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मणिपुरः मुख्यमन्त्री की तलाश

मणिपुर के मुख्यमन्त्री एन. बीरेन सिंह ने आखिरकार इस्तीफा दे ही दिया है।

11:30 AM Feb 10, 2025 IST | Aditya Chopra

मणिपुर के मुख्यमन्त्री एन. बीरेन सिंह ने आखिरकार इस्तीफा दे ही दिया है।

पूर्वोत्तर के छोटे से राज्य मणिपुर के मुख्यमन्त्री एन. बीरेन सिंह ने आखिरकार इस्तीफा दे ही दिया है। राज्य में 21 महीने तक चली कुकी व मैतेई जनजातियों के दो सेनाओं में तब्दील होने पर उपजी वीभत्स हिंसा के बाद उनका इस्तीफा आया है। इस हिंसा में अब तक दो सौ से ज्यादा लोगों की मृत्यु हो चुकी है। जिस प्रकार बीरेन सिंह इस हिंसा का दौर चलने के बाद अपने पद से चिपके रहे वह लोकतन्त्र में अपने तरीके का पहला अवसर कहा जा सकता है। मणिपुर राज्य की दोनों जनजातियों के बीच घनघोर दुश्मनी का माहौल बन जाने पर उन्होंने अपना त्यागपत्र तब दिया जब उनके सिर पर विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव पारित होने का खतरा मंडराने लगा। मणिपुर में भाजपा की सरकार है और केन्द्र में भी इसी पार्टी की सरकार है अतः केन्द्रीय नेतृत्व ने यह उचित समझा कि बीरेन सिंह से मुक्ति पाने का यह सही समय है हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस सहित लगभग सभी विपक्षी पार्टियां मई 2023 में दोनों जनजातियों के बीच हिंसा उत्पन्न होने के बाद मुख्यमन्त्री के इस्ताफे की पुरजोर मांग कर रहे थे।

दो दिन पहले ही बीरेन सिंह राजधानी दिल्ली आये थे औऱ उन्होंने गृहमन्त्री श्री अमित शाह के साथ लम्बी बैठक की थी। समझा जा रहा है कि श्री शाह ने उन्हें इस्तीफा देने की राय दी। बीरेन सिंह दिल्ली तब आये जबकि विधानसभा का सत्र सोमवार से ही शुरू होना था और इसमें विपक्षी दल कांग्रेस उनकी सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव ला रहा था जिसे भाजपा के भी आधे विधायकों का समर्थन प्राप्त था। राज्य विधानसभा में कुल 60 सदस्य हैं जिनमें सत्तारूढ़ भाजपा विधायकों की संख्या 37 है। इसके अलावा कांग्रेस के पांच, एनपीपी के छह, एनपीएफ के पांच, कुकी पीपुल्स आलायंस के दो, जनता दल (यू) का एक व तीन निर्दलीय सदस्य हैं। इनमें से भाजपा में कुकी समुदाय के भी काफी विधायक हैं। राज्य विधानसभा के भीतर भी जिस प्रकार विधायकों में कुकी व मैतेई के आधार पर बंटवारा हुआ वह भी बहुत चिन्ताजनक स्थिति है।

पिछले वर्ष अक्टूबर महीने में जिस तरह भाजपा के कुकी समुदाय के विधायकों ने दिल्ली में डेरा डाल कर केन्द्रीय नेतृत्व से बीरेन सिंह को हटाये जाने की गुहार लगाई थी उससे यह तय हो गया था कि बीरेन सिंह ने भाजपा समेत अन्य दलों का भी समर्थन खो दिया है। बीरेन सिंह की सरकार के समर्थन में एनपीपी पार्टी भी थी और एनपीएफ व जनता दल (यू) भी । पिछले दिनों जनता दल (यू) ने अपना समर्थन वापस ले लिया था और एक अन्य क्षेत्रीय दल ने भी। ध्यान देने वाली बात यह है कि विधानसभा का सत्र सोमवार से ही शुरू हो रहा था और इससे दो दिन पहले शनिवार को ही बीरेन सिंह दिल्ली आये औऱ उन्होंने भाजपा अध्यक्ष व गृहमन्त्री से मुलाकात की। समझा जा रहा है कि यदि विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव रखा जाता तो यह मौजूदा सियासी हालात देखते हुए पारित हो जाता। क्योंकि भाजपा के विधानसभा अध्यक्ष ने भी पिछले दिनों दिल्ली की यात्रा करके केन्द्रीय नेतृत्व को साफ कर दिया था कि यदि अविश्वास प्रस्ताव आता है तो उसे रोकना उनके वश में नहीं होगा। उनके अलावा बीरेन सरकार के एक और वरिष्ठ मन्त्री ने दिल्ली यात्रा करके केन्द्रीय नेतृत्व को स्पष्ट कर दिया था कि मुख्यमन्त्री बदलने के लिए भाजपा के विधायकों का एक बड़ा समूह गोलबन्द है अतः मुख्यमन्त्री को बदल देना चाहिए।

अब जबकि बीरेन सिंह ने इस्तीफा दे दिया है तो विधानसभा का सत्र खटाई में पड़ गया है और ऐसा माना जा रहा है कि राज्यपाल अजय कुमार भल्ला विधानसभा को अस्थाई रूप से मुल्तवी रख सकते हैं। उन्होंने सोमवार से बुलाये गये विधानसभा सत्र को अगले आदेश तक स्थगित कर दिया है। विधानसभा की इस स्थिति के बीच ही बीरेन सिंह का विकल्प खोजने की कोशिश हो सकती है। राज्यपाल भल्ला ने इस्तीफा स्वीकार करते हुए किसी वैकल्पिक व्यवस्था होने तक बीरेन सिंह से ही पद पर बने रहने का आग्रह किया है। विधानसभा के अस्थायी रूप से वजूद में न रहने के कारण जहां एक ओर अविश्वास प्रस्ताव का खतरा टल गया वहीं दूसरी ओर भाजपा द्वारा नया मुख्यमन्त्री चुनने का मार्ग प्रशस्त हो गया।

राज्य विधानसभा के चुनाव 2027 में होने हैं। अतः भाजपा द्वारा राज्य में अपना पूर्ण बहुमत होते हुए भी किसी नये मुख्यमन्त्री का चुना जाना गूलर के पेड़ से फूल तोड़ने के बराबर है। क्योंकि मणिपुर की जातीय हिंसा को देखते हुए भाजपा के लिए नया मुख्यमन्त्री चुनना आसान कार्य इसलिए नहीं होगा क्योंकि उसे मैतेई व कुकी में से एक का चुनाव करना होगा। दूसरे दो साल तक विधानसभा को मुल्तवी रखना भी व्यावहारिक नहीं है। जाहिर है कि भाजपा को बीच का रास्ता निकालना होगा। यह बीच का रास्ता क्या हो सकता है इस बारे में गंभीर चिन्तन जारी रहेगा। मई 2023 में राज्य उच्च न्यायालय द्वारा मैतेई जनजाति के हक में आरक्षण दिये जाने के फैसले के बाद ही राज्य में हिंसा पनपी थी। इस हिंसा के दौरान मैतेई व कुकी समुदाय आपस में भिड़ गये थे और राज्य में मौत का कारोबार शुरू हो गया था।

इस हिंसा के दौरान ही महिलाओं को नग्न करके घुमाया गया था जिसका संज्ञान देश की सर्वोच्च अदालत ने ऐसे कुकृत्य की एक वीडियो जारी होने के बाद स्वयं लिया था। बेहतर होता यदि उसी समय बीरेन सिंह को पद से हटा दिया गया होता। इसके बाद विगत वर्ष मई 2024 में लोकसभा चुनाव होने पर राज्य की दोनों सीटों पर कांग्रेस विजयी रही थी। मगर मणिपुर का मसला मूल रूप से राजनैतिक नहीं है बल्कि यह सामाजिक है। कुकी समुदाय के लोग मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के खिलाफ हैं और मानते हैं कि उनके इस दर्जे के बाद उनकी विशिष्ट आर्थिक स्थिति से समझौता किया जायेगा।

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