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Mandate for Assembly Elections: विधानसभा चुनावों का जनादेश

06:04 AM Jun 06, 2024 IST | Shivam Kumar Jha

Mandate for Assembly Elections: लोकसभा चुनावों के साथ चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में जहां अरुणाचल में भाजपा की सत्ता में वापसी हुई है वहीं सिक्किम में एसकेएम ने प्रचंड बहुमत हासिल कर सत्ता परिवर्तन कर दिया है। ओडिशा और आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनावों में दोनों राज्यों में मौजूदा सरकारों को सत्ता गंवानी पड़ी है। ओडिशा में 24 साल से सत्ता में काबिज नवीन पटनायक के हाथ से सत्ता खिसक गई है। 147 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा को 78 सीटें मिली हैं जबकि बीजू जनता दल को महज 51 सीटें ही मिली हैं। ओडिशा में भाजपा पहली बार अकेले सरकार बना रही है जो बहुत बड़ी उपलब्धि है। वहीं आंध्र प्रदेश में एनडीए (टीडीपी, भाजपा और जनसेवा पार्टी) की सत्ता में वापसी हुई है। तेलगूदेशम पार्टी ने 175 में से 135 सीटें जीतकर सबको हैरान कर दिया है, जबकि मौजूदा मुख्यमंत्री जगमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस को केवल 11 सीटें ही मिली हैं।

नवीन पटनायक साल 2000 से ओडिशा के सीएम हैं। राज्य में उनकी पकड़ पार्टी से लेकर सरकार में बेहद मजबूत थी। यही वजह है कि उनका किला दो दशकों से भी लंबे वक्त में कोई पार्टी और नेता नहीं हिला पाया। इस बार पीएम नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी बीजेपी ने राज्य में करप्शन का मुद्दा उठाया था। खास बात यह है कि नवीन पटनायक के खिलाफ सीएम पद के उम्मीदवार के नाम की घोषणा बीजेपी की तरफ से नहीं की गई थी। इसके बावजूद बीजेपी को इन चुनावों में बड़ी जीत मिली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के दम पर बीजेपी ने ओडिशा का किला फतह किया।

पांच बार के मुख्यमंत्री रहे नवीन पटनायक अपनी सीट भी नहीं बचा पाए। दरअसल, 1997 में बीजू पटनायक के निधन के बाद जब नवीन पटनायक 50 साल की उम्र में राजनीति में आए तो लोगों ने यही कहा था कि उन्हें ओडिशा से कोई लेना-देना नहीं, हमेशा दिल्ली और विदेश में रहे, भला उन्हें क्यों चुनें लेकिन बीजू पटनायक का बेटा होने का फायदा उन्हें मिला। 1998 में जनता दल टूटने के बाद पार्टी भी उन्होंने अपने पिता के नाम पर ही बीजू जनता दल बनाई। बीजू बाबू का असर ही ऐसा था कि 1998 में अस्का लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीतकर वाजपेयी की एनडीए सरकार में खनन मंत्री बन गए। पहले उन्हें राजनीति में दिलचस्पी नहीं थी, किताबें लिखते थे, पेज थ्री पार्टियों की हस्ती थे। वो हमेशा से कम बोलने वाले और सौम्य दिखने वाले रहे लेकिन सन् 2000 में हुए ओडिशा विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी खूब लड़ी और भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने में कामयाब रही। नवीन पटनायक केन्द्र की कुर्सी छोड़कर ओडिशा के मुख्यमंत्री बन गए। अस्का क्षेत्र के ही हिन्जली विधानसभा सीट से उपचुनाव जीतकर आए और तब से यहीं से जीतते रहे।

इस बार चुनावों में भ्रष्टाचार, सड़क, पानी, ​िबजली जैसे मुद्दों की चर्चा रही। इस बार बीजू जनता दल और भाजपा का गठबंधन भी नहीं हो सका था। 24 साल के शासन के बाद नवीन पटनायक सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी रुझान भी था। नवीन पटनायक का स्वास्थ्य भी चुनावी मुद्दा रहा। हालांकि उनके शासन की बहुत उपलब्धियां भी रहीं। ओडिशा ने देश को तूफानों से लड़ना सिखाया ले​िकन जनता ने इस बार परिवर्तन के पक्ष में वोट दिया। जहां तक आंध्र प्रदेश का सवाल है। तेलगूदेशम पार्टी को अब सरकार बनाने के लिए भाजपा पर भी निर्भर रहने की जरूरत नहीं है क्योंकि उसके पास अच्छा खासा नम्बर है। चुनाव से पहले भाजपा की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और तेलगुदेशम पार्टी (टीडीपी) के नेता चंद्रबाबू नायडू ने वापसी की थी। साल 1996 में टीडीपी पहली बार एनडीए का हिस्सा बनी थी। चंद्रबाबू नायडू ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर काम किया था। इतना ही नहीं, आंध्र प्रदेश में 2014 का लोकसभा और विधानसभा चुनाव भी टीडीपी ने भाजपा के साथ लड़ा था लेकिन 2019 में टीडीपी, एनडीए से अलग हो गई थी।

मौजूदा मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी की शुरूआत भी कांग्रेस से ही हुई थी लेकिन बाद में उन्होंने अपनी अलग पार्टी बना ली। इन चुनावों में जगनमोहन रेड्डी की बहन कांग्रेस का नेतृत्व कर रही थी इसलिए ऐसे में परम्परागत वोट बैंक भाई-बहन में बंट गए और तीन राजधानी बनाने की योजना का भी सीधा नुक्सान वाईएसआर कांग्रेस को हुआ। जगनमोहन रेड्डी पर भ्रष्टाचार के कई मामले चल रहे हैं। भाजपा पिछले कुछ वर्षों से आंध्र पर फोकस कर रही थी। जिसका लाभ गठबंधन के चलते चन्द्रबाबू नायडू को हुआ।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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