Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

कोरोना में उलझ गई गणित की शिक्षा

कोविड महामारी की वजह से लाॅकडाउन की चुनौतियों ने छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों को सीखने और सिखाने के तरीके में कुछ नया करने और फिर से सोचने को विवश कर दिया था। 

03:26 AM Jun 06, 2022 IST | Aditya Chopra

कोविड महामारी की वजह से लाॅकडाउन की चुनौतियों ने छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों को सीखने और सिखाने के तरीके में कुछ नया करने और फिर से सोचने को विवश कर दिया था। 

कोविड महामारी की वजह से लाॅकडाउन की चुनौतियों ने छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों को सीखने और सिखाने के तरीके में कुछ नया करने और फिर से सोचने को विवश कर दिया था। इसमें कोई संदेह नहीं कि टेक्नोलोजी ने महामारी के दौरान हमें बहुत कुछ सिखाया लेकिन बहुत बड़े डिजिटल गैप को भी उजागर किया। कोरोना महामारी के दौरान दो वर्ष के अंतराल के बाद छोटे बच्चों के स्कूल तो खुल गए लेकिन शिक्षकों के सामने पांचवीं कक्षा तक के बच्चों को गणित की शिक्षा देना एक बड़ी चुनौती बन गया है। कोरोना काल में छोटे बच्चों की शिक्षा में जो लर्निंग गैप आया, उसने गणित की शिक्षा को उलझा कर रख दिया है।
Advertisement
दो वर्ष से ज्यादा समय से पांचवीं कक्षा के बच्चे व्हाट्सएप या मोबाइल पर पढ़ते रहे। दो वर्ष बाद जो बच्चा तीसरी में था वह पांचवीं में आ गया, जो बच्चा दूसरी कक्षा में था वह चौथी में आ गया। गणित की साधारण शुुरूआत जमा-घटाओ, गुणा, विभाजन तथा पहाड़े दूसरी या तीसरी कक्षा में सीख लेते हैं और फिर उनका गणित कौशल विकसित होता जाता है। अब समस्या यह आ रही है कि ​तीसरी से लेकर पांचवीं कक्षा तक के बच्चों को गणित का कोई ज्यादा पता ही नहीं। बच्चों में गणित और भाषा के स्तर में ​िगरावट आ चुकी है। बड़े शहरों में जहां टैक्नोलोजी की हर सुविधा मौजूद है, परिवार आर्थिक रूप से सम्पन्न है और घरों में लैपटाप और टेबलेट सुविधाएं उपलब्ध हैं, उनके बच्चों की शिक्षा जरूर हुई लेकिन ऑनलाइन सीखने की अपनी सीमाएं हैं। बच्चे जमा-घटाओ नहीं कर पा रहे, बच्चों की साधारण तकनीक करने में भी संघर्ष करना पड़ता है। अनेक बच्चे तो अंक ही नहीं पहचान पा रहे। शिक्षकों की सबसे बड़ी ​मुश्किल बच्चों को गणित की शिक्षा देने में आ रही है। दो वर्ष का गैप वह कैसे पूरा करें इसको लेकर काफी विचार मंथन चल रहा है। यह समस्या पूरे देश के स्कूलों में आ रही है।
हाल ही में नैशनल अचीवमैंट सर्वे के परिणाम आए हैं जिससे देश भर के स्कूलों की शैक्षणिक स्थिति का पता चलता है। शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए निरंतर किए जा रहे प्रयासों के मूल्यांकन और बच्चों के ​शिक्षा का स्तर परखने के लिए सर्वे कराया गया था। इसमें कक्षा तीन, पांच और आठ के बच्चों को शा​िमल किया गया था। चुनिंदा स्कूलों के  बच्चे पिछले वर्ष 12 नवम्बर को परीक्षा में शामिल हुए थे। परीक्षा परिणामों में यह स्पष्ट हो गया कि बच्चे गणित में काफी कमजोर हैं। सर्वे में यह भी पाया गया कि पंजाब आैर राजस्थान को छोड़ दिल्ली समेत देश भर के स्कूलों में शिक्षा का स्तर 2017 से भी कम पाया गया।  अब सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि पांचवीं कक्षा में पहुंचे बच्चों को दो वर्ष के अंतराल में शिक्षा की भरपाई कैसे की जाए ताकि वह भविष्य में प्रतिस्पर्धी परिक्षाओं में सफल होने के लिए तैयार हो सकें। हर बच्चा कुशाग्र नहीं होता और सब बच्चों की सीखने की गति एक जैसी नहीं होती। प्राइमरी स्कूलों में कक्षा पांचवीं में हासिल अंक महत्वपूर्ण और नींव का पत्थर सा​बित होते हैं। गणित की शिक्षा बच्चों को पहाड़ पर चढ़ने के समान बन चुकी है। दिल्ली में छोटे बच्चों के स्कूल इसी वर्ष नियमित रूप से अप्रैल में ही खुले हैं। दिल्ली सरकार ने मिशन बुनियाद के अन्तर्गत कक्षा तीन से नौवीं कक्षा तक के छात्रों को तीन माह तक फाउंडेशन लर्निंग का कार्यक्रम चलाया ताकि बच्चे शिक्षा में पिछड़े नहीं। इस बात पर भी मंथन चल रहा है कि क्या आनलाइन और वर्चुअल कक्षाओं का समय अब समाप्त हो चुका है। 
इसमें कोई संदेह नहीं कि टैक्नोलोजी ने शिक्षा के स्वरूप को बदला। लेकिन बच्चों के मस्तिष्क के काम करने और उनके विकास के लिए सामाजिक सम्पर्कों में पिछड़ गए। अनियंत्रित और ​बिना निगरानी वाले स्क्रीन समय का उन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। कोरोना काल के दौरान अभिभावक भी कोई ज्यादा ध्यान नहीं दे पाए क्योंकि आ​र्थिक स्थितियों के चलते वे तनाव में रहे। अब यह निष्कर्ष निकला है कि आनलाइन शिक्षा एक बच्चे के मुक्कमल विकास के लिए हानिकारक रही है। बच्चा जो स्कूल में नियमित रूप से पढ़ाई करता है वह सहपाठियों से आैर शिक्षकों से सम्पर्क में रहने के कारण बहुत कुछ सीखता है। स्कूल में पढ़ने के चलते बच्चों में सामुदायिक भावना का संचार होता है और वह समाज में रहने के लिए आचरण और व्यवहार भी सीखता है। वर्चुअल शिक्षा स्कूली शिक्षा का विकल्प नहीं हो सकती। यह सही है कि आज के दौर में टैक्नोलोजी से दूर नहीं रहा जा सकता लेकिन सोचने, रचनात्मक होने के बुनियादी अमल की तरफ वापिस आना भी जरूरी है। अगर बच्चों की बुनियाद ही कमजोर होगी तो फिर वह आगे जाकर कुछ नहीं कर पाएंगे। पांचवीं क्लास तक के बच्चों की बुनियाद मजबूत करने के ​लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किए जाने चाहिए। शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिए नई योजना बनाकर आगे बढ़ना चाहिए ताकि बच्चों के ज्ञान कौशल पर कोई असर न पड़े। फिलहाल गणित की शिक्षा उलझ चुकी है और बच्चों को इस उलझन से बाहर निकालना हमारा दायित्व भी है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
Advertisement
Next Article