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मजदूरों की सुनो...वो तुम्हारी सुनेगा

लगभग इसी तरह का गाना बहुत साल पहले फिल्मों में सुना था-गरीबों की सुनो…। वही आज इसी तरह लग रहा है क्योंकि जब तक हम गरीबों, मजदूरों, वर्कर की नहीं सुनेंगे तब तक हमारी जिन्दगी की पटरी आगे नहीं चल सकती।

12:27 AM May 17, 2020 IST | Kiran Chopra

लगभग इसी तरह का गाना बहुत साल पहले फिल्मों में सुना था-गरीबों की सुनो…। वही आज इसी तरह लग रहा है क्योंकि जब तक हम गरीबों, मजदूरों, वर्कर की नहीं सुनेंगे तब तक हमारी जिन्दगी की पटरी आगे नहीं चल सकती।

मजदूरों की सुनो   वो तुम्हारी सुनेगा
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लगभग इसी तरह का गाना बहुत साल पहले फिल्मों में सुना था-गरीबों की सुनो…। वही आज इसी तरह लग रहा है क्योंकि जब तक हम गरीबों, मजदूरों, वर्कर की नहीं सुनेंगे तब तक हमारी जिन्दगी की पटरी आगे नहीं चल सकती। सच में अगर देखा जाए तो अमीरों या बड़े-बड़े उद्योगों के बगैर तो देश चल सकता है परन्तु मजदूरों, गरीब काम करने वालों के बिना देश नहीं चल सकता क्योंकि कोई भी कारखाना, उद्योग, चाहे छोटा-बड़ा हो, मजदूरों के बगैर नहीं चल सकता है। ऐसा ही समझते हुए हमारे प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री सीतारमण ने पहला काम इन मजदूरों को बचाने के लिए उनकी मदद के लिए अच्छा पैकेज देकर किया है।
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मेरा मानना है कि इन मजदूरों, दिहाड़ी पर काम करने वाले, फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूर, अखबार बेचने वाले हॉकर, जो एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश जाते-आते हैं उनकी सुरक्षा करना और रोटी-रोजी को देखना बहुत जरूरी है, क्योंकि अगर हम इनको सुरक्षित बचा पाएंगे तभी आने वाले समय में बड़ी फैक्ट्रियां, उद्योग दोबारा पटरी पर आ सकेंगे। ये हर उद्योग की रीढ़ की हड्डी भी हैं क्योंकि ये हैं तो काम चलेंगे। मैं अपने ही अखबार का उदाहरण दूं तो इसमें सभी बहुत महत्वपूर्ण हैं। सम्पादक, रिपोर्टर, पेजमेकर, कम्पोजर, एक-एक पढ़ा-लिखा व्यक्ति महत्वपूर्ण है परन्तु इनके साथ उतने ही महत्वपूर्ण हैं मशीन पर काम करने वाले, अखबार को पैक करने वाले, रीलों को इधर-उधर ले जाने वाले, हॉकर भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं, तब जाकर अखबार छपती है और बंटती है। ऐसे ही सभी बड़े-छोटे उद्योग जैसे कपड़े का कारखाना, कोई भी वस्तु बनाने का कारखाना, उसमें जितने प्रोफैशनल  जरूरी हैं उतने ही मजदूर और कारीगर। यही नहीं बिल्डर को ही लें, आर्किटेक्ट, डिजाइनर तो हैं परन्तु जब तक मजदूर न हों तो बिल्डर जीरो है।
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कहने का मकसद  है कि मजदूर,किसान देश के लिए बहुत जरूरी हैं। अगर सरकार ने इतना अच्छा पैकेज दिया है, इनके बारे में सोचा है तो हर स्थान पर एक आफिस या हैल्पलाइन जरूर होनी चाहिए ता​िक हर गरीब मजदूर को सहायता मिल सके, उनको ज्ञान हो सके।
