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आधुनिक गुलामी पर अंकुश

मानव तस्करी की बढ़ती घटनाएं मानवता को शर्मसार कर देने वाली हैं। किसी भी व्यक्ति को धोखे, छल, बल से ऐसा जीवन जीने के लिए मजबूर करना,

12:55 AM Aug 02, 2018 IST | Desk Team

मानव तस्करी की बढ़ती घटनाएं मानवता को शर्मसार कर देने वाली हैं। किसी भी व्यक्ति को धोखे, छल, बल से ऐसा जीवन जीने के लिए मजबूर करना,

मानव तस्करी की बढ़ती घटनाएं मानवता को शर्मसार कर देने वाली हैं। किसी भी व्यक्ति को धोखे, छल, बल से ऐसा जीवन जीने के लिए मजबूर करना, जो वह व्यक्ति नहीं चाहता। विवश व्यक्तियों का निजी मुनाफे के लिए शारीरिक शोषण कराना, वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर करना, बंधुआ मजदूरी कराना, घरों में बलपूर्वक रोक कर काम कराना, जबर्दस्ती विवाह करने के लिए भगाना, शरीर के अंगों का व्यापार करना, किडनी, आंखें, दिल या लीवर निकाल कर बेचना, विकलांग करके भीख मंगवाना, सैक्स या युद्ध में उपयोग करना मानव तस्करी का हिस्सा है। प्राचीन काल में गुलामों की खरीद-फरोख्त होती थी लेकिन वर्तमान की विडम्बना देखिये, यह सब आज भी होता है लेकिन स्वरूप बदल गया है। आज के समय में मानव तस्करी आधुनिक गुलामी का प्रतीक बन गई है। मानव तस्करी का सर्वाधिक शिकार महिलाएं और बालिकाएं हो रही हैं। मानव तस्करी के शिकार व्यक्तियों का अपने जीवन आैर जीने के तरीके पर कोई नियंत्रण नहीं रह जाता। वे हर प्रकार से गुलामी का जीवन जीते हैं आैर उनकी जिन्दगी नरक बन जाती है।

भारत में महिलाएं कई तरह की समस्याओं का सामना कर रही हैं मगर इनमें भी जो समस्या सबसे मुखर होकर सामने आती है वह है मानव तस्करी की समस्या। आज देश में रेप के बाद यह दूसरी बड़ी समस्या है। मानव तस्करी के कुल मामलों में उन मामलों की तादाद ज्यादा है जिनमें महिलाओं की तस्करी हुई है। हर साल भारत से 30 हजार महिलाओं आैर बच्चियों की तस्करी की जा रही है। इनमें घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों तरह की तस्करी शामिल है। मुम्बई, पश्चिम बंगाल और असम के रास्ते गरीब महिलाओं को विदेश भेजा जाता है। इन महिलाओं को जबरन बहला-फुसलाकर नेपाल, बंगलादेश, भूटान, म्यांमार से लाई गई महिलाओं में शामिल कर अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बेचा जाता है। बिकने के बाद घाना जैसे देशों में इनका उपयोग खेतिहर मजदूरों के रूप में और अरब देशों में घरेलू नौक​रानियों एवं देह व्यापार के लिए किया जाता है। महिलाओं की घरेलू तस्करी भी होती है। असम, पश्चिम बंगाल और आे​िडशा जैसे राज्यों से खरीद कर लाई गई गरीब महिलाओं को हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बेचा जाता है।

नशीली दवाओं और हथियारों के कारोबार के बाद मानव तस्करी विश्वभर में तीसरा बड़ा संगठित अपराध है। भारत में भी यह अपराध व्यापक पैमाने पर पांव पसार चुका है। महानगरों से लेकर ग्रामीण स्तर पर मानव तस्करों का जाल फैला हुआ है। वॉक फ्री फाउंडेशन के 