर्व को मनाते और एकजुटता का सबूत देते जो दिखाई नहीं दे रहा। तख्त पटना साहिब से पूर्व जत्थेदार की विदायगी बनी मिसाल : तख्त श्री हरिमन्दिर जी पटना साहिब जो कि सिख कौम का दूसरा तख्त और गुरु गोबिन्द सिंह जी की जन्म स्थली भी है, मगर पिछले कुछ समय से तख्त साहिब की प्रबन्धक कमेटी और पूर्व जत्थेदार के बीच चल रहे विवाद के चलते तख्त साहिब की निरन्तर बदनामी हो रही थी जिसे लेकर केवल सिख धर्म के लोग ही नहीं बल्कि गैर सिख जिनकी तख्त पटना साहिब में आस्था है, वह भी दुखी थे। पिछले दिनों बिहार के एक गैर सिख नेता पप्पू यादव से जब दिल्ली में मिलना हुआ तो उन्होंने भी इस पर चिन्ता व्यक्त करते हुए इस मामले को जल्द सुलझाने के लिए सुझाव दिया।

असल में यह विवाद साल 2022 में पंजाब के जालंधर निवासी डा. गुरविन्दर सिंह सामरा द्वारा भेंट किए गए सामान में हेराफेरी के चलते उत्पन्न हुआ था जिसके बाद उस समय के अध्यक्ष स्वर्गवासी जत्थेदार अवतार सिंह हित के द्वारा कमेटी के सभी सदस्यों की सहमति के साथ जत्थेदार रणजीत सिंह गौहर की सेवाओं पर रोक लगाकर ज्ञानी बलदेव सिंह को जत्थेदार के रूप में सेवा सौंप दी थी। उसके बाद रणजीत सिंह गौहर द्वारा हाईकोर्ट में एक केस प्रबन्धक कमेटी के खिलाफ किया, वहीं तख्त पटना साहिब के पांच प्यारे साहिबान के द्वारा उन्हें तनखाईया करार देते हुए पंथ से निष्कासित भी कर दिया। रणजीत सिह ने श्री अकाल तख्त साहिब से गुहार लगाई और जत्थेदार अकाल तख्त कुलदीप सिंह गड़गज के द्वारा उन्हें जुलाई माह में दोष मुक्ति करते हुए पुनः सेवाएं करने की आदेश पारित किया, जिसके बाद यह विवाद और बढ़ गया और यह लड़ाई दो तख्त के बीच होकर देखते ही देखते संसार भर में यह चर्चा का विषय बन गया।

उसके बाद शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी और तख्त पटना साहिब के हाल ही में सदस्य बने गुरविन्दर सिंह बावा के द्वारा पहलकदमी दिखाते हुए इस विवाद को सुलझाने हेतु दोनों तख्तों के बीच सहमति बनवाई और अपने दूत के रूप में जसबीर सिंह धाम को भेजा गया जिन्होंने तख्त पटना साहिब प्रबन्धक कमेटी और पूर्व जत्थेदार रणजीत सिंह गौहर के बीच आपसी सहमति से मामले को सुलझाने में कामयाबी हासिल की। तख्त पटना साहिब प्रबन्धक कमेटी के अध्यक्ष जगजोत सिंह सोही सहित समूची कमेटी ने भी दरियादिली दिखाते हुए अनेक मतभेद होने के बावजूद पूर्व जत्थेदार को उनका बकाया देने के साथ ही पूर्ण सम्मान के साथ विदायगी दी जो कि वास्तव में सभी तख्त साहिबान की कमेटियों के लिए मिसाल बन गई कि जत्थेदारों की विदायगी किस प्रकार होनी चाहिए? यूके चैरिटी कमीशन का ‘खालिस्तान’ पर निर्णय: एक प्रतिवाद : यूके के एक टीवी चैनल पर “गुरुद्वारा मीरी-पीरी” कार्यक्रम किया गया, जिसमें खालिस्तान शब्द का धार्मिक अथवा राजनीतिक इस्तेमाल किए जाने पर चर्चा की गई। असल में यह विवाद यूके चैरिटी कमीशन की रिपोर्ट के बाद सामने आया था।

कार्यक्रम के दौरान वक्ताओं ने हाल ही में यूके चौरिटी कमीशन के उस निर्णय पर चर्चा की जिसमें स्लाउ स्थित गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा को ‘खालिस्तान’ शब्द वाले बोर्ड प्रदर्शित करने की अनुमति दी गई। सिख कौम का बुद्धिजीवि वर्ग मानता है कि अनुमति इस समझ के साथ दी गई कि खालिस्तान को धार्मिक-आध्यात्मिक आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया जाए, न कि राजनीतिक राष्ट्र-राज्य के रूप में। कार्यक्रम में याद दिलाया गया कि 2019 में गुरुद्वारा सिंह सभा सवनही के विरुद्ध शिकायत दर्ज हुई थी, जबकि यह बोर्ड 1984 से लगे हुए हैं। इस मामले में कुछ विशेषज्ञों डॉ. जसदेव राय, प्रोफेसर गुर्जीत सिंह (अमेरिका), अमरजीत सिंह भाच्चू आदि ने चौरिटी कमीशन को राय दी थी। चौरिटी कानून के अंतर्गत गुरुद्वारे किसी राष्ट्र-राज्य के लिए सीधे प्रचार या धन इकट्ठा नहीं कर सकते। ऐसे में केवल ‘खालिस्तान’ नाम से रैनसबाई या धार्मिक कार्यक्रम करना मात्र दिखावा है।

खालिस्तान को केवल धार्मिक आदर्श मानना, सिख इतिहास से विरोधाभास रखता है। “राज करेगा खालसा” का नारा सिख परंपरा का हिस्सा है। महाराजा दलीप सिंह की प्रतिमा (1999, प्रिंस चार्ल्स द्वारा उद्घाटन) पर भी यह अंकित है। गुरु गोबिंद सिंह जी का ज़फ़रनामा अन्याय के विरुद्ध संघर्ष की अनुमति देता है। असल में सवनही गुरुद्वारा पर यह भी आरोप लग रहा है कि उनके द्वारा खालिस्तानी राष्ट्र के नाम पर काफी पौंड एकत्र किए हुए हैं जबकि चैरिटी कानून के तहत गुरुद्वारे किसी राजनीतिक जत्थेबंदी यां राष्ट्र के लिए पैसा एकत्र नहीं कर सकते जिसके चलते अब इसे धार्मिक बताया जा रहा है, मगर यदि खालिस्तान शब्द धार्मिक है तो 2000 में क्यों प्रतिबंधित हुआ और उसके 1.25 लाख पाउंड क्यों जब्त किए गए?

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