करोड़पति हैं अनेक भारतीय लेखक
एक अच्छा लेखक जब ‘रायल्टी’ के आधार पर चर्चा में आता है तो लेखन की दुनिया का सम्मान बढ़ जाता है। प्रख्यात हिंदी कवि विनोद कुमार शुक्ल को हाल ही में उनकी एक कृति ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के लिए 30 लाख की ‘रायल्टी’ (मानदेय) मिली है। अब उनका नाम भारतीय पाठकों के लिए आकर्षण का बिन्दु बन गया है। वे पाठक जो अब तक उनकी काव्य-प्रतिभा के बारे में ज्यादा नहीं जानते थे, अब उनकी इस कृति को खरीद कर चाव से पढ़ने लगे हैं।
‘रायल्टी’ के बारे में चर्चाएं छिड़ी हैं तो अब चेतन भगत का नाम भी पहली कतार में उभर आया है। आज से छह वर्ष पूर्व 2019 में उनकी कुल ‘रायल्टी’ 28 करोड़ रुपए थी जबकि जासूसी उपन्यास लेखक को हर छमाही में 30 लाख रुपए रायल्टी के रूप में मिलने की चर्चा है। ऐसे नामों में इब्ने सफी, दत्तभारतीय आदि हैं।
करोड़ों की ‘रायल्टी’ पाने वाले भारतीय लेखकों में विक्रम सेठ भी हैं, जिनके बारे में यह भी चर्चा है कि उन्हें उनकी किसी भी आगामी कृति के लिए अग्रिम ‘रायल्टी’ मिल जाती है। इसी क्रम में अन्य चर्चित लेखकों के नाम हैं सलमान रश्दी, रस्किन बांड, झुम्पा लाहिड़ी, आरके नारायण, अनीता देसाई। इनके अलावा पुरानी पीढ़ी के करोड़ों की रायल्टी पाने वाले नामों से गुरुदेव टैगोर, मुंशी प्रेमचंद, खुशवंत सिंह, अमृता प्रीतम, श्री लाल शुक्ल, यशपाल, विमल मित्र, कृष्णा सोबती, धर्मवीर भारती, महादेव वर्मा, निराला, वृंदावन लाल वर्मा, अज्ञेय आदि के नाम हैं। इनमें ऐसे नाम भी हैं जिन्हें फिल्म जगत से भी उनकी कृतियों के लिए करोड़ों की राशि मिली। एक केंद्रीय अधिसूचना के तहत गुरुदेव टैगोर की वृत्तियों से होने वाली आज शांति निकेतन को अदा होती है, मगर अपने जीवनकाल में इनमें से अनेक ऐसे लेखक थे, जिनकी जीवन यात्रा विपन्नता एवं तंगहाली में बीती।
ऐसे प्रतिष्ठित लेखकों में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला भी शामिल थे और अपने शुरूआती दौर में मुंशी प्रेमचंद भी शामिल थे। भारतीय उपमहाद्वीप के सर्वाधिक चर्चित लेखक मंटो को कुछ रुपयों के बदले में अपनी एक बहुचर्चित पुस्तक की पांडुलिपि के सर्वाधिकार भी बेचने पड़े थे। हबीब जालिब की पूरी जिंदगी तंगहाली में गुजरी। उनकी बेटी अब भी सस्ते अस्पतालों में अपनी बीमारियों का इलाज कराने की मोहताज है। वैसे साहिर लुधियानवी को भी अपने लोकप्रिय काक-संकलनों से नाममात्र के पैसे ही मिले थे। उन्हें जो भी मिला, फिल्मी-गीतों से मिला। साहिर बताते थे, उनके काव्य संकलन ‘तलखियां’ के पाकिस्तान में ही 16 संस्करण छपते थे, मगर उन्हें वहां के प्रकाशकों ने एक रुपया भी नहीं दिया। गैर-साहित्यिक रूमानी हिंदी लेखकों गुलशन नंदा, दत्त भारती, कुशवाहा कांत आदि शामिल थे।