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पिछले दिनों एक वीडियो भी वायरल हुई कि कुछ मजदूर लॉकडाउन के कारण एक बि​ल्डिंग में थे तो वह काम करने के इतने आदी हैं कि वो खाली नहीं बैठ सके। उन्होंने सारी बिल्डिंग को साफ​ किया, उसकी रंगाई यानी पेंट भी कर ​दिया। वाह कितने मेहनती हैं ये मजदूर। यही नहीं मजदूरों को आते-जाते देख रहे, कई मजदूर एक साइकिल पर अपने घर का सामान और बच्चों को ​बैठा कर चल रहे हैं। कई मजदूर कंधों पर अपने बुजुर्ग माता-पिता को लेकर चल रहे हैं। कई जगह एक मजदूर मां और अपने विकलांग बच्चे को गोदी में उठाकर चल रही है। मेरे सामने तो सही मायने में एक मजदूर का, एक गरीब कार्यकर्ता का करैक्टर सामने आया, कितना मेहनती,  कितना जरूरतमंद, कितना ईमानदार, कितना संस्कारों से भरा है मजदूर।
यही नहीं मैंने अपने किचन में काम करने वाले कुक से बात करके जाना कि अगर वह लॉकडाउन के कारण घर नहीं जा रहा तो उसे अपनी बीवी, बच्चे और माता-पिता की कितनी चिंता है। जब मैं अचानक किचन में गई तो एक महिला की जोर-जोर से बात करने की आवाज आ रही थी। मैंने बड़ी हैरानगी से देखा तो पाया वीडियो  कॉल पर अपनी बीवी से बात कर रहा है। बच्चे, माता-पिता का हाल जान रहा था। मैंने उससे पूछा, कौन है तो झट से उसने कहा आपकी बहू रानी और उधर से बहू रानी ने अपने सिर पर शरमा कर पल्लू रख लिया। वाह! क्या संस्कृति और संस्कार हैं इनमें।
प्रवासी मजदूरों के लिए यद्यपि व्यवस्था का ऐलान किया गया है, परन्तु मेरा विनम्रतापूर्वक अनुरोध है कि सड़क पर चलने वाले मजदूर भाई-बहनों की सुरक्षा जरूर सुनिश्चित की जाए, क्योंकि 100 से ज्यादा मजदूर कोई रेल पटरी पर, कोई एक्सिडेंट से, कोई चलते-चलते बीमार होकर मारे जा चुके हैं।  हालांकि दो दिन पहले औरंगाबाद और भोपाल के पास 16 लोग ट्रेन से कटकर मर गए, जबकि शनिवार की सुबह उत्तर प्रदेश के ओरैया में ट्रक में सवार होकर जा रहे 24 श्रमिकों पर एक ट्रक के उलट जाने से उनकी मौके पर ही मौत हो गई। इसी तरह मध्य प्रदेश के सागर जिला के नैशनल हाइवे नम्बर-86 पर मजदूरों को ले जा रहा ट्रक पलट गया, जिससे उनकी मौत हो गई।
 अभी सरकार भी बहुत कुछ कर रही है। सामाजिक संस्थाएं इनकी सहायता कर रही हैं, खाना बांट रहे हैं, राशन दे रहे हैं। जैसे चौपाल संस्था, रोटी बैंक, गुरुद्वारे, मंदिर आदि संस्थाएं आगे आ रही हैं। यहां तक कि आम गृहणियों से भी बात होती है तो हर घर की गृहिणी भी दिल से कम से कम 4-5 जनों के लिए खाने के पैकेट बनाकर बांट रही है। पिछले दिनों मैंने भी जयभगवान गोयल, भोलानाथ विज जी द्वारा कई राशन के पैकेट बंटवाए, परन्तु जितना भी करो तो कम है। लम्बा लॉकडाउन है, सबको ऐसे समय का अनुभव भी नहीं है।
आखिर में मैं यही कहूंगी कि कोरोना महामारी के चलते अमीर वर्ग तो सम्भल जाता है लेकिन मध्यम वर्ग और छोटे मजदूरों, किसानों को बचाना बहुत जरूरी है। उनके घर पहुंचाने से लेकर कल उन्हें वापिस धंधे में लगाना एक बड़ा चुनौतीपूर्ण काम है। जब सरकार यह काम कर लेगी तो सचमुच यह एक भलाई के काम के साथ-साथ सही कर्त्तव्य पालन भी होगा। बीमारी-महामारी और मुसीबत के समय न केवल सरकार, न केवल विपक्ष बल्कि देश में भी एकजुटता होनी चाहिए।  निर्मला सीतारमन ने एक वित्त मंत्री के रूप में, एक महिला के रूप में अच्छा दायित्व निभाया है।
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Kiran Chopra

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