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ममदानी की जीत और उषा की हार

04:00 AM Nov 13, 2025 IST | Chander Mohan
ममदानी की जीत और उषा की हार
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न्यूयार्क एक अद्भुत शहर है। दुनिया के करोड़ों लोगों के लिए यह सपनों का शहर है, जहां सपने पूरे भी होते हैं। जनसंख्या 90 लाख के क़रीब है। प्रति परिवार वार्षिक आमदनी 75000डालर है। केवल आठ देश, अमेरिका, चीन, जर्मनी, जापान, भारत, फ्रांस, यूके और इटली हैं जिनकी जीडीपी न्यूयार्क की 2.37 डालर की जीडीपी से अधिक है। न्यूयार्क का बजट 116 बिलियन डॉलर है। इसके मुक़ाबले हमारे सबसे बड़े शहर मुम्बई का बजट 8.9 बिलियन डॉलर (74.427 करोड़ रुपए) है।
यहां 350000 करोड़पति हैं जिनमें सबसे प्रसिद्ध (या अप्रसिद्ध) डाेनाल्ड ट्रम्प हैं ! न्यूयार्क में 32 लाख लोग ऐसे रहते हैं जिनका जन्म अमेरिका से बाहर हुआ है। शहर की आबादी का केवल 31% व्हाइट है। बाक़ी अश्वेत, अफ्रीकी, एशियन या दक्षिण अमेरिका के हिसपैनिक लोग हैं। यही कारण है कि यह शहर पूंजीवाद की राजधानी होने के बावजूद अधिकतर उदारवादी और प्रगतिशील रहा है।
न्यूयार्क के बाहर बंदरगाह में एक छोटे टापू में स्थित स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी (आज़ादी की प्रतिमा) है। उसके आधार पर एक पट्टिका है जिस पर कवि एम्मा लाजरस की कविता की यह पंक्तियां लिखी हुईं हैं,” मुझे अपनी थकी हुई, अपनी गरीब, अपने झुंड में जमा भीड़ दे दो जो आज़ादी से सांस लेने के लिए तरस रही है”। सदियों से न्यूयार्क इन पंक्तियों को सार्थक करता आ रहा है। इस शहर को अप्रवासियों ने बनाया है। डाेनाल्ड ट्रम्प खुद अप्रवासी परिवार से हैं लेकिन अब अमेरिका में सब कुछ बदल रहा है। अप्रवासियों को बताया जा रहा है कि आप का अमेरिका में स्वागत नहीं है। न्यूयार्क में ग़ैर क़ानूनी ढंग से रह रहे लोगों की भरमार है। इनके बिना तो शहर चल ही नहीं सकता। न्यूयार्क के लोग ट्रम्प की नीतियों को पसंद नहीं करते। उन्होंने ट्रम्प का जवाब अनोखे पर लोकतांत्रिक तरीक़े से दिया है। उन्होंने भारी बहुमत से अपना मेयर एक 34 वर्षीय भारतीय मूल के मुसलमान जिसकी मां पंजाबी हिन्दू, प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता मीरा नायर हैं, को चुन लिया है। ट्रम्प आदत के मुताबिक़ चीखते-चिल्लाते रहे। धमकी दी कि अगर इसे चुन लिया तो न्यूयार्क की फ़ंडिंग बंद कर दूंगा, पर न्यूयार्क ने ज़ोहरान ममदानी को अपना मेयर चुन ट्रम्प को सीधा जवाब दे दिया।
कुछ वर्ष पहले तक ज़ोहरान ममदानी एक रैपर थे। उन्होंने कभी भी अपनी मुस्लिम पहचान छिपाने की कोशिश नहीं की। न ही यह छिपाने की कोशिश की कि वह भारतीय है। जब वहां रह रहे बहुत से भारतवंशी खुद को अमरीकियों से भी अधिक अमरीकी साबित करने के कोशिश में रहते हैं, ममदानी यह छिपाने की कोशिश नहीं करते कि अंदर से वह देसी हैं। दिवाली पार्टी में कुर्ता पहन,या नमस्ते कर,वह बता रहे हैं कि वह अपनी जड़ों को नकारने के लिए तैयार नहीं।
