मजहबी जुनून के खिलाफ संदेश
सर तन से जुदा, किसी का सर काटने पर ईनाम की घोषणा, उदयपुर और अमरावती जैसे नृशंस हत्याकांड आज के सभ्य समाज में सहन नहीं किए जा सकते।
02:45 AM Jul 11, 2022 IST | Aditya Chopra
सर तन से जुदा, किसी का सर काटने पर ईनाम की घोषणा, उदयपुर और अमरावती जैसे नृशंस हत्याकांड आज के सभ्य समाज में सहन नहीं किए जा सकते। तालिबानी शैली में हुई इन हत्याओं के खिलाफ विश्व हिन्दू परिषद समेत सभी हिन्दू संगठनों और सामाजिक संगठनों ने राजधानी में संकल्प यात्रा निकाली। इस संकल्प रैली में उमड़े हुजूम ने जिहादी ताकतों को एक सशक्त संदेश दे दिया है कि हिन्दुओं को न कोई विभाजित कर सकता है और न ही डरा सकता है। यह मार्च मजहबी जुनून के खिलाफ है। कानून बचाने के लिए अपने ही देश में हिन्दू समाज बाहर आया है। यह संकल्प मार्च उन ताकतों के लिए है जो धर्म के नाम पर कट्टरवाद फैलाना चाहते हैं।
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दुनिया भर में मुसलमानों द्वारा इस्लाम को शांति के धर्म के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। हर धार्मिक ग्रंथ भी स्पष्ट रूप से शांति, शिक्षा और मानवता की सेवा करने का उपदेश देता है। लेकिन इस्लाम के अनुयाइयों के आचरण के बारे में आम धारणा दावों के बिल्कुल उलट है। किसी भी समुदाय, समाज या राष्ट्र के बारे में धारणा उसके सामूहिक चरित्र, आचरण और योगदान के आधार पर बनती है। हर समुदाय या राष्ट्र में अच्छे लोग होते हैं। लेकिन समुदाय के कुछ लोग समाज के विचारों को विकृत करने ने लिए अभियान छेड़ दें, जिसके परिणामस्वरूप धर्मांधता फैलाई जाने लगे और कट्टरपंथी युवाओं का एक नेटवर्क तैयार हो जाए तो यह समाज के लिए भी घातक है और खुद समुदाय के लिए भी। अब जो खुलासे हो रहे हैं कि उदयपुर और अमरावती में हुई हत्याओं के तार मुस्लिम कट्टरपंथी संगठनों से जुड़े हुए हैं। हत्यारों का संबंध पाकिस्तान स्थित संगठनों से भी है यह हिन्दू समाज ही नहीं बल्कि भारत के विरुद्ध षड्यंत्र है। कुल मिलाकर भारत में बहुसंख्यकों की मुस्लिमों के बारे में राय नकारात्मक बनती जा रही है और एक वर्ग तो मुस्लिम विरोधी भावनाओं से पीड़ित हो रहा है। पूरी दुनिया में देख लीजिए, कट्टरपंथी विचारधारा के चलते मुस्लिम समुदाय को भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। सीरिया से लेकर अफगानिस्तान तक मुस्लिमों का क्या हाल हो रहा है, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। साम्प्रदायिकता चाहे बहुसंख्यक वर्ग की हो या अल्पसंख्यक वर्ग की उसका खामियाजा समाज और देश को भुगतना ही पड़ता है। जिस तरह से कुछ संत धर्म की परिधि को लांघते हुए सस्ती लोकप्रियता के लिए अनर्गल बयानबाजी कर रहे हैं, वह भी पूरी तरह गलत है। उन्हें यह भी भूलना नहीं चाहिए कि किसी भी समाज में असुरक्षा बोध अल्पसंख्यक वर्ग की मूूलभूत प्रवृति होती है और उसकी प्रतिक्रिया भी तल्ख होती है। समाज में यह जरूरी है कि सभी सम्प्रदायों को संयम और सहनशीलता जरूरी है। समाज तभी विकास कर सकता है, जब वातावरण सौहार्दपूर्ण हो।
भारतीय मुसलमान तो भाग्यशाली हैं कि वे सामाजिक विविधता और स्वस्थ लोकतंत्र में रह रहे हैं। इतनी स्वतंत्रता उन्हें मुस्लिम देशों में भी नहीं है। आज दुनिया में लड़ाई इस्लाम से नहीं है बल्कि उस विचारधारा से है जो अतिवाद की ओर ले जाती है। यह ऐसी विचारधारा है जिसमें विश्वास रखने वालों को गरीबी व भुखमरी में जीना स्वीकार है पर मजहबी जुनून से बाहर निकलना नहीं। वे लड़ते रहेंगे जब तक शरीयत कानून लागू न हो जाए। उनकी नजर में हर भारतीय काफिर है। वे लड़ते रहेंगे जब तक दुनिया का अंतिम व्यक्ति भी इस्लाम कबूल न कर ले। छोटे-छोटे बच्चों के दिल दिमाग में कूट-कूट कर यही जहर भरा जाता है कि यदि वे मजहब के लिए कुर्बान हुए तो जन्नत में 72 हूरें उनका इंतजार कर रही होंगी। कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों का सपना है कि भारत को गजबा-ए-हिन्द इस्लाम बनाना है। अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों के मंसूबे किसी से छुपे नहीं हैं। नुपूर प्रकरण के बाद आतंकवादी संगठनों ने जवाबी हमले करने की चेतावनी दी। अफगानिस्तान ने आईएस द्वारा गुरुद्वारे पर हमला इसी ओर संकेत करता है।
जिस तरह का माहौल भारत में बनाए जाने की साजिशें रची जा रही हैं अब सभी प्रकार के अतिवाद के खिलाफ उठ खड़े होने और आवाज उठाने का समय है। अगर कट्टरपंथी तत्वों और ऐसी मानसिकता तैयार करने वाले लोगों को बर्दाश्त करने में थोड़ी सी भी ढील हुई तो वे भारत को चैन से जीने नहीं देंगे। तेजी से विकसित हो रहे भारत में आतंकवाद असहिष्णुता या कट्टरपंथ की कोई गुंजाइश नहीं है। भारतीय मुस्लिम समाज पर भी अपने लिए अच्छा वातावरण तैयार करने की जिम्मेदारी है। उन्हें अपने बच्चों को घृणित मानसिकता से दूर रखने, उनकी अच्छी शिक्षा पर ध्यान देने और देश के आर्थिक अवसरों का लाभ उठाने के लिए आगे आना चाहिए।
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आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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