Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

मालदीव और भारत

NULL

10:56 PM Feb 03, 2018 IST | Desk Team

NULL

मालदीव की सबसे बड़ी अदालत ने पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद को आतंकवाद के आरोपों से बरी कर दिया है। कोर्ट के इस अभूतपूर्व फैसले से लंदन में निर्वासित जीवन जी रहे नशीद के लिए मालदीव लौटने का रास्ता आसान हो गया है। मालदीव की सर्वोच्च अदालत ने सभी राजनीतिक बंदियों को भी रिहा करने के आदेश दिए हैं। अदालत के इस निर्णय से मालदीव की राजनीति में तूफान आना तय है। अदालत के इस फैसले से मौजूदा राष्ट्रपति यामीन अब्दुल को झटका लगा है। अब नशीद और उनके समर्थक यामीन का इस्तीफा मांग रहे हैं। राजधानी माले में लोग प्रदर्शन कर रहे हैं। पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद को भारत समर्थक माना जाता है। नशीद को 2012 में तख्तापलट कर राष्ट्रपति पद से अपदस्थ कर दिया गया था।

नशीद को 2005 में आतंकवाद के आरोपों में 13 वर्ष की सजा सुनाई गई थी, जिसके बाद वह पिछले वर्ष अपना इलाज कराने लंदन गए थे और उन्होंने वहां शरण ले ली थी। उसके बाद से ही वह स्व-निर्वासन में रह रहे थे। मालदीव के राष्ट्रपति यामीन ने लगभग सभी प्रतिद्वंद्वियों को जेलों में ठूंस दिया था। अगर कोर्ट के आदेश को स्वीकार करते हुए वह राजनीतिक बंदियों को रिहा करते हैं तो विपक्ष को संसद में बहुमत प्राप्त हो जाएगा और ऐसे में राष्ट्रपति यामीन को पद छोड़ना पड़ सकता है। मालदीव की जनता यामीन के मनमाने शासन को खत्म करने की मांग कर रही है। नशीद ने खुद भी सभी राजनीतिक बंदियों की रिहाई और राष्ट्रपति यामीन से इस्तीफे की मांग की है।

भारत और मालदीव के संबंध काफी प्राचीन हैं। मालदीव का भारत के लिए सामरिक महत्व बहुत अधिक है। हिन्द महासागर और प्रशांत महासागर में मालदीव चीन की रणनीति का केन्द्र बना हुआ है। मालदीव पर भारत की ढीली पकड़ मालदीव से ज्यादा भारत के लिए खतरनाक हो सकती है। अब सवाल यह है कि मालदीव को भारत विरोधी शक्तियों का अड्डा नहीं बनने देने के लिए भारत को कैसी भूमिका निभानी होगी? पहले तो भारत सिर्फ धमकी से ही मालदीव के लोकतंत्र की रक्षा कर लेता था लेकिन नशीद के तख्ता पलट के बाद हालात काफी बदल गए। क्या भारत तटस्थ रह सकता है? यह सवाल उचित है लेकिन ऐसी तटस्थता का कोई औचित्य नहीं, क्योंकि इससे भारत को ही नुक्सान हो सकता है। मालदीव की वर्तमान सत्ता इस समय चीन के चंगुल में है। चीन पड़ोस में भारत को घेर चुका है। हाल ही में मालदीव ने चीन के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमैंट किया जो भारत के लिए बड़ा झटका है।

पाकिस्तान के बाद मालदीव दक्षिण एशिया का दूसरा ऐसा देश बन गया है जिसने चीन के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमैंट किया है। वहां चीन के बड़े प्रोजैक्ट चल रहे हैं और मालदीव को कर्ज का तीन चौथाई हिस्सा चीन के हाथों मिला है। मालदीव के एक सरकार समर्थक समाचार पत्र में भारत की जबरदस्त आलोचना की गई थी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मुस्लिम विरोधी करार दिया था। यहां तक कि भारत को दुश्मन देश बताया था। भारत और मालदीव में तनाव तो नशीद के तख्तापलट के बाद से ही चल रहा था। हालांकि मालदीव के विदेश मंत्री ने पिछले माह भारत आकर विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज से भेंट की और भारत की चिन्ताओं को दूर करने का प्रयास किया।

भारत बीते एक दशक से मालदीव के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप करने से बच रहा है, इसका सीधा फायदा चीन ने उठाया। एक दौर था जब दक्षिण एशिया को लेकर भारत की विदेश नीति बेहद आक्रामक थी। यह स्थिति राजीव गांधी सरकार से लेकर नरसिम्हा राव सरकार तक रही। भारत ने वर्ष 1988 में मालदीव में तख्ता पलट की कोशिशों को नाकाम किया था लेकिन इसके बाद से भारत का प्रभाव बेहद कम होता गया। मालदीव एक ऐसा देश है जिसकी चीन के लिए भौगोलिक स्थिति सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। चीन के मैरी टाईम सिल्क रूट में मालदीव एक अहम सांझेदार है।

भारत ने मालदीव सरकार से वहां के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अमल करने के लिए कहा है। अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। मोहम्मद नशीद मालदीव में पहली बार लोकतांत्रिक तरीके से राष्ट्रपति बनने की उपलब्धि पा चुके हैं। भारत को कुछ ऐसा करने की जरूरत है जिससे मालदीव में लोकतांत्रिक सरकार का गठन हो और उसके साथ हमारे ऐसे संबंध हों जिससे उसे किसी अन्य देश की सहायता लेने की जरूरत ही न पड़े। हमारी उपेक्षा ने ही मालदीव में ज्वालामुखी के बीज बोए हैं, वहां इस्लामी कट्टरपंथी ताकतवर होते गए। भारत के नेतृत्व को मालदीव के मामले में कूटनयिक दबाव बनाए रखना होगा। यह काम भारत आैर अमेरिका मिलकर कर सकते हैं।

Advertisement
Advertisement
Next Article