अपने अभियान में उन्होंने बार-बार गांधी को उद्धृत करने से लेकर बालीवुड का सहारा लिया। जीतने पर अपने भाषण में उन्होंने जवाहर लाल नेहरू के देश की आज़ादी के समय दिए भाषण, “इतिहास में कभी-कभी ऐसे क्षण आते हैं जहां हम पुराने से नए युग में कदम रखते हैं” को भी याद किया। जब भाषण समाप्त हुआ तो कोई अंग्रेज़ी गाने की धुन नहीं, बालीवुड की धूम मचा ले धूम बज रही थी।
ममदानी नहीं समझते कि अपनी पृष्ठ भूमि के बारे उन्हें किसी प्रकार से शर्मिंदा होने की ज़रूरत है। उनका कहना था कि “न्यूयार्क अप्रवासियों का शहर रहेगा। मैं नौजवान हूं और मैं मुस्लिम हूं। मैं मुस्लिम होने के लिए माफ़ी मांगने को तैयार नहीं हूं”। अमरीका जैसे देश में जहां आजकल ‘दूसरों’ के प्रति नफ़रत की लहर चल रही है, ममदानी का यह स्पष्ट कहना अर्थपूर्ण है। ट्रम्प के आने के बाद वहां भारतीयों के प्रति रवैया बदला है। जहां पहले हमें वहां की ‘सकसैस स्टोरी’ माना जाता था, अब हमारे लोगों की सफलता ही बोझ बन गई है। वहां रह रहे भारतीयों के प्रति विद्वेष बढ़ रहा है। हेट-क्राइम बढ़ रहा है। इस माहौल में ज़ोहरान ममदानी की जीत का महत्व है, क्योंकि न्यूयार्क, आख़िर न्यूयार्क है। ममदानी क्यों जीते?
असली कारण है कि उन्होंने आम अमरीकी की आर्थिक चिन्ताओं को राजनीतिक एजेंडे के ऊपर पहुंचा दिया। लोग परिवर्तन चाहते हैं। ट्रम्प भी परिवर्तन का वादा कर सत्तारूढ़ हुए थे, पर अपनी सनक और ईगो के कारण भटक गए। वह टैरिफ़ वॉर में फंस गए जिससे अमेरिका का कोई भला नहीं हुआ। चीज़ें महंगी हो रही हैं और आम आदमी परेशान है। दूसरी तरफ़ व्हाइट हाउस में गोल्ड पलेटेड फ़िक्सचर लग रहे हैं। 20 करोड़ डालर, जो 17 अरब रुपए बनता है, का बॉलरूम बनवा रहे हैं, चाहे इस पर सरकारी खर्च नहीं हो रहा। दूसरी तरफ़ न्यूयार्क इतना महंगा है कि एक कमरे का किराया 5000 डालर है। लोगों की तकलीफ़ों के प्रति बेरुख़ी ट्रम्प की वर्तमान समस्याओं का कारण है। ममदानी ने फ्री बस सफ़र, सरकारी किराना स्टोर शुरू करने, किराए बढ़ने पर रोक, फ्री चाईल्ड केयर सुविधा देने का वादा किया है। वह समझ गए कि आम आदमी के लिए न्यूयार्क में रहना जेब से बाहर होता जा रहा है, इसलिए रियायतों का वादा कर रहे हैं। सुपर रिच पर टैक्स लगाने का प्रस्ताव भी आम लोगों को पसंद आया है, पर आगे बहुत बड़ी चुनौती है। इसका नाम डाेनाल्ड ट्रम्प है। ट्रम्प उन्हें बर्दाश्त करने को तैयार नहीं। उन्हें ख़तरनाक कम्यूनिस्ट करार दिया था। ट्रम्प समर्थकों ने भी ममदानी के खिलाफ नफ़रत भरा अभियान चलाया था। उनके नाम, पहचान, मज़हब सब पर अशिष्ट प्रहार किया गया। ट्रम्प की तो सारी राजनीति ही डर और धमकियों पर आधारित है। न ही वह निजी तिरस्कार को भूलते हैं, इसलिए पूरी सम्भावना है कि ट्रम्प और उनके समर्थक ममदानी को फेल करने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाएंगे। वहां रह रहे अप्रवासियों पर असमान्य सख्ती हो सकती है। वैसे भी न्यूयार्क को सम्भालना बहुत मुश्किल है। ममदानी के विजन की तारीफ़ करते हुए न्यूयार्क से अफ्रीकी मूल के लेखक तिबिता कनीने लिखते हैं कि “न्यूयार्क पर शासन करना बेहद कठिन है क्योंकि गहरे जमे हुए हित विवेकपूर्ण सुधार नहीं होने देते”।
