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ममता दी : एकला चलो रे

प. बंगाल की मुख्यमन्त्री सुश्री ममता बनर्जी ने मार्क्सवादी पार्टी और कांग्रेस द्वारा आयोजित भारत बन्द से स्वयं को और अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस को जिस तरह से अलग किया है

05:05 AM Jan 10, 2020 IST | Ashwini Chopra

प. बंगाल की मुख्यमन्त्री सुश्री ममता बनर्जी ने मार्क्सवादी पार्टी और कांग्रेस द्वारा आयोजित भारत बन्द से स्वयं को और अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस को जिस तरह से अलग किया है

प. बंगाल की मुख्यमन्त्री सुश्री ममता बनर्जी ने मार्क्सवादी पार्टी और कांग्रेस द्वारा आयोजित भारत बन्द से स्वयं को और अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस को जिस तरह से अलग किया है उससे लगता है कि वह अपने राज्य में संशोधित नागरिकता कानून के विरोध में हो रहे आन्दोलन में किसी अन्य राजनीतिक दल को कोई स्थान लेने देने के लिए तैयार नहीं हैं। ममता दी ने विगत बुधवार को राज्य में बन्द के दौरान हुई हिंसा की तीखी आलोचना करते हुए कांग्रेस व मार्क्सवादी पार्टी को निशाने पर रखने से हिचकिचाहट नहीं दिखाई है और साफ कहा है कि तोड़फोड़ व हिंसा को विरोध प्रदर्शन नहीं कहा जा सकता बल्कि यह ‘गुंडागर्दी’ की श्रेणी में आता है। 
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ऐसा भी देखने में आया कि बुधवार को कई स्थानों पर प्रदर्शनकारी दुकानें बन्द करा रहे थे तो तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने उन्हें खुलवा दिया। इससे सन्देश यही जाता है कि ममता दी राज्य में अपनी सरकार का विरोध करने वाली भाजपा को भी इस मामले में भविष्य में कोई मोहलत नहीं देंगी। कई स्थानों पर प. बंगाल पुलिस पर बन्द के दौरान जोर-जबर्दस्ती करने के आरोप भी लगे हैं जिनकी तुलना मार्क्सवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की पुलिस तक से की है लेकिन ममता दी इसके साथ ही संशोधित नागरिकता कानून के विरोध में लगातार विरोधी रैलियां आयोजित कर रही हैं और प्रदेश के विभिन्न इलाकों में घूम रही हैं। 
वह घोषणा कर चुकी हैं कि उनके राज्य में एनपीआर (जनसंख्या पंजीकरण) का कार्य भी नहीं होगा। उन्होंने लोगों से अपील तक कर दी है कि जनसंख्या रजिस्टर का संगणक उनके दरवाजे पर आये तो वे उसे जानकारी उपलब्ध न करायें। इसके साथ ही वह नागरिकता कानून को भी लागू न करने की घोषणा कर रही हैं। ममता दी जमीनी राजनीति से उठ कर जन नेता बनी हैं। अतः जनता की नब्ज पढ़ना अच्छी तरह जानती हैं। उन्होंने अपने राज्य के लोगों की इस भावना को पढ़ लिया है कि आम लोग नागरिकता के नये कानून को बांग्ला संस्कृति के विरुद्ध समझते हैं क्योंकि इसमें हिन्दू-मुसलमान का भेद कर दिया गया है, जबकि भाजपा का आरोप रहा है कि प. बंगाल में भी अवैध बंगलादेशी नागरिकों की अच्छी-खासी संख्या है आैर वे सभी सामान्य नागरिक सुविधाएं उठा रहे हैं। 
