Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

आतंकवाद के विरुद्ध कानून : कुछ सवाल

कोई समय था विपक्ष हल्लागुल्ला मचा कर विक्षिप्त हो गया था कि ‘पोटा’ मत बनाओ पोटा मत लगाओ, इसका दुरुपयोग होगा, परन्तु किसी के कान पर जू न रेंगी।

04:10 AM Aug 03, 2019 IST | Ashwini Chopra

कोई समय था विपक्ष हल्लागुल्ला मचा कर विक्षिप्त हो गया था कि ‘पोटा’ मत बनाओ पोटा मत लगाओ, इसका दुरुपयोग होगा, परन्तु किसी के कान पर जू न रेंगी।

कोई समय था विपक्ष हल्लागुल्ला मचा कर विक्षिप्त हो गया था कि ‘पोटा’ मत बनाओ पोटा मत लगाओ, इसका दुरुपयोग होगा, परन्तु किसी के कान पर जू न रेंगी। पोटी को पोटा बना दिया गया, यानि आर्डिनेंस एक्ट हो गया। तब गाज किस-किस पर पड़ी? पोटा का महाजाल फैला कर जैसे ही अभियान शुरू हुआ, दो महिलाओं ने कहा-ठहरो हम तुम्हे बताती हैं कि तुमने क्या किया है? एक थी जयललिता अम्मा जो उस समय तमिलनाडु की मुख्यमंत्री थी और दूसरी बसपा प्रमुख मायावती जो उस समय उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थी। 
Advertisement
इनके जाल में दो बड़ी मछलियां फंसी- वाइको और राजा भैया। सिर मुंडाते ही ओल पड़ गये। जयललिता अम्मा ने पोटा का गलत इस्तेमाल किया और बहन मायावती ने पोटा का सही इस्तेमाल किया था। वाइको के भाव समझे जाने चाहिए थे मगर उनकी भाषा को सामने रखकर अम्मा ताव खा गई थी। जयललिता ने वाइको पर पोटा लगा दिया था। मायावती ने राजा भैया पर पोटा लगाया। मायावती का एक्शन इसलिये ठीक था कि उसने एक बड़े अपराधी के आतंक से उत्तर प्रदेश को मुक्त करने का प्रयास किया था। 
यह भी ठीक है कि उत्तर प्रदेश में आज भी हाथी छाफ राजा भैया और साइकिल छाप छोटे राजा भैयाओं की कोई कमी नहीं। क्योंकि राजा भैया किसी पार्टी की सम्पत्ति नहीं है संस्कृति हो चुके हैं। चाहिये तो यह था कि हुर्रियत के अब्दुल गनी बट और अन्य अलगाववादियों को भी पोटा में बंद कर दिया जाता लेकिन इतना बड़ा कलेजा ​िकसी का नहीं था। बाद में पोटा की समीक्षा की गई और पोटा को खत्म कर दिया गया। मेरा यह सब लिखने का अर्थ यही है कि कानून कोई भी हो उसके दुरुपयोग की आशंकाएं बनी रहती हैं। समस्या उसके चुनिंदा इस्तेमाल पर भी है। 
अब राज्यसभा में पारित होते ही गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम संशोधन विधेयक 2019 पर संसद की मुहर लग गई है। कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने इस विधेयक का विरोध किया और स्थाई समिति के पास भेजने की मांग की थी। गृहमंत्री अमित शाह ने विपक्ष के सवालों का जवाब तीखे तेवरों से दिया। गृहमन्त्री अमित शाह का तर्क था कि सरकार बिल में संशोधन करके व्यक्तिगत शख्स को भी आतंकी घोषित करने की व्यवस्था करना चाहती है। संयुक्त राष्ट्र के पास भी इस तरह का प्रावधान है। अमेरिका, पाकिस्तान, चीन और इस्राइल के पास भी ऐसी ही व्यवस्था है। आतंकी संगठनों के साथ आतंकियों की सम्पत्ति भी जब्त कर ली जायेगी। 
इसमें कोई संदेह नहीं कि कई दशकों से आतंकवाद का दंश झेल रहे भारत में कड़े कानूनों की दरकार है। गृहमन्त्री ने विधेयक के समर्थन में ‘अर्बन नक्सल’ कह कर भी विपक्ष पर निशाना साधा। राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने विपक्ष के एक-एक सवाल का जवाब दिया और सवाल उठाया कि समझौता एक्सप्रैस और दो अन्य मामलों में आरोपियों को रिहा किया गया क्योंकि सबूत नहीं थे। उन्होंने कहा ​िक इन मामलों में चार्जशीट यूपीए शासनकाल में हुई थी।
विधेयक के कानून बन जाने की स्थिति में एनआईए को न केवल किसी संगठन को आतंकवादी घोषित करने की शक्ति मिल जायेगी बल्कि किसी व्यक्ति को भी आतंकवादी घोषित करने का अधिकार होगा। वो व्यक्ति अगर आतंकवादी गतिविधियों को प्रोत्साहित करने में लिप्त पाया जाता है तो सरकार उसे आतंकवादी घोषित कर देगी लेकिन यह प्रक्रिया कितनी निष्पक्ष होगी इस पर गंभीर सवाल उठाये जा रहे हैं। गृह मन्त्री का तर्क था कि इंडियन मुजाहिद्दीन के यासिन भटकल को आतंकवादी घोषित कर पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया होता तो 12 बम धमाके नहीं होते। 
दूसरी ओर सवाल यह भी है कि किसी व्यक्ति को आतंकवादी के तौर पर चिन्हित करने की प्रक्रिया और एनआईए को बिना राज्य सरकार की अनुमति के संपत्ति जब्त करना संघीय ढांचे के अनुकूल है या प्रतिकूल? कई केसों में देखा गया कि आतंकवाद के मामलों में मुस्लिमों को गिरफ्तार करके जेलों में डाल दिया गया। बाद में कोई सबूत नहीं मिलने पर अदालतों द्वारा उन्हें रिहा कर दिया गया। इस तरह निर्दोषों को जेल में सड़ना पड़ा। राजस्थान के समलेटी बम धमाके में 23 वर्ष बाद पांच लोगों को रिहा किया गया क्योंकि इनके खिलाफ कोई सबूत ही नहीं मिला। 
23 वर्ष तक कोई जमानत नहीं, कोई पैरोल नहीं, जिंदगी क्या से क्या हो गई। इस दौरान उनके रिश्तेदार गुजर गये, मां-बाप, नाना सब मर गये। 23 वर्ष जिंदगी का बड़ा हिस्सा होते हैं। इनकी जवानी जेल में बीत गई और जेल से बाहर आकर अब नये सिरे से जिंदगी की शुरूआत करने की चुनौती सामने है। मगर जो साल जेल में बीते उन्हें कौन लौटायेगा? कौन है इसका जिम्मेदार, क्या किसी की जवाबदेही तय होगी। मैं निश्चित रूप से सख्त कानून के पक्ष में हूं लेकिन यह देखना होगा कि कड़े कानूनों का दुरुपयोग न हो। इस पर भी एनआईए पर पैनी नजर रखनी होगी। आतंकवाद केवल बंदूक के बल पर नहीं फैलता बल्कि विचारधारा से फैलता है। इस पर ध्यान देना होगा कि कौन आतंकवादी है या नहीं।
Advertisement
Next Article