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मियां-बीवी राजी तो....

अंतरधार्मिक और अंतरजातीय शादियों को लेकर देश में लगातार विवाद होते रहे हैं।

01:20 AM Feb 01, 2022 IST | Aditya Chopra

अंतरधार्मिक और अंतरजातीय शादियों को लेकर देश में लगातार विवाद होते रहे हैं।

अंतरधार्मिक और अंतरजातीय शादियों को लेकर देश में लगातार विवाद होते रहे हैं। कभी इन्हें ‘लव जिहाद’ का नाम दिया जाता है और लव ​जिहाद को लेकर हिंसक उबाल भी आते रहे हैं। बार-बार विप​रीत धर्मों के जोड़े को शादी करने के लिए परिवार, समाज, सरकार या अन्य किसी की अनुमति लेने की जरूरत नहीं, दो बालिग यदि विवाह के लिए सहमत होते हैं तो ऐसी शादी वैध होगी। देश की सर्वोच्च अदालत इस संबंध में ​ऐतिहासिक फैसले ले चुकी है फिर भी समाज में विवाद हाेते  रहते हैं। कोर्ट यह भी स्पष्ट कर चुका है कि कोई भी अधिकारी विवाह पंजीकरण करने से इंकार नहीं कर सकते। प्रत्येक को जीवन साथी चुनने का अधिकार है और यह मान्यताओं पर विश्वास का विषय नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कहा है कि संविधान एक जीवित वस्तु है। समाज में बदलाव के साथ संविधान में भी बदलाव किया जा सकता है। संविधान एक पत्थर नहीं, जिसमें बदलाव न किया जा सके। संविधान व्याकरण नहीं दर्शन है।  पिछले 73 वर्षों में संविधान में सौ से अधिक बदलाव किये जा चुके हैं। संविधान का अनुच्छेद 21 सभी नागरिकों को अपनी पसन्द का जीवन साथी चुनने का अधिकार देता है।
जब बरसों से चली आ रही परम्पराएं वर्तमान समय को ध्यान में रखते हुए प्रासंगिक नहीं रहती तो उन्हें संशोधित करना ही पड़ता है। वैसे तो हर समाज अपनी प्रगति को लेकर जागरूक रहता है लेकिन कभी-कभी खोखली और बेमानी मान्यताओं को निकालने में संकोच नहीं करता। भारत मूल रूप से एक ग्रहणशील और स्वभाव से लचीला राष्ट्र रहा है किन्तु समय-समय पर झेले गए झंझावातों के कारण यहां पर सामाजिक नियमों में जटिलता आ गई है। लव जिहाद को रोकने के लिए एक के बाद एक राज्य सरकारों ने धर्मांतरण विरोधी कानून बनाये हैं लेकिन यह कानून भी अदालतों में टिक नहीं सका। विवाह जिसे हमारे समाज में एक ऐसी संस्था का दर्जा दिया गया है जो केवल एक महिला और पुरुष को ही आपस में नहीं जोड़ती बल्कि दो परिवारों को भी एक सूत्र में पिरोने का कार्य करती है। विवाह संबंधी कोई भी निर्णय परिवार के बड़े-बुजुर्ग अपनी जाति और गौत्र को ध्यान में रखते हुए लिया करते थे। ऐसी मान्यताएं पुराने समय में अत्यंत उपयोगी रही क्योंकि पहले लड़कियों को केवल घर की चारदीवारी तक ही सीमित रखा जाता था और महिला शिक्षा का महत्व भी शून्य था। इस कारण वह अपने अच्छे-बुरे को नहीं समझती थी और पूर्ण रूप से परिवार पर ही निर्भर रहती थी।
आज के दौर में महिलाएं भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। एक साथ पढ़ने और काम करने के परिणामस्वरूप युवक और युवतियों में भावनात्मक संबंध पैदा हो जाते हैं जो आगे चलकर प्रेम संबंधों का रूप ले लेते हैं, भले ही दोनों के बीच जातिगत अंतर हो या धर्म का अंतर हो। अब मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर पीठ ने गुलजार खान द्वारा अपनी पत्नी आरती साहू के लिए दायर एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए इस अंतरधार्मिक जोड़े को लेकर बड़ा फैसला दिया है। अदालत ने कहा है कि दो वयस्क व्यक्तियों के विवाह या लिव-इन-रिलेशन में एक साथ रहने का संवैधानिक अधिकार है। आरती साहू ने 28 दिसम्बर को गोरखपुर निवासी गुलजार खान से बांद्रा (महाराष्ट्र) की पारिवारिक अदालत में शादी की थी, जिसके एक दिन बाद दोनों घर से भाग गये थे।
आरती साहू ने स्वेच्छा से इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था। 15 जनवरी को जब वे विवाह प्रमाणपत्र की प्रति लेने बांद्रा कोर्ट जा रहे थे तो जबलपुर पुलिस की टीम ने उन्हें लड़की के परिवार वालों द्वारा दर्ज कराये गए अपहरण के मामले में हिरासत में ले लिया था। आरती साहू को उसके माता-पिता जबरदस्ती ले गए लेकिन गुलजार खान को अवैध हिरासत में रखा गया, पीटा भी गया। उससे सारे कागजात छीन कर जाने दिया गया। अब सवाल यह है कि ऐसी शादियों में मोरल पुलिसिंग का कोई औचित्य है। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि ऐसी शादियों में मोरल पुलिसिंग की कोई भूमिका नहीं। देश में ऐसे कई जोड़ों के उदाहरण दिये जा सकते हैं जो हिन्दू-मुस्लिम के होने के बावजूद सफल वैवाहिक जीवन जी रहे हैं। देश विभाजन के समय हुए दंगों के बीच ऐसे अनेक युवक-युवतियों नेे अंतरधार्मिक शादियां की और एक-दूसरे का सहारा बने। जहां प्रेम होता है वहां धर्म कभी आड़े नहीं आना चाहिये। इसके लिए आदमी का वफादार पति और वफादार पत्नी होना बहुत जरूरी है। ऐसी शादियों में लड़की का भविष्य सुरक्षित होना चाहिये। अंतरधार्मिक शादियों में देखने वाली बात तो यह है कि कहीं कोई जबरदस्ती तो नहीं हो रही। अगर ऐसा कुछ नहीं तो समाज में हर कोई नैतिक पुलिस नहीं बन सका। मियां-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी। अतः ऐसी शादियों को लेकर अलग दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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