भाजपा इन कथित अवैध नागरिकों के वोट बैंक में परिवर्तित होने के आरोप भी लगाती रही है, परन्तु प. बंगाल की राजनीति की यह भी त्रासदी है कि अवैध बांग्लादेशियों को लेकर ऐसे ही आरोप पूर्व में सत्ता में रही मार्क्सवादी पार्टी या वामपंथी मोर्चे पर भी लगते रहे हैं, परन्तु नया नागरिकता कानून आने से तस्वीर का रुख बदल गया है और लोगों को लग रहा है कि जिस तरह पड़ोसी असम राज्य में लाखों हिन्दू प्रमुखतः बांग्लाभाषी नागरिकों की नागरिकता सन्देह में पड़ गई है वैसा ही कार्य एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) लागू होने के बाद यहां भी हो सकता है। 
पिछले दिनों प. बंगाल में जन्म प्रमाणपत्र और निवास प्रमाणपत्र लेने के लिए विभिन्न कस्बों व शहरों की नगरपालिकाओं के दफ्तरों में भीड़ जुटी थी और कई नागरिकों की मृत्यु तक हो गई थी जिनमें कुछ ने आत्महत्याएं भी की थीं, उससे आम जनता में आशंका का वातावरण बन चुका है और वे इसकी मूल वजह नये नागरिकता कानून को ही मान रहे हैं। जहां तक ममता दीदी का सवाल है वह साफ कह रही हैं कि हिन्दू-मुसलमान में फर्क पैदा करने वाले कानून के लिए उनके राज्य में कोई स्थान नहीं है, परन्तु इस कानून का विरोध भाजपा के अलावा राज्य की सभी पार्टियां कर रही हैं जिनमें कांग्रेस व कम्युनिस्ट भी शामिल हैं, परन्तु ममता दी ने इस विरोध क्षेत्र में अपना एकाधिकार कायम कर लिया है। 
यह भी स्वयं में एक रिकार्ड बनने जा रहा है कि किसी राज्य के मुख्यमन्त्री ने केन्द्र सरकार के फैसले के खिलाफ इस कदर विरोधी रैलियां की हों। ममता दी जिस तरह केन्द्र को सीधे चुनौती दे रही हैं उससे साफ जाहिर होता है कि वह 2021 में होने वाले विधानसभा चुनावों में अपने दम पर ही सभी अन्य विपक्षी दलों की ताकत को तोलेंगी जिनमें मार्क्सवादी और एक समय में उनकी सहयोगी रही कांग्रेस पार्टी भी शामिल होगी। इन अन्य दलों में भाजपा की क्या हैसियत होगी, यह कहना अभी मुश्किल है क्योंकि विगत लोकसभा चुनावों में भाजपा ने एेतिहासिक सफलता प्राप्त की थी और मार्क्सवादी व कांग्रेस पार्टी के वोट बैंक को अपने पक्ष में लेने में सफलता प्राप्त कर ली थी। 
ममता दी जमीन की राजनीति में माहिर हैं जिसकी वजह से उन्होंने राज्य में मार्क्सवादियों का तीन दशकों से भी ज्यादा का राज समाप्त किया था। उन्होंने जमीन सूंघ ली है कि भाजपा का विस्तार रोकने के लिए मार्क्सवादी व कांग्रेस पार्टी को भी दरकिनार करना लाजिमी होगा। राज्य में 2021 के विधानसभा चुनावों को देखते हुए ममता दी भाजपा की ताकत को सीमित करने के लिए ही एकला चलो की रणनीति पर आगे बढ़ रही हैं जिससे वह नागरिकता कानून के विरोध में बांग्ला अस्मिता को अपनी राजनीतिक सम्पत्ति में तब्दील कर सकें। 
बांग्ला संस्कृति पूजा पद्धति के अन्तर से ऊपर सांस्कृतिक समानता के भाव से बन्धी हुई है जिसमें काजी नजरुल इस्लाम और रवीन्द्रनाथ टैगोर एकाकार होकर बंगाल की महिमा का बोध कराते हैं। यही वजह है कि इस राज्य में नये नागरिकता कानून के ऊपर बांग्ला भाव व्याप्त हो गया है। ममता दी इसी भाव को सर्वोच्च रख कर राजनीति का अध्याय अपने हिसाब से लिखना चाहती हैं। अतः उनकी ‘एकला चलो रे’ की रणनीति क्या गुल खिलायेगी, कोई नहीं जान सकता।
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