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Laxmi Chalisa Lyrics in Hindi: माता लक्ष्मी की इस चालीसा को पढ़ने से धन-धान्य की देवी होंगी प्रसन्न, बरसेगी असीम कृपा

02:38 PM Sep 15, 2025 IST | Shweta Rajput
laxmi chalisa lyrics in hindi  माता लक्ष्मी की इस चालीसा को पढ़ने से धन धान्य की देवी होंगी प्रसन्न  बरसेगी असीम कृपा
Laxmi Chalisa lyrics in hindi
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Laxmi Chalisa Lyrics in Hindi: हिंदू धर्म में माता लक्ष्मी को सुख-समृद्धि और धन-धान्य की देवी माना जाता है। माता लक्ष्मी भगवान विष्णु की पत्नी भी हैं और बैकुंठ में उनके निवास करती हैं। हिंदू धर्म में ऐसा माना जाता है कि माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना से व्यक्ति को धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति माता लक्ष्मी की सच्चे मन से पूजा करता है और व्रत रखता है उसके जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। पुराणों में माता लक्ष्मी का स्वभाव चंचल बताया गया है यानी ऐसा माना जाता है कि माता लक्ष्मी (Laxmi Chalisa)किसी एक स्थान पर अधिक समय तक नहीं रहतीं।

ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति धन का आदर नहीं करता उसे कंगाल होने में भी अधिक समय नहीं लगता। लोग धन-धान्य का मनोकामना को पूरा करने के लिए माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लि तरह-तरह के उपाय करते है, ताकी वह आर्थिक तंगी से छुटकारा पा सके। हिंदू धर्म में शुक्रवार का दिन माता लक्ष्मी को समर्पित किया गया है। इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा करने से और लक्ष्मी चालीसा पढ़ने और सुनने से जीवन में धन-धान्य कभी कोई कमी नहीं होती है। ऐसा कहा जाता है कि श्री लक्ष्मी चालीसा का पाठ करने से जीवन में समृद्धि और धन आता है। हिंदू धर्म में की कृपा पाने का यह सबसे आसान तरीका बताया गया है।

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Laxmi Chalisa Lyrics in Hindi: रोजाना सुने माता लक्ष्मी की ये चालीसा

Laxmi Chalisa lyrics in hindi
Laxmi Chalisa lyrics in hindi

दोहा

मातु लक्ष्मी करि कृपा करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्ध कर पुरवहु मेरी आस॥

सिंधु सुता विष्णुप्रिये नत शिर बारंबार।
ऋद्धि सिद्धि मंगलप्रदे नत शिर बारंबार॥ टेक॥

सोरठा

यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करूं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥

॥ चौपाई ॥ Laxmi Chalisa Lyrics 

Laxmi Chalisa Lyrics
Laxmi Chalisa Lyrics

सिन्धु सुता मैं सुमिरौं तोही। ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोहि॥
तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरबहु आस हमारी॥

जै जै जगत जननि जगदम्बा। सबके तुमही हो स्वलम्बा॥

तुम ही हो घट घट के वासी। विनती यही हमारी खासी॥

जग जननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी।

केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥

कृपा दृष्टि चितवो मम ओरी। जगत जननि विनती सुन मोरी॥

ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥

क्षीर सिंधु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिंधु में पायो॥

चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभुहिं बनि दासी॥

जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रूप बदल तहं सेवा कीन्हा॥

स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥

तब तुम प्रकट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥

अपनायो तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥

तुम सब प्रबल शक्ति नहिं आनी। कहं तक महिमा कहौं बखानी॥

मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन- इच्छित वांछित फल पाई॥

तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मन लाई॥

और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करे मन लाई॥

ताको कोई कष्ट न होई। मन इच्छित फल पावै फल सोई॥

त्राहि- त्राहि जय दुःख निवारिणी। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणि॥

जो यह चालीसा पढ़े और पढ़ावे। इसे ध्यान लगाकर सुने सुनावै॥

ताको कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै।

पुत्र हीन और सम्पत्ति हीना। अन्धा बधिर कोढ़ी अति दीना॥

विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥

पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥

सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥

बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥

प्रतिदिन पाठ करै मन माहीं। उन सम कोई जग में नाहिं॥

बहु विधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥

करि विश्वास करैं व्रत नेमा। होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा॥

जय जय जय लक्ष्मी महारानी। सब में व्यापित जो गुण खानी॥

तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयाल कहूं नाहीं॥

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजे॥

भूल चूक करी क्षमा हमारी। दर्शन दीजै दशा निहारी॥

बिन दरशन व्याकुल अधिकारी। तुमहिं अक्षत दुःख सहते भारी॥

नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥

रूप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥

कहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्धि मोहिं नहिं अधिकाई॥

रामदास अब कहाई पुकारी। करो दूर तुम विपति हमारी॥

दोहा (Laxmi Chalisa)

त्राहि त्राहि दुःख हारिणी हरो बेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी करो शत्रुन का नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित विनय करत कर जोर।
मातु लक्ष्मी दास पर करहु दया की कोर॥

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