कुछ घंटों की बारिश में डूबते महानगर
भारत की सिलिकॉन वैली बेंगलुरु फिलहाल भीषण गर्मी नहीं, बल्कि बारिश से त्रस्त…
भारत की सिलिकॉन वैली बेंगलुरु फिलहाल भीषण गर्मी नहीं, बल्कि बारिश से त्रस्त है। रविवार शाम से सोमवार सुबह तक इतनी बारिश हुई कि मानो पूरा शहर जलमग्न हो गया, 5 लोगों की मौत हो गई है और घर जलमग्न हो गए हैं। शहर की 20 से अधिक झीलें पानी से लबालब भरी हुई हैं। अंडरपास और फ्लाईओवरों पर पानी भर गया है जिससे पूरे शहर का ट्रैफिक कई घंटों के लिए बाधित रहा। गाड़ियों की आवाजाही रुकी रही और कई इलाकों में सार्वजनिक बस सेवाएं ठप्प रहीं। लोगों को रेस्क्यू किया जा रहा है और कई इलाकों में लोग अपने घरों से पंप के सहारे पानी निकालते दिखे। भारत का आईटी हब इस बात का आदर्श उदाहरण है कि शहरी केंद्रों में हालात कितने खराब हैं। इसी तरह से महाराष्ट्र में बुरा हाल है। मुम्बई और उसके आसपास के इलाके तालाब में तब्दील हो गए। पुणे में महज एक घंटे की बारिश ने शहर का बुरा हाल कर दिया है। अगर बेंगलुरु की बात करें तो आकड़ों के मुताबिक 204 झीलें हैं, जिनमें से करीब 180 झीलें अतिक्रण का दंश झेल रही हैं। ऐसे में जब भी ज्यादा बारिश होती है तो पानी जगह न होने की वजह से बह नहीं पाता है और इलाकों में चला जाता है। यानी कि कुल मिलाकर कहा जाए तो अगर झीलों पर इस कदर अतिक्रमण न किया जाता तो बेंगलुरु में बाढ़ जैसी आफत नहीं देखने को मिलती। सड़कों और नालियों के खराब रखरखाव ने इसे बाढ़ के प्रति संवेदनशील बना दिया है। ठोस कचरे को बरसाती नालों में डालने के साथ-साथ नालियों को अवरुद्ध करने वाले अवैध निर्माणों से बुनियादी ढांचे पर असर पड़ रहा है। शहर के योजनाकारों की सबसे बड़ी गलती यह है कि उन्हें बारिश के पानी को पंप, चैनल और ड्रेनेज का उपयोग करके साफ करना चाहिए। पुराने इलाकों के पुनर्विकास के कारण बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी हो गई हैं। मिट्टी की अवशोषण क्षमता कम होने के कारण ये इलाके अपना हरित आवरण खो देते हैं। बारिश का पानी आमतौर पर धरती द्वारा सोख लिया जाता है या प्राकृतिक झीलों और तालाबों में बह जाता है और बाढ़ के मैदानों, तटीय आर्द्रभूमि, नमक दलदल, झीलों, नदियों, प्राकृतिक हरित आवरण, खेतों और गैर-कंक्रीट भूमि द्वारा सोख लिया जाता है जो भूजल को भी रिचार्ज करते हैं। कंक्रीट इसे रोकता है। भूगर्भ शास्त्री और शहरी विशेषज्ञ खतरे की घंटी बजा रहे हैं, चेतावनी दे रहे हैं कि शहर की बाढ़ की समस्या कई सालों तक या दशकों तक बनी रहने की संभावना है। दोषी कौन है? शहर के नीचे दबी कंक्रीट की लगातार फैलती परत जो अनियंत्रित ऊंची इमारतों के निर्माण से बनी है, जिसने प्रकृति की बारिश को सोखने की क्षमता को बंद कर दिया है।