आदर्शवादी हर बार सफल नहीं रहते पर इस समय तो न्यूयार्क ने दुनिया को ज़बरदस्त संदेश दिया है कि ट्रम्प ही अमेरिका नहीं है। वहां 'हिंदुज़ फ़ॉर ममदानी’ समूह ने ममदानी की सफलता के लिए प्रार्थना सभा भी की थी। जीत पर उनका खुश होना स्वभाविक है पर अमेरिका के राजनीतिक क्षेत्र से एक और घटना घटी है जो हिन्दू समुदाय के लिए अति अप्रिय है। इसका सम्बंध अमेरिका के उपराष्ट्रपति जे.डी. वैंस की हिन्दू पत्नी उषा से है। दो सप्ताह पहले जब जे.डी. वैंस से पूछा गया कि क्या वह चाहते हैं कि उनकी पत्नी जो हिन्दू हैं अपना धर्म परिवर्तन कर ईसाई बन जाए तो वैंस ने बेबाक़ उत्तर दिया कि, “सच्चाई यह है कि मैं इसकी कामना करता हूं”। वैंस चाहते तो मामले को गोल कर सकते थे, पर यहां सब के सामने उन्होंने अपनी पत्नी के धर्म को रद्द करते हुए कामना कर दी कि वह ईसाई बन जाए। वैंस दम्पति का विवाह हिन्दू और ईसाई दोनों पद्धति से हुआ था। वैंस ने कोई आपत्ति नहीं की। अब अचानक उन्हें अपनी पत्नी का धर्म अखरने लगा है और सार्वजनिक तौर पर उसका तथा उसके मां-बाप का अपमान कर रहे हैं। इस तरह का स्पष्ट नस्लवाद तो इंग्लैंड में भी नहीं देखा गया जब हिन्दू ऋषि सुनक प्रधानमंत्री बने और 10 डाऊनिंग स्ट्रीट में धूमधाम से हिन्दू पर्व मनाए गए। लंडन का मेयर सादिक़ खान पाकिस्तानी मूल का मुसलमान है, पर अमेरिका में उषा वैंस को टार्गेट किया जा रहा है, अगर कोई आम आदमी यह कहता तो इसे नज़रअंदाज़ किया जा सकता था, पर यह तो अमेरिका के उपराष्ट्रपति कह रहे हैं कि उन्हें अपनी पत्नी का हिन्दू धर्म पसंद नहीं। वैंस अपनी पत्नी के धर्म का अब मूल्यन कर रहे हैं और एक प्रकार से कह रहे हैं कि वह ईसाइयत के बराबर नहीं। जब उनकी आलोचना हुई तो वैंस ने अपनी पत्नी के बारे कहा, “वह ईसाई नहीं हैं और धर्म बदलने का उनका इरादा नहीं है ..इसके बावजूद मैं उनसे प्यार करता रहूंगा और उनका समर्थन करता रहूंगा”। यहां 'बावजूद’ शब्द अमेरिका के उपराष्ट्रपति की मानसिकता बता रहा है।
अमेरिका का संविधान धर्म की इजाज़त देता है, पर ट्रम्प के समर्थकों पर 'व्हाइट ईसाई राष्ट्रवाद’ सवार है और वैंस ट्रम्प का उत्तराधिकारी बनना चाहते हैं। लेखक जोनाह ब्लैंक ने लिखा है ,“अपने पति के अमेरिका में उषा वैंस की कोई ज़गह नहीं है”। जहां तक उषा वैंस का सवाल है वह पहले कह चुकीं हैं कि उनकी परवरिश हिन्दू परिवार में हुई है और वह इस धर्म का पालन करती हैं और अपने बच्चों को हिन्दू परम्परा के बारे बताती रहती हैं। वह धर्म बदलने नहीं लगी और उनके बच्चे भी जानते हैं कि वह कैथोलिक नहीं हैं।
इस विवाद के बाद अपनी गरिमा क़ायम रखते हुए वह ख़ामोश है, पर वहां सोशल मीडिया पर उनके ख़िलाफ़ जहर उगलना शुरू हो गया है। यह ट्रम्प के अमेरिका की असली तस्वीर भी पेश करता है कि उसमें ग़ैर ईसाइयों की जगह नहीं है, यहां तक कि उपराष्ट्रपति की हिन्दू पत्नी की इज्जत भी सुरक्षित नहीं है।
शायद इसीलिए उदारवादी न्यूयार्क ने मुसलमान जोहरान ममदानी को मेयर चुन कर इन लोगों को कड़ा जवाब दिया है।

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Chander Mohan

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