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मनमोहन सिंह का स्मारक ?

पूर्व प्रधानमन्त्री डा. मनमोहन सिंह के स्मारक स्थल को लेकर जो विवाद पैदा हुआ है।

11:30 AM Dec 29, 2024 IST | Aditya Chopra

पूर्व प्रधानमन्त्री डा. मनमोहन सिंह के स्मारक स्थल को लेकर जो विवाद पैदा हुआ है।

मनमोहन सिंह का स्मारक

पूर्व प्रधानमन्त्री डा. मनमोहन सिंह के स्मारक स्थल को लेकर जो विवाद पैदा हुआ है वह डा. सिंह की प्रतिष्ठा के अनुकूल नहीं कहा जा सकता क्योंकि डा. सिंह सरलता, सौम्यता और विनम्रता की प्रतिमूर्ति थे। उनके स्मारक स्थल के लिए यदि कोई उपयुक्त स्थान हो सकता है तो वह निश्चित रूप से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि स्थल राजघाट के निकट ही हो सकता है क्योंकि राजनीति में वह गांधी द्वारा सिखाये गये सभी गुणों के बहुत निकट थे और उनका पूरा जीवन सादगी से भरा हुआ था। उनका व्यक्तित्व इस बात की गवाही देता था कि वह सत्य और अहिंसा के सिद्धान्त को अपने जीवन में पूरी तरह उतार चुके थे। उन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन में ‘पद’ की कभी भी लालसा नहीं की मगर ‘पद’ हमेशा उनके पीछे दौड़ता रहा। यदि डा. मनमोहन सिंह को सबसे बड़ी श्रद्धांजलि कोई दी जा सकती है तो वह यही होगी कि राजनीति को सहजता, पारदर्शिता और प्रेम का पर्याय बनाया जाये।

अभी जो सूचना प्राप्त हो रही है उसके अनुसार उनके स्मारक स्थल के लिए केन्द्र की सरकार स्व. चौधरी चरण सिंह के स्मारक स्थल ‘किसान घाट’ के समीप कोई स्थान खोज रही है। यह स्थान भी डा. सिंह की शख्सियत के अनुरूप ही कहा जाएगा क्योंकि चौधरी साहब भी सरलता, स्पष्टवादिता और ईमानदारी के प्रतिरूप थे। पूर्व प्रधानमन्त्रियों की यादों को संजोये रखने के लिए केन्द्र ने प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू के संग्रहालय को प्रधानमन्त्री संग्रहालय में तब्दील कर दिया है। अतः डा. सिंह के कार्यकाल के सभी दस्तावेज भी इसमें स्थान पायेंगे और उनके कृतित्व व व्यक्तित्व के सभी सबूत भी इस संग्रहालय में विद्यमान रहेंगे लेकिन इससे उनके स्मारक स्थल का महत्व भी कम नहीं होगा। इसकी मूल वजह यह है कि भारतीय जनमानस अपने प्रेरणा व्यक्तित्वों के स्मारकों पर सिर नवाने की संस्कृति से बंधा हुआ माना जाता है। डा. सिंह का व्यक्तित्व बेशक आजकल के राजनीतिज्ञों से भिन्न था क्योंकि वह राजनीति में सदाकत के प्रबल पक्षधर थे और उनका पूरा जीवन इस तथ्य का सबूत था।

बेशक वह अर्थजगत में पूंजीवाद के हामी थे मगर वह यह कार्य गांधीवादी रास्ते से करना चाहते थे और उन्होंने अपने प्रधानमन्त्री रहते यह कार्य किया भी। विवाद तो इस बात पर भी हो रहा है कि उनकी अन्त्येष्टि सार्वजनिक स्थल निगम बोध घाट पर क्यों की गई जबकि सरकार इस रीति को निभाने के लिए विशिष्ट स्थान का चयन कर सकती थी जिससे उस स्थल को बाद में स्मारक में परिवर्तित किया जा सके। यह मांग नाजायज नहीं कही जा सकती क्योंकि केन्द्र की भाजपा सरकार ने ऐसा प्रधानमन्त्री रहे श्री अटल बिहारी वाजपेयी की मृत्यु के अवसर पर किया था। श्री वाजपेयी की मृत्यु भी पूर्व प्रधानमन्त्री के रूप में हुई थी। प्रधानमन्त्री पद पर रहते हुए अभी तक केवल पं. जवाहर लाल नेहरू, इन्दिरा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री ही स्वर्गवासी हुए अतः उनके स्मारक स्थलों पर कभी कोई विवाद नहीं छिड़ा। जहां तक पूर्व प्रधानमन्त्रियों का सवाल है तो 2013 में स्वयं डा. मनमोहन सिंह की सरकार ने ही यह नियम बनाया था कि दिल्ली में जमीन की कमी को देखते हुए एक ऐसा राष्ट्रीय स्मारक स्थल बनाया जाये जिसमें भविष्य में स्वर्गवासी हुए लोकप्रिय नेताओं की यादों को समेटा जा सके परन्तु इस नियम का उल्लंघन स्व. वाजपेयी की मृत्यु के समय हुआ अतः डा. सिंह की मृत्यु के बाद स्मारक स्थल बनाने को कांग्रेस पार्टी ‘नजीर’ मान रही है।

बेशक कांग्रेस पार्टी के तर्क में वजन है क्योंकि डा. मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों का सबसे ज्यादा प्रभाव भारत की गरीब जनता पर इस तरह पड़ा कि उनकी उदार व खुली अर्थव्यवस्था नीति के तहत गरीबी की न केवल परिभाषा बदली बल्कि गरीबों की स्थिति भी बदल गई। 2004 से लेकर 2014 तक देश में लगभग 22 करोड़ लोग गरीबी की सीमा रेखा से ऊपर आ गये। स्वतन्त्र भारत में यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं मानी जा सकती। समाजवाद से पूंजीवादी व्यवस्था के सफर में भारत के लोगों के दिल में डा. सिंह का नाम अमिट हो चुका है क्योंकि उन्होंने अपनी बाजार मूलक अर्थव्यवस्था को मानवीय चेहरा दिया। अतः ऐसे मानव का स्मारक स्थल आने वाली पीढि़यों को प्रेरणा देता रहेगा। इस नजरिये से देखें तो किसान घाट के समीप उनका स्मारक स्थल यदि बनाया जाता है तो वह भी समयोचित होगा क्योंकि चौधरी चरण सिंह भी गरीबों व किसानों और मजदूरों के नेता थे। उन्होंने तो 1980 के बाद अपनी लोकदल पार्टी का नाम बदल कर दलित-मजदूर-किसान पार्टी (दमकिपा) रख दिया था।

डा. मनमोहन सिंह जो स्वयं भी बहुत गरीब घर में पैदा हुए थे। बचपन में मिट्टी के तेल की डिबिया की लौ में पढ़ा करते थे और सार्वजनिक बिजली के खम्भे की रोशनी में भी अपना पाठ याद किया करते थे। इसका वर्णन उन्होंने राज्यसभा में एक बार स्वयं किया भी था। अतः उनके स्मारक स्थल को लेकर जो विवाद उठ रहा है वह निरर्थक है क्योंकि मनमोहन सिंह भारत के हर गरीब दिल में बसे हुए हैं। उनके शासनकाल के दौरान ही शिक्षा का अधिकार, मनरेगा व भोजन का अधिकार जैसे कानून बने और रेहड़ी-पटरी वालों के लिए भी विशेष कानून बना। ये सब कानून भारत की गरीबी को दूर करने के लिए ही बनाये गये थे मगर इनका प्रचार उस समय कथित वित्तीय घोटालों के शोर में दबकर रह गया। विपरीत राजनैतिक परिस्थितियों में भी मन्द- मन्द मुस्कराहट बिखेरने वाले डा. मनमोहन सिंह के स्मारक स्थल को लेकर भी कलुषता का वातावरण नहीं बनना चाहिए क्योंकि मनमोहन सिंह ने राजनीति भी एक ‘साधू’ के रूप में ही की।

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Aditya Chopra

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