कभी गार्डन सिटी के नाम से विख्यात बेंगलुरु अब अनियमित शहरीकरण के बोझ तले दब रहा है तथा प्रत्येक बरसात के मौसम में इसके परिणाम और भी भयावह होते जा रहे हैं। मुंबई का कुख्यात उच्च ज्वार प्रकृति के प्रकोप को बढ़ाता है। इसके अलावा वायुमंडलीय अस्थिरता के कारण भी बेमौसम बारिश हो रही है। वनों की कटाई, शहरीकरण आैर प्रदूषण जैसी मानवीय गतिविधियों से बेमौसम बारिश हो रही है। अब बारिश का पैटर्न भी बदल गया है। पहले जो बारिश पूरे दिन में होती थी उतनी से.मीटर बारिश अब तीन घंटे में ही हो जाती है।
प्रगति का विरोधाभास यह है कि जब मानव जाति आगे बढ़ती है तो शहर डूब जाते हैं। प्रौद्योगिकी के माध्यम से समृद्धि शहरी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर पलायन का कारण बनती है और संसाधनों, भूमि और प्रणालियों पर दबाव प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ देता है। अनियंत्रित उद्योग और प्रदूषण जलवायु परिवर्तन के मुख्य अपराधी हैं जो अंततः तबाही का कारण बनते हैं। भारत के ऐतिहासिक शहर- दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता धीरे-धीरे डूब रहे हैं। इसी तरह बेंगलुरु और कोच्चि जैसे अन्य महानगरों के साथ-साथ कई छोटे शहर भी डूब रहे हैं। मानसून आपदाओं की मूल समस्या अनियंत्रित शहरी जनसंख्या वृद्धि है।
शीर्ष पांच महानगरों- मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और बेंगलुरु की जनसंख्या 37.8 करोड़ है और बढ़ती जा रही है। भारत एक शहरी आपदा बनने की ओर अग्रसर है। वैश्विक तापमान बढ़ने से बढ़ते समुद्री जलस्तर से चालीस मिलियन भारतीयों के प्रभावित होने की संभावना है जिससे बर्फ की चादरें पिघल रही हैं। भारत बारिश के दिनों के लिए बचत नहीं कर रहा है। हर बार बारिश होने पर सड़कों पर पानी भर जाना, बाढ़ से संबंधित मौतें और अपंग बुनियादी ढांचा, शहरी विस्थापन और आर्थिक नुक्सान की खबरें बार-बार आती हैं। कोलकाता में आज कई झीलें और नहरें सिर्फ कीचड़ बन गई हैं। कई तो पूरी तरह से गायब हो गई हैं और सूखी जमीन पर इमारतें बन गई हैं, उनकी स्थिरता के बारे में कोई भी अनुमान लगा सकता है।
शानदार नया कोलकाता (एक तेजी से बढ़ता हुआ योजनाबद्ध उपग्रह शहर) ने निचले इलाकों के खेतों को हड़प लिया है जो कभी बहते पानी को सोख लेते थे। भूजल के तेजी से दोहन से भी परिदृश्य डूब रहा है। सुंदरवन, जो यूनेस्को का विश्व धरोहर स्थल है, अपने प्राकृतिक मैंग्रोव वनों की बदौलत तेजी से अपनी जमीन खो रहा है क्योंकि बंगाल की खाड़ी का जलस्तर वैश्विक औसत से तेजी से बढ़ रहा है। विस्थापित लोग कोलकाता में आ रहे हैं। वे ऐसे इलाकों में रहते हैं जहां मानसून के दौरान लोगों को गंदे और बदबूदार बाढ़ के पानी से होकर गुजरना पड़ता है। हालांकि, कोलकाता अपना हरित क्षेत्र बढ़ाने पर काम कर रहा। भारत में शहरी आपदाओं का खतरा बढ़ता जा रहा है और इससे निपटने के लिए प्रभावी रणनीति मजबूत बुनियादी ढांचे और समुदाय की भागीदारी की आवश्यकता है।