हिंदी में निरंतर लेखन का कीर्तिमान आचार्य चतुरसेन शास्त्री व वैद्य गुरुदत्त ने स्थापित किया था। इधर, पौराणिक आख्यानों पर हिंदी व अंग्रेजी में लेखन की एक लहर चल निकली है। देवदत्त पटनायक, आशीष नंदी, आमित तिवारी आदि ने लेखन, प्रकाशन व ‘रायल्टी’ के नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। ये लेखक हिंदी व अंग्रेजी में समान रूप से लोकप्रिय रहे हैं। भारतेन्दु-युग में एक विशेष उल्लेखनीय बात यह भी थी, लाखों पाठकों ने देवकीनंदन खत्री के उपन्यास पढ़ने के लिए ही हिंदी सीखी थी। पुराने लेखकों ने अपने लेखन, प्रकाशन व ‘रायल्टी’ के लिए आजीवन संघर्ष किया, मगर उनके वंशज अपने पूर्वजों के लेखन की आय से ही खूब मालामाल हो गए।
‘रायल्टी’ के मामले में कुछेक जासूसी लेखकों ने नए कीर्तिमान स्थापित किए। इस सूची में सुरेंद्र मोहन पाठक, वेद प्रकाश शर्मा, इब्ने सफी, व्योमकेश बख्शी, ओमप्रकाश शर्मा आदि शामिल हैं।
अब थोड़ा साहित्य के नोबेल-पुरस्कार विजेता के बारे में । कल नोबेल पुरस्कार विजेताओं में अमेरिकी वैज्ञानिक फ्रेड राम्सडेल का नाम घोषित हुआ, लेकिन राम्सडेल ग़ायब थे। नोबेल असेंबली ने घोषणा के तुरंत बाद उनसे संपर्क करने की कोशिश की, 15 फोन, कई ईमेल, यहां तक कि उनके परिवार और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के पुराने सहयोगियों के जरिए संदेश भेजे। सब बेकार। फिर पता लगा कि फ्रेड आइडाहो के सैल्मन रिवर माउंटेंस के जंगलों में ‘ऑफ ग्रिड’ हाइकिंग पर हैं। कोई मोबाइल सिग्नल, इंटरनेट- कुछ नहीं। बस वे और प्रकृति। पर्यावरण प्रेमी और पूर्व प्रोफेसर 62 वर्षीय राम्सडेल, गर्मियों से ही लैब छोड़कर इस ‘डिस्कनेक्ट मोड’ में हैं। उनके आखिरी ज्ञात इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, विज्ञान ने मुझे दुनिया दी, लेकिन जंगल ने शांति। मैं अपनी सबसे अच्छी जि़ंदगी जी रहा हूं- बिना किसी डिस्ट्रैक्शन के। सोलर-पावर्ड टेंट और फिशिंग गियर के साथ वे जंगलों में डेरा डाले हैं, जहां नोबेल का संदेश अभी तक पहुंचा नहीं। यह घटना हमारी हाइपर-कनेक्टेड दुनिया पर एक तीखा तंज़ है। जहां हर सेकेंड नोटिफिकेशन की होड़ है, वहीं राम्सडेल का संदेश साफ है। कनेक्टेड रहने के लिए कभी कभी डिस्कनेक्टेड होना भी ज़रूरी है। हंगरी के मशहूर लेखक लास क्रास्नाहोर्काई को 2025 का साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला है। नोबेल कमेटी ने उनकी रचनाओं को असाधारण और दूरदर्शी बताया। उनका लेखन गहरा, रहस्यमयी और मानव संघर्ष को दर्शाने वाला है, जो पाठकों को अपने जादुई संसार में खींच लेता है। 1954 में हंगरी के ग्युला में जन्मे क्रास्नाहोर्काई की पहली किताब सातानतांगो (1985) ने एक ढहते गांव की कहानी से सबका ध्यान खींचा। उनकी लंबे वाक्यों और दार्शनिक गहराई वाली शैली की तुलना दोस्तोव्स्की और गोगोल से होती है।