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Maharashtra सरकार ने थ्री-लैंग्वेज पॉलिसी का आदेश किया रद्द, जानें क्यों लिया गया ये फैसला?

08:45 PM Jun 29, 2025 IST | Amit Kumar
maharashtra सरकार ने थ्री लैंग्वेज पॉलिसी का आदेश किया रद्द  जानें क्यों लिया गया ये फैसला
Maharashtra सरकार ने थ्री-लैंग्वेज पॉलिसी का आदेश किया रद्द, जानें क्यों लिया गया ये फैसला?

Maharashtra: महाराष्ट्र सरकार ने थ्री-लैंग्वेज पॉलिसी (तीन-भाषा नीति) से जुड़ा अपना नया सरकारी आदेश (GR) वापस ले लिया है. यह निर्णय तब लिया गया जब हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में थोपने के आरोपों को लेकर विरोध बढ़ने लगा. अब सरकार ने नीति की दोबारा समीक्षा के लिए एक नई समिति बनाने का फैसला किया है. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि यह फैसला राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में लिया गया.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने जानकारी दी कि थ्री-लैंग्वेज पॉलिसी के क्रियान्वयन को लेकर डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक समिति बनाई जाएगी. जब तक इस समिति की रिपोर्ट नहीं आती, तब तक इस नीति से जुड़े दोनों सरकारी आदेश रद्द रहेंगे. मुख्यमंत्री ने यह स्पष्ट किया कि मराठी भाषा हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण है और इस नीति में किसी भी तरह से मराठी की अनदेखी नहीं की जाएगी. सरकार का उद्देश्य किसी भाषा को थोपना नहीं है.

क्या था पहले GR में?

सरकार द्वारा जारी किए गए संशोधित आदेश में कहा गया था कि मराठी और अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाएगा. यह निर्णय राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत लिया गया था. हालांकि, आदेश में यह भी कहा गया था कि यदि किसी कक्षा में कम से कम 20 छात्र हिंदी की जगह किसी अन्य भारतीय भाषा को चुनते हैं, तो स्कूल को उस भाषा के शिक्षक की व्यवस्था करनी होगी या ऑनलाइन पढ़ाई की सुविधा देनी होगी.

विपक्षी पार्टियों का विरोध

इस नीति के खिलाफ विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध जताया. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार हिंदी को बढ़ावा देकर क्षेत्रीय भाषाओं और खासकर मराठी भाषा की उपेक्षा कर रही है. इस फैसले से महाराष्ट्र की भाषाई विविधता को नुकसान पहुंच सकता है.

मनसे का आंदोलन और बयान

मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने इस मुद्दे पर सरकार का विरोध किया और मराठी जनता से सड़कों पर उतरने की अपील की. उन्होंने GR रद्द होने के बाद कहा कि यह सरकार की समझदारी नहीं, बल्कि मराठी लोगों के आक्रोश का नतीजा है.  उन्होंने सवाल उठाया कि सरकार हिंदी को लेकर इतनी जिद क्यों कर रही थी और इसके पीछे किसका दबाव था. अब इस पूरे मामले की जिम्मेदारी नई समिति को दी गई है जो नीति की समीक्षा करेगी और रिपोर्ट देगी. सरकार ने कहा है कि इस रिपोर्ट के आधार पर ही भविष्य में कोई फैसला लिया जाएगा.

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