For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

आयुर्वेद के जन्मदाता हैं भगवान धन्वंतरि

दीवाली से दो दिन पूर्व ‘धनतेरस’ नामक त्यौहार मनाया जाता है, जो इस वर्ष 29 अक्तूबर को मनाया जा रहा है

10:13 AM Oct 27, 2024 IST | Yogesh Kumar Goyal

दीवाली से दो दिन पूर्व ‘धनतेरस’ नामक त्यौहार मनाया जाता है, जो इस वर्ष 29 अक्तूबर को मनाया जा रहा है

आयुर्वेद के जन्मदाता हैं भगवान धन्वंतरि

दीवाली से दो दिन पूर्व ‘धनतेरस’ नामक त्यौहार मनाया जाता है, जो इस वर्ष 29 अक्तूबर को मनाया जा रहा है। धनतेरस के प्रचलन का इतिहास बहुत पुराना माना जाता है। यह त्यौहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है तथा इस दिन आरोग्य के देवता भगवान धन्वन्तरि एवं धन व समृद्धि की देवी लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। धन्वंतरि को आयुर्वेद का देवता और देवताओं का चिकित्सक माना गया है, इसलिए धनतेरस को चिकित्सकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय इसी दिन धन्वंतरि आयुर्वेद और अमृत लेकर प्रकट हुए थे। धनतेरस मनाए जाने के संबंध में जो प्रचलित कथा है, उसके अनुसार कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन देवताओं और असुरों द्वारा मिलकर किए जा रहे समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से निकले नवरत्नों में से एक धन्वंतरि ऋषि भी थे, जो जनकल्याण की भावना से अमृत कलश सहित अवतरित हुए थे। धन्वंतरि ऋषि ने समुद्र से निकलकर देवताओं को अमृतपान कराया और उन्हें अमर कर दिया। यही वजह है कि धन्वंतरि को ‘आरोग्य का देवता’ माना जाता है और आरोग्य तथा दीर्घायु प्राप्त करने के लिए ही लोग इस दिन उनकी पूजा करते हैं। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज के पूजन का भी विधान है और उनके लिए भी एक दीपक जलाया जाता है, जो ‘यम दीपक’ कहलाता है। धार्मिक ग्रथों में यमराज के पूजन के संबंध में एक कथा प्रचलित है। एक बार यमराज ने अपने दूतों से प्रश्न किया कि क्या प्राणियों के प्राण हरते समय तुम्हें कभी किसी प्राणी पर दया भी आई? यह प्रश्न सुनकर सभी यमदूतों ने कहा, ‘‘महाराज, हम सब तो आपके सेवक हैं और आपकी आज्ञा का पालन करना ही हमारा धर्म है।

अतः दया और मोह-माया से हमारा कुछ लेना-देना नहीं है।’’ यमराज ने उनसे जब निर्भय होकर सच-सच बताने को कहा, तब यमदूतों ने बताया कि उनके साथ एक बार वास्तव में ऐसी एक घटना घट चुकी है। यमराज ने विस्तार से उस घटना के बारे में बताने को कहा तो यमदूतों ने बताया कि एक दिन हंस नाम का एक राजा शिकार के लिए निकला और घने जंगलों में अपने साथियों से बिछुड़कर दूसरे राज्य की सीमा में पहुंच गया। उस राज्य के राजा हेमा ने राजा हंस का राजकीय सत्कार किया और उसी दिन हेमा की पत्नी ने एक अति सुन्दर पुत्र को जन्म दिया लेकिन ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की कि विवाह के मात्र चार दिन बाद ही इस बालक की मृत्यु हो जाएगी। यह दुःखद रहस्य जानकर हेमा ने अपने नवजात पुत्र को यमुना के तट पर एक गुफा में भिजवा दिया और वहीं पर उसके लालन-पालन की शाही व्यवस्था कर दी गई और बालक पर किसी युवती की छाया भी नहीं पड़ने दी लेकिन विधि का विधान तो अडिग था। एक दिन राजा हंस की पुत्री घूमते-घूमते यमुना तट पर निकल आई और राजकुमार की उस पर नजर पड़ गई।

उसे देखते ही राजकुमार उस पर मोहित हो गया। राजकुमारी की भी यही दशा थी। अतः दोनों ने उसी समय गंधर्व विवाह कर लिया लेकिन विधि के विधान के अनुसार 4 दिन बाद राजकुमार की मृत्यु हो गई। यमदूतों ने यमराज को बताया कि उन्होंने ऐसी सुन्दर जोड़ी अपने जीवन में इससे पहले कभी नहीं देखी थी। वे दोनों कामदेव और रति के समान सुन्दर थे। इसीलिए राजकुमार के प्राण हरने के बाद नवविवाहिता राजकुमारी का करूण विलाप सुनकर उनका कलेजा कांप उठा। घटना का पूर्ण वृतांत सुनने के बाद यमराज ने यमदूतों से कहा कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन धन्वंतरि ऋषि का पूजन करने तथा यमराज के लिए दीप दान करने से इस प्रकार की अकाल मृत्यु से बचा जा सकता है। ऐसी मान्यता है कि उसके बाद से ही इस दिन धन्वंतरि ऋषि और यमराज का पूजन किए जाने की प्रथा आरंभ हुई।

धनतेरस के दिन घर के टूटे-फूटे बर्तनों के बदले तांबे, पीतल अथवा चांदी के नए बर्तन तथा आभूषण खरीदना शुभ माना जाता है। कुछ लोग नई झाड़ू खरीदकर उसका पूजन करना भी इस दिन शुभ मानते हैं।

Advertisement
Advertisement
Author Image

Yogesh Kumar Goyal

View all posts

Advertisement
×