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Ladakh News: सियाचिन बेस कैंप के पास हिमस्खलन से बड़ा हादसा, सेना के 3 जवान शहीद

05:40 PM Sep 09, 2025 IST | Amit Kumar
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Ladakh News: लद्दाख के सियाचिन ग्लेशियर में हाल ही में एक भीषण हिमस्खलन हुआ, जिसमें भारतीय सेना के तीन जवान शहीद हो गए हैं। यह जगह दुनिया का सबसे ऊंचा और कठिन युद्धक्षेत्र माना जाता है, जहां सैनिकों को -60 डिग्री सेल्सियस तक की सर्दी, तेज हवाएं और गहरी बर्फ से जूझना पड़ता है।

Ladakh News: पेट्रोलिंग के दौरान हुआ हादसा

मिली जानकारी के अनुसार, जब जवान गश्त पर थे तभी यह हिमस्खलन आया और वे उसकी चपेट में आ गए। सेना ने तुरंत राहत और बचाव कार्य शुरू कर दिया है। इस कार्य के लिए लेह और उधमपुर से मदद मंगाई गई है। सर्दियों में सियाचिन में हिमस्खलन होना आम बात है।

Siachen Base Camp Avalanche: सबसे ऊंचा और खतरनाक मोर्चा

सियाचिन ग्लेशियर करीब 20,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और इसकी लंबाई लगभग 76 किलोमीटर है। यह कराकोरम पर्वत शृंखला में स्थित है। यहां तापमान बेहद कम होता है और मौसम कभी भी खराब हो सकता है। ऊंचाई, ऑक्सीजन की कमी, बर्फीले तूफान और हिमस्खलन यहां के सैनिकों के लिए हमेशा खतरा बने रहते हैं।

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Siachen Avalanche News: राहत और बचाव कार्य

हादसे की जानकारी मिलते ही सेना की विशेष "अवलांच रेस्क्यू टीमें" (ART) मौके पर पहुंचीं और राहत कार्य शुरू किया गया। घायलों को निकालने के लिए सेना और वायुसेना के हेलिकॉप्टर, जैसे कि चीता और Mi-17, का इस्तेमाल किया जा रहा है। बचाव दलों को बर्फीले और खतरनाक इलाकों में काम करना पड़ रहा है, जिससे राहत कार्य और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

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आधुनिक तकनीक से मदद

पिछली घटनाओं से सबक लेते हुए सेना ने सियाचिन में कई तकनीकी सुधार किए हैं। DRDO द्वारा बनाए गए ऑल-टेरेन व्हीकल्स, डायनीमा रस्सियों, चिनूक जैसे भारी हेलिकॉप्टर और ISRO की टेलीमेडिसिन सुविधा ने काफी मदद पहुंचाई है। HAPO चैंबर जैसी चिकित्सा सुविधाएं भी अब उपलब्ध हैं। फिर भी, मौसम की मार यहां सबसे बड़ी चुनौती बनी रहती है।

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रणनीतिक रूप से अहम क्षेत्र

सियाचिन का भू-स्थान भारत के लिए बहुत अहम है क्योंकि यह पाकिस्तान के कब्जे वाले गिलगित-बाल्टिस्तान और चीन को दिए गए शक्सगाम घाटी के बीच स्थित है। अगर भारत यह क्षेत्र खाली करता है, तो पाकिस्तान और चीन दोनों के लिए लद्दाख में घुसपैठ करना आसान हो सकता है।

मौसम से ज्यादा जानें गईं

1984 में ऑपरेशन मेघदूत के बाद से अब तक 1,000 से ज्यादा जवान सियाचिन में मौसम की वजह से अपनी जान गंवा चुके हैं, जबकि युद्ध में इतने नुकसान नहीं हुए। 2016 में लांस नायक हनुमंथप्पा 6 दिन बाद बर्फ से जिंदा निकले थे, लेकिन बाद में उनका निधन हो गया था। ऐसी घटनाएं सियाचिन की कठिनाई को बयां करती हैं।

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