आशा की किरण बनी मीनल
किसी भी राष्ट्र की प्रगति में अंतरिक्ष, रक्षा प्रौद्योगिकी और चिकित्सा जगत में अनुसंधान का बहुत बड़ा योगदान होता है। भारतीय वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष और रक्षा प्रौद्योगिकी से जुड़े अभियानों में कई अभूतपूर्व सफलताएं हासिल की हैं।
04:15 AM Mar 30, 2020 IST | Aditya Chopra
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किसी भी राष्ट्र की प्रगति में अंतरिक्ष, रक्षा प्रौद्योगिकी और चिकित्सा जगत में अनुसंधान का बहुत बड़ा योगदान होता है। भारतीय वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष और रक्षा प्रौद्योगिकी से जुड़े अभियानों में कई अभूतपूर्व सफलताएं हासिल की हैं। नैनो टैक्नोलाजी से लेकर अंतरिक्ष मौसम विज्ञान के अलावा अन्य क्षेेेत्रों में भारत की उपलब्धियों पर गर्व किया जा सकता है। भारत के चिकित्सा जगत में अनुसंधान के चलते क्रांतिकारी परिवर्तन हो चुका है। भारत एक तरह से मेडिकल हब बन चुका है क्योंकि यहां उपचार विदेशों से काफी सस्ता है। हृदय, किडनी और फेफड़ों की बीमारियों का इलाज कराने विदेशी भारत में आ रहे हैं। और तो और प्रवासी भारतीय अपने दांतों को प्लांट कराने के लिए भी भारत आते हैं।
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भारत के पास ऐसे प्रतिष्ठित डाक्टर हैं जिनका एक पांव भारत में रहता है तो दूसरा लंदन या पैरिस में। मैडिकल जगत में भारतीयों की धूम है। कई देशों में चिकित्सा क्षेत्र का दायित्व भारतीय डाक्टर ही निभा रहे हैं। भारत की युवा प्रतिभाओं का ज्ञान गुरु गूगल भी लोहा मान चुका है। चिकित्सा अनुसंधान क्षेत्र में लगातार अनुसंधान कार्य हो रहे हैं। भारत में आयुर्विज्ञान एवं आयुर्वेद के क्षेत्र में लगभग ईसा पूर्व चिकित्सा एवं शल्य कर्म (सर्जरी) पर पहले ग्रंथ की रचना की गई थी। आयुर्वेद की तीन मुख्य परम्पराएं हैं-भारद्वाज, धनवन्तरी और कश्यप। आयुुर्वेद विज्ञान के आठ अंग हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि भारत ने विश्व को चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत कुछ दिया है। यह अलग बात है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकसित होने पर आयुर्वेद की जगह एलोपैथी ने ले ली है।
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कोरोना वायरस के चलते दुनिया भर के वैज्ञानिक वायरस का तोड़ निकालने में जुट गए हैं। स्पेन और इटली ने तो वायरस का उपचार करने वाली दवा के परीक्षण भी शुरू कर दिए हैं। वायरस के उत्पत्ति स्थल चीन के वैज्ञानिक भी उपचार ढूंढने में लगे हुए हैं। भारत के चिकित्सा अनुसंधान संस्थान भी कारगर दवा ढूंढने के प्रयास कर रहे हैं लेकिन भारतीय वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस को खंडित करने में दुनिया में सबसे पहले सफलता पाई है। समूचा विश्व कोरोना वायरस से जूझ रहा है।
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इसी बीच पुणे की महिला वायरोलॉजिस्ट मीनल दखावें भोंसले की कोशिशों के चलते कोरोना वायरस की टैस्टिंग किट तैयार हो चुकी है, जिससे कोरोना संदिग्धों की जांच ढाई घंटे में हो सकती है। इसे जज्बा कहिये या जुनून कि मीनल गर्भावस्था में थी और इसी दौरान बीते फरवरी महीने में उसने कोरोना वायरस की टैस्टिंग किट प्रोजैक्ट पर काम करना शुरू कर दिया था। मीनल बच्चे को जन्म देने से कुछ घंटे पहले तक काम करती रही और उसने भारत की पहली टैस्ट किट तैयार करने में सफलता प्राप्त कर ली। मीनल मायलैब डिस्कवरी की रिसर्च और डेवलपमैंट प्रमुख हैं।
मीनल का कहना है कि कोरोना वायरस के बढ़ते विस्तार के कारण पैदा हुई आपातकालीन परिस्थितियों को देखते हुए उसने इसे एक चुनौती के रूप में लिया। मुझे भी अपने देश की सेवा करनी है। इस प्रोजैक्ट पर दस वैज्ञानिकों की टीम लगी। अपनी बच्ची को जन्म देने से एक दिन पहले उन्होंने टैस्टिंग किट की परख के लिए इसे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलोजी को सौंपा। अंततः किट को भारत की फूड एंड ड्रग्स कंट्रोल अथािरटी की स्वीकृति मिल गई। किट को अलग-अलग मापदंडों पर परखा गया, इसके नतीजे सटीक निकले। पहले जिस किट से जांच की जा रही थी, उससे 4500 रुपए का खर्च आता है और जांच रिपोर्ट को भी छह-सात घंटे लगते हैं। अब इस किट से जांच करने पर महज 1200 रुपए खर्च आएंगे।
भारत की आलोचना इस बात के लिए हो रही है कि कोरोना वायरस से पीड़ित लोगों का आंकड़ा देश में इसलिए कम है क्योंकि यहां लोगों की जांच ही नहीं हो पा रही। इस किट के आने से लोगों की जांच का दायरा काफी विस्तृत हो जाएगा।
भारत के पास इतनी मानसिक शक्ति है कि अगर उसका सदुपयोग किया जाए तो चिकित्सा अनुसंधान में क्रांतिकारी बदलाव हो सकते हैं। कम्पनी का कहना है कि उसके पास एक सप्ताह में एक लाख किट बनाने की क्षमता है। समूचा उद्योग जगत मीनल की सराहना कर रहा है, जिन्होंने अपनी प्रतिभा का परिचय देते हुए पहली स्वदेशी किट तैयार करने में सफलता प्राप्त की है। मानव जीवन की रक्षा के लिए उन्होंने फर्ज निभाते हुए अनुसंधान में करिश्मा कर दिखाया है। मीनल वास्तव में भारतीयों के लिए आशा की किरण बन गई है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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