मोहन भागवत का संदेश
अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए जब आंदोलन पूरे चरम पर था तब एक नारा…
अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए जब आंदोलन पूरे चरम पर था तब एक नारा सुबह से लेकर शाम तक गूंजता था ‘‘अयोध्या तो झांकी है, अभी काशी-मथुरा बाकी है।’’ इस नारे का अर्थ यही था कि श्रीराम मंदिर निर्माण होने के बाद काशी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद पर भी मंदिर के दावों को आगे बढ़ाया जाएगा। 2019 में देश की सर्वोच्च अदालत ने अयोध्या में ऐतिहासिक फैसला दिया और उसके बाद अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण भी हो गया। मौजूदा समय में काशी-मथुरा के अलावा कम से कम 12 धार्मिक स्थलों और स्मारकों को लेकर विवाद अदालतों में चल रहे हैं। इन मामलों में सम्भल, जौनपुर की अटाला मस्जिद, बदायूं की शम्सी जामा मस्जिद, लखनऊ की टीले वाला मस्जिद, मध्य प्रदेश में धार की भोजशाला, कर्नाटक की चिकमंगलूर की दरगाह और राजस्थान की अजमेर शरीफ की दरगाह के मामले शामिल हैं। आखिर कब तक ऐसे मामले हिंसक तनाव का आधार बनते रहेंगे। पिछले कुछ समय से जिस तरह से उपासना स्थलों पर दावेदारी के मामले उभर रहे हैं वह चिंताजनक हैं।
सर्वोच्च न्यायालय की तीन जजों की पीठ ने देश की सभी अदालतों से कहा है िक वे पूजा स्थलों से सम्बिन्धत सर्वेक्षण या अन्य कोई भी अंतरिम फैसला न दें। जब तक सुप्रीम कोर्ट कोई अंतरिम फैसला नहीं कर देता। काशी की ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर दावा किया गया था िक वहां पहले हिन्दू मंदिर था। विवाद बढ़ता गया तो न्यायालय के निर्देश पर उस स्थान का सर्वे किया गया। इसके बाद तो देश के विभिन्न हिस्सों में मस्जिदों के नीचे हिन्दू मंिदरों के अवशेष दबे होने के दावे किए जाने लगे। उत्तर प्रदेश के सम्भल में एक मस्जिद को लेकर इसी तरह के दावे की याचिका पर िनचली अदालत ने सर्वेक्षण का आदेश दे दिया था। जिस पर िहंसा भड़क उठी और पांच लोग मारे गए। अब सबसे बड़ा सवाल यह है िक क्या दफन अतीत को कुरेदते रहना समाज के लिए सही है। क्या दफन हो चुके इतिहास को लेकर इन स्थानों को हिंसक तनाव की रक्त भूमि बनाना उचित है? राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख श्री मोहन भागवत ने एक बार फिर सार्वजनिक रूप से नसीहत देते हुए कहा है कि एक के बाद एक मंदिर-मस्जिद विवादों का बढ़ना चिंताजनक है आैर राम मंदिर निर्माण के बाद कुछ लोग मानने लगे हैं िक वे ऐसे मुद्दे उठाकर हिन्दुओं के नेता बन सकते हैं। उन्होंने समावेशी समाज की वकालत की और कहा कि दुनिया को यह दिखाने की जरूरत है कि यह देश सद्भावना के साथ रह सकता है।
भारतीय समाज की बहुलता को रेखांकित करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि रामकृष्ण मिशन में क्रिसमस मनाया जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि केवल हम ही ऐसा कर सकते हैं क्योंकि हम हिंदू हैं। उन्होंने कहा, “हम लंबे समय से सद्भावना से रह रहे हैं। अगर हम दुनिया को यह सद्भावना प्रदान करना चाहते हैं तो हमें इसका एक मॉडल बनाने की जरूरत है। राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोगों को लगता है कि वे नई जगहों पर इसी तरह के मुद्दों को उठाकर हिंदुओं के नेता बन सकते हैं। यह स्वीकार्य नहीं है।”
मोहन भागवत ने कट्टरवादी विचारधारा के प्रसार को लेकर भी आगाह किया। संघ प्रमुख ने परिवार के मुखिया की तरह अपना संदेश दिया है जिसमें सबको सन्मति दे का भाव है। संघ प्रमुख ने समाज के संरक्षक की भूमिका निभाई है, जिनके लिए समाज के सभी सदस्य बराबर हैं। संघ प्रमुख के निशाने पर कौन लोग हैं यह भी सर्वविदित है। संघ प्रमुख पहले भी कह चुके हैं कि हर मस्जिद में शिवलिंग खोजना उचित नहीं है। हमारे संविधान की मूल भावना क्या है उस पर ध्यान देने की जरूरत है। हमारा इतिहास आक्रांताओं के अत्याचारों से भरा पड़ा है। यह भी वास्तविकता है कि हजारों हिन्दू मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बना दी गईं। क्या इन इमारतों को ढहा कर नया स्वरूप खड़ा कर भी दिया जाए तो इतिहास नहीं बदलेगा। इस तरह की कार्रवाइयों से सामाजिक समरस्ता भंग होने का खतरा है। सामाजिक और जातीय संघर्ष दावानल में बदलते देर नहीं लगती। सनातन धर्म बहुत सहिष्ण है। क्या मुगलों के अत्याचारों की ऐतिहासिक गलतियों को माफ नहीं किया जा सकता। क्षमा करना तो हमारी प्राचीन संस्कृति रही है। बेहतर यही होगा कि हिन्दुओं के नेता बनने की प्रतिस्पर्धा में गलितयां न दोहराई जाएं और सुप्रीम कोर्ट भी उचित व्यवस्था बनाए। देश के िवकास के लिए और साम्प्रदायिक सद्भाव के िलए शांति बहुत जरूरी है।