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महाराष्ट्र एक कदम आगे !

महाराष्ट्र की राजनीति का आज अंतिम पटाक्षेप मुख्यमन्त्री एकनाथ शिन्दे द्वारा विधानसभा में अपना बहुमत सिद्ध करने के साथ ही हो गया।

01:26 AM Jul 05, 2022 IST | Aditya Chopra

महाराष्ट्र की राजनीति का आज अंतिम पटाक्षेप मुख्यमन्त्री एकनाथ शिन्दे द्वारा विधानसभा में अपना बहुमत सिद्ध करने के साथ ही हो गया।

महाराष्ट्र एक कदम आगे
महाराष्ट्र की राजनीति का आज अंतिम पटाक्षेप मुख्यमन्त्री एकनाथ शिन्दे द्वारा विधानसभा में अपना बहुमत सिद्ध करने के साथ ही हो गया। श्री शिन्दे की शिवसेना व भाजपा की सरकार को 287 सदस्यीय विधानसभा में 164 मत मिले जबकि विपक्ष में केवल 99 वोट ही आये। इससे पूर्व कल हुए विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव में भी लगभग यही स्थिति रही थी जिससे भाजपा के प्रत्याशी राहुल नार्वेकर को अध्यक्ष पद संभालने में कोई दिक्कत नहीं हुई थी। इससे यह तो पता चलता ही है कि राज्यपाल श्री होशियार सिंह कोशियारी का शिन्दे को सरकार बनाने की दावत देना गलत नहीं था क्योंकि राज्य में अब एक स्थिर सरकार है। मगर महाराष्ट्र की राजनीति के पहले चरण का ही यह पटाक्षेप माना जायेगा क्योंकि अगले चरण में पूर्व मुख्यमन्त्री उद्धव ठाकरे व शिन्दे की शिवसेनाओं के बीच कानूनी व विधानमंडलीय लड़ाई का नया दौर शुरू होगा। जैसी कि उम्मीद थी, अध्यक्ष पद पर बैठते ही श्री नार्वेकर ने श्री शिन्दे के गुट के 39 शिवसेना विधायकों के दल को ही असली शिवसेना मानते हुए ठाकरे के समर्थन में खड़े 16 विधायकों के खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया। जिन्होंने शिन्दे गुट के मुख्य सचेतक के निर्देश की अवहेलना करते हुए अध्यक्ष चुनाव व शक्ति परीक्षण में विपक्ष के पक्ष में मतदान किया था।
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इससे पहले उद्धव ठाकरे गुट की शिवसेना के मुख्य सचेतक ने इन चुनावों के लिए शिवसेना के सभी विधायकों को विपक्ष के समर्थन में मत देने के निर्देश जारी किये थे। मगर शिन्दे गुट इससे पहले ही अपने गुट के 16 विधायकों के खिलाफ कार्रवाई किये जाने को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में जा चुका है जिससे  सदन के भीतर उनकी सदस्यता अधिकार बहाल रह सकें। इस याचिका पर अब 11 जुलाई को सुनवाई होनी है। ठाकरे गुट ने न्यायालय से मांग की थी कि वह इन 16 विधायकों के बारे में अन्तिम फैसला होने तक विधानसभा में शक्ति परीक्षण होने पर भी रोक लगाये मगर राज्यपाल श्री कोशियारी ने श्री शिन्दे को सरकार बनाने का न्यौता दे दिया था और सदन का दो दिवसीय विशेष सत्र बुला कर उनसे अपना बहुमत साबित करने को कहा था। राज्यपाल के इसी फैसले के खिलाफ कांग्रेस व ठाकरे गुट सर्वोच्च न्यायालय में गया और उसने मांग की कि 11 जुलाई तक सरकार का शक्ति परीक्षण टाला जाये और 16 विधायकों को दल बदल नियम के तहत विधानसभा उपाध्यक्ष द्वारा दिये गये नोटिस पर अन्तिम फैसले का इन्तजार किया जाये। सर्वोच्च न्यायालय ने इस याचिका को अस्वीकार कर दिया।
यहां यह महत्वपूर्ण है कि विधानसभा में इसके अध्यक्ष का पद पिछले एक साल से खाली पड़ा हुआ था और सदन का कामकाज उपाध्यक्ष की मार्फत ही चलाया जा रहा था। उद्धव ठाकरे सरकार कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस व शिव सेना की मिली जुली ‘महाविकास अघाड़ी’ सरकार थी। इस गठबन्धन सरकार ने पहले अध्यक्ष पद पर कांग्रेस के उम्मीदवार को चुना हुआ था मगर उनके इस्तीफा देने के बाद यह सरकार राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता श्री नरहरि को उपाध्यक्ष बना कर ही काम चला रही थी। अब इस गठबन्धन के नेता सिर पकड़ रहे हैं कि काश उन्होंने अध्यक्ष पद को इतने लम्बे समय तक खाली न रहने दिया होता तो उनकी सरकार न गिरती और अपने अध्यक्ष की मार्फत वह श्री एकनाथ शिन्दे द्वारा  शिवसेना में किये गये विद्रोह का मुकाबला कर सकते थे। परन्तु इस अवधारणा में कोई दम नहीं है क्योंकि जिस प्रकार उपाध्यक्ष के फैसले के विरुद्ध श्री शिन्दे सर्वोच्च न्यायालय में गये तो उसी प्रकार अध्यक्ष के फैसले के विरुद्ध भी जा सकते थे। सर्वोच्च न्यायालय की शरण में सबसे पहले श्री शिन्दे ही तब गये थे जब ठाकरे गुट की तरफ 16 बागी शिवसेना विधायकों के खिलाफ उपाध्यक्ष से कार्रवाई शुरू कराई गई थी। अतः राज्यपाल के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उस स्थिति में भी संभवतः नहीं पलटा जाता। वैसे भी राज्य के संवैधानिक मुखिया होने की वजह से उन्हें राज्य की राजनैतिक परिस्थितियों का संज्ञान लेते हुए स्थायी व बहुमत की सरकार की संस्थापना हेतु आवश्यक संवैधानिक कदम उठाने का पूरा अधिकार था।
दूसरी तरफ संसद के बुलाये गये विशेष दो दिवसीय सत्र में सत्तारूढ़ पक्ष को खाली पड़े अध्यक्ष पद को भी बरने का पूरा अधिकार था। यह कार्य उसने पूर्ण संवैधानिक तरीके से पूरा किया। इसलिए नये अध्यक्ष श्री नार्वेकर अब जो भी अब फैसला लेंगे वह संसदीय प्रणाली के नियमों व संविधान के तहत ही होगा। उन्होंने शिन्दे गुट के शिवसेना विधायकों के विधानमंडलीय दल को ही असली शिवसेना माना है। उनके फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती क्योंकि सदन के भीतर की व्यवस्था के अध्यक्ष ही संरक्षक होते हैं। यह बात दीगर है कि दल-बदल अधिनियम के तहत शिन्दे गुट के 39 विधायकों को ही शिवसेना की असली राजनैतिक इकाई मानने के नियम क्या कहते हैं। इसके लिए चुनाव आयोग से लेकर शिवसेना के राजनैतिक संगठनात्मक ढाचें में शिन्दे व ठाकरे गुट में समानान्तर युद्ध हो सकता है। मगर जहां तक विधानसभा के भीतर दल-गत स्थिति का मामला है तो अध्यक्ष का फैसला ही अन्तिम फैसला माना जायेगा। इसे देखते हुए फिलहाल यही लगता है कि शिन्दे सरकार पर किसी प्रकार का खतरा नहीं है।
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Aditya Chopra

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