सिख समुदाय द्वारा पहली बार रोजगार के लंगर
लंगर लगाने के लिए सदैव तत्पर रहने वाले सिख समुदाय द्वारा मध्य प्रदेश के इन्दौर शहर में पहली बार युवाओं के लिए रोजगार के लंगर लगाए गए, जो कि अपने आप में अनोखी पहल कही जा सकती है, क्योंकि आज तक किसी का इस ओर ध्यान ही नहीं गया। इन्दौर के समाज सेवी हरपाल सिंह मोनू भाटिया जो कि अनेक सिख संस्थाओं से जुड़े होने के साथ ही समुदाय के लिए हमेशा बेहतर करते आए हैं। अपने पिता गुरदीप सिंह भाटिया के पद् चिन्हों पर चलते हुए दोनों भाटिया भाई केवल इन्दौर के सिखों के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के सिखों के लिए कार्य करते हुए अनेक जरुरतमंद परिवारों के बच्चों को बेहतर एजुकेशन दिलाने, लड़कियों की शादी, मरीजों को इलाज जैसे कार्य करते आ रहे हैं, मगर इस बार उन्होंने एक अनोखा कार्य किया जो शायद पहले किसी ने करने की सोच ही नहीं दिखाई। आज पंजाब का युवा वर्ग रोजगार के साधन न होने के चलते या तो विदेशों का रुख कर रहा है या फिर नशे का आदी होता दिख रहा है पर अगर पंजाब के युवाओं को रोजगार के साधन मुहैया करवाए जाएं तो शायद वह इस सबसे दूर हटकर अपने परिवार के पालन पोषण पर ध्यान केन्द्रित कर सकते हैं।
स. हरपाल सिंह मोनू भाटिया ने मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ केन्द्रीय गुरु सिंह सभा के बैनर में सिख जॉब फेयर 2025 का आयोजन किया जिसमें समाज के युवाओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। जॉब फेयर में 60 से भी अधिक कंपनियां शामिल हुईं जिनमें बैंकिंग, लॉजिस्टिक्स, सिक्योरिटी, एजुकेशनल इंस्टिट्यूट, स्टार्टअप्स, मार्केटिंग फर्म, आईटी सेक्टर और मैन्युफैक्चरिंग से संबंधित थीं, वहीं इसमें 1500 से भी अधिक युवाओं ने भाग लिया, जिन्हें हर स्ट्रीम के लिए अलग-अलग ऑप्शंस मिले और साथ ही इंटरव्यू के माध्यम से चयन किया गया। जब हरपाल भाटिया ने इस कार्य को करने हेतु सोचा तो उन्हें लगा कि यह बहुत मुश्किल कार्य है, मगर उनके साथियों और उनके द्वारा कई दिनों तक की गई मेहनत से यह कार्य सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ। इतनी सारी कंपनियों को एक जगह लाना और उन्हें सही कैंडिडेट्स मिल सकें, इसके लिए युवाओं का चयन एवं उन्हें इंटरव्यू के लिए तैयार करने के लिए प्री-इंटरव्यू वर्कशॉप का आयोजन भी किया गया। इसमें इंटरव्यू के दौरान आत्मविश्वास, रेज़्यूम किस तरह से बनाना चाहिए आदि बातों के बारे में बताया गया, जिससे आए युवाओं को परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा। इसे देखने के बाद हो सकता है आने वाले समय में देश के अन्य हिस्सों में भी इस प्रकार के जॉब फेयर लगाने के प्रयास किए जायेंगे।
‘खालरा डे’ मनाकर कैनेडियन सरकार 80 के दशक की सच्चाई छुपाना चाहती है : ब्रिटिश कोलंबिया सरकार ने ‘जसवंत सिंह खालरा डे’ मनाने की घोषणा की है जिसे आम जनता को भले ही यह एक सामान्य सांस्कृतिक श्रद्धांजलि, मानवाधिकारों की सराहना या एकजुटता के तौर पर देख रही हो मगर इसके पीछे उनकी मंशा केवल 80 के दशक में पंजाब के काले दौर को छिपाने की है। आज भी पंजाब का कोई भी नागरिक भले ही वह हिन्दू, सिख या किसी भी धर्म या जाति से सम्बन्ध क्यों न रखता हो उस काले दौर को कभी भुला नहीं सकता जो पंजाब को कई साल पीछे ले गया। शिक्षकों को कक्षाओं में गोली मारी गई, उदारवादी सिख नेताओं की बेरहमी से हत्या कर दी गई।
पश्चिमी देशों में जसवंत सिंह खालरा जैसे लोगों को अक्सर न्याययोद्धा के रूप में दिखाया जाता है, जिसने राज्य की ज्यादतियों के खिलाफ आवाज़ उठाई, लेकिन जो चीज़ें अक्सर सुर्खियों में नहीं आतीं, वह है उस समय का सच्चा पंजाब ‘‘1980 और 90’’ का वह दौर जब आम नागरिक खालिस्तानी आतंकवाद के शिकार बन रहे थे। मगर आज विदेशी सरकारें उन खालिस्तानियों को शहीद बताकर उन लोगों के परिवारों के जख्मों को कुरेदती दिखाई देती हैं जिनके अपने खालिस्तानियों के हाथों मारे गए। पंजाब के लोग बड़ी मुश्किल से उस काले दौर से निकल कर पुनः शान्तिपर्वूक जीवन बसर करने लगे। भारत में आज भी सिख सुरक्षित ही नहीं, बल्कि समृद्ध भी हैं। पंजाब आज भी देश का सबसे संपन्न कृषि राज्य है। सिख पुरुष और महिलाएं भारत की सबसे ऊंची संस्थाओं तक पहुंचे हैं ‘‘प्रधानमंत्री, सेना प्रमुख, राज्यपाल, सुप्रीम कोर्ट के जज, उद्योगपति, खेल जगत के सितारे।
पंजाब और पूरे भारत के ज़्यादातर सिखों का खालिस्तानी विचारधारा से कोई लेना-देना नहीं है। तख्त पटना साहिब के प्रवक्ता हरपाल सिंह जोहल का मानना है कि ‘‘खालरा डे’’ घोषित कर ब्रिटिश कोलंबिया मानवाधिकारों का सम्मान नहीं कर रहा, बल्कि राजनीतिक दिखावे में भाग ले रहा है जो अलगाववादी प्रचार को वैधता देता है। भारत के सिखों के लिए, जिन्होंने आतंकवाद को वर्षों तक झेला, फिर उठ खड़े हुए और आज फल-फूल रहे हैं ऐसी घोषणाएं सम्मान से ज़्यादा अपमान जैसी महसूस होती हैं।