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देश को एक कर गया - महाकुंभ

अपने जीवन में छोटे-बड़े 3-4 कुंभ स्नानों में मैं जरूर गया होऊंगा, पर इस बार प्रयागराज

10:15 AM Mar 06, 2025 IST | Editorial

अपने जीवन में छोटे-बड़े 3-4 कुंभ स्नानों में मैं जरूर गया होऊंगा, पर इस बार प्रयागराज

देश को एक कर गया   महाकुंभ

अपने जीवन में छोटे-बड़े 3-4 कुंभ स्नानों में मैं जरूर गया होऊंगा, पर इस बार प्रयागराज में महाकुंभ की बात ही कुछ और थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रशंसा करनी होगी कि 45 दिन के इस महाकुंभ में देश के कोने-कोने से आए करोड़ों लोग बिना बाधा स्नान करके गए हैं। महाकुंभ में बहुत हैरान करने वाली बात यह थी कि करोड़ों लोग एक नदी पर जुटे थे, कोई जाति, वर्ग, आयु नहीं देख रहा था। आम आदमी के बीच में से ज्यादातर लोग निम्न वर्ग से थे। उन्हीं के साथ घुल-मिलकर मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग ने भी उसी स्थान पर स्नान किया, जाति व वर्ग के सब बन्धन टूट गए थे।

नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से जब मैंने ट्रेन पकड़ी, तो चारों तरफ इतनी अच्छी व्यवस्था देखकर विश्वास नहीं हो रहा था। यह ठीक है कि भगदड़ के बाद वहां और भी अच्छे इंतजाम किए गए थे, पर फिर भी हमने बड़े आराम से ट्रेन पकड़ी और उसने समय से प्रयागराज पहुंचाया। ज्यादातर लोगों ने अपनी पीठ पर बैग लाद रखा था। पर जो अच्छी बात थी, वह यह थी कि किसी का चेहरा मैंने न उदास देखा और न थकावट देखी। सभी प्रसन्नता से बातें करते हुए जा रहे थे। मानो उनको पता नहीं क्या मिल गया हो। एक संतुष्टि का भाव था।

प्रयागराज पहुंचने पर स्टेशन से ही जगह-जगह पर साईन बोर्ड लगे हुए थे, कि आपको किस दिशा की ओर जाना है। थ्री व्हिलर, गाड़ी, टैक्सी, मोटर-साइकिल और स्कूटर थे, जो लोगों को आगे पहुंचा रहे थे। यह ठीक है कि वे मनमाने पैसे वसूल रहे थे और उनको यह लगता था कि यह सीजन बार-बार नहीं आएगा।

भावुक करने वाला दृश्य तो तब था, जब एक महिला अपनी पीठ पर अपनी सास को उठाकर कुंभ स्नान के लिए ले जा रही थी और एक आदमी अपने अपंग बेटे को गोद में लेकर जा रहा था। ऐसे कितने ही लोग थे। क्या बड़े क्या छोटे सब चले जा रहे थे। रास्ते में 10-10 रुपए की प्लास्टिक की शीट खरीदकर लोग कहीं पर भी बैठकर भोजन कर लेते थे। संतुष्टि का भाव उनके चेहरे पर साफ झलकता रहता था।

घाट पर पहुंचकर देखा तो पूरा शहर बसा हुआ था। भीड़ में इतनी जगह जरूर बन जाती थी कि लोग आगे बढ़कर स्नान करने जरूर पहुंच जाएं। आश्रमों ने अपने-अपने बाड़े बना रखे थे और जगह-जगह पर छोटी-मोटी खाने-पीने की दुकानें थीं। व्यवस्था इतनी चाक-चौबंद कि योगी जी की जितनी तारीफ की जाए, उतनी कम है। पुलिस की व्यवस्था व व्यवहार बहुत अच्छा था। सुरक्षा के लिए 55 पुलिस स्टेशन थे और 75,000 से ज्यादा पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे। 3000 एआई सीसीटीवी कैमरों से निगरानी की जा रही थी। वाटर एम्बुलेंस जहां पानी में थी, वहीं सड़कों पर मेडिकल एम्बुलेंस घूम रही थी। सब लोग तत्पर थे। जिसको जहां जगह मिल रही थी, वह वहीं डुबकी लगा रहा था। करीब 44 घाट थे, जिनमें 10 पक्के घाट और 34 अस्थायी घाट थे। महाकुंभ की दूसरी बात यह थी कि कहीं भी महाकुंभ को प्रधानमंत्री मोदी या मुख्यमंत्री योगी के प्रचार के लिए इस्तेमाल नहीं किया गया था। जहां योगी के नेतृत्व में शासन, प्रशासन था वहां जनता ने भी मिलकर इस एकता के महाकुंभ को सफल बनाया था। महाकुंभ पर एक भगदड़ को छोड़ दें तो कहीं कोई भगदड़ नहीं दिखाई दे रही थी, शांत स्वभाव से लोग जा रहे थे।

सबसे बड़ी बात तो यह है कि जो लोग कुंभ में आए थे, उनमें मजदूर, कर्मचारी, किसान थे, जो अपनी दिहाड़ियों का नुकसान करके वे 7-7 दिन में प्रयागराज पहुंच रहे थे और स्नान कर रहे थे। आम आदमी व गरीब भी बड़ी संख्या में थे। लोग इस बात पर विवाद कर रहे हैं कि 45 दिन के इस महाकुंभ में 66 करोड़ लोगों ने डुबकी लगाई या कम ने डुबकी लगाई। पर योगी जी ने इतना बड़ा आयोजन करके वैसा ही कर लिया जैसा लोग कहते हैं कि लड़की की शादी हुई तो गंगा स्नान कर लिया। प्रयागराज शहर ने जिसकी कुल आबादी 16,25,000 है, उसने 66 करोड़ लोगों की मेहमानवाज़ी की और किसी ने कोई शिकायत नहीं की।

पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन में अमृत चार जगहों जिनमें प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक भी आते हैं में अमृत की कुछ बूंदें गिर गई, तभी से इन 4 स्थानों पर 12 साल के अंतराल पर कुंभ का आयोजन होता है। करोड़ों लोगों ने कुंभ में स्नान करके इस अमृत को तो चख ही लिया है। पुण्य केवल कुंभ स्नान का नहीं है, जिस समय व्यक्ति ने इच्छाशक्ति कर ली जाने की, तो उसी समय एक चौथाई स्नान हो गया। दूसरा मार्ग की बाधाएं सहते हुए जब व्यक्ति सैकड़ों किलोमीटर दूर पहुंच जाता है, तो एक चौथाई स्नान तब हो जाता है और बाकी का स्नान जब अपने और अपने परिवार वालों के नाम की डुबकी लगाता है, तो उससे पूर्ण हो जाता है। 14 जनवरी मकर संक्रांति के पर्व से शुरू होकर महा​िशवरात्रि यानि कि 26 फरवरी को समाप्त होने वाले अपने जीवन में 144 साल बाद आए इस महाकुंभ स्नान की डुबकी वर्षों -वर्ष याद रहेगी।

अब तो इसके 3 साल बाद नासिक में कुंभ का आयोजन होगा और उसके 3 साल बाद उज्जैन में, उसके 3 साल बाद हरिद्वार में और फिर 3 साल बाद प्रयागराज में होगा। ईश्वर स्वस्थ रखते हुए, इतने भी स्नान करा दें तो बहुत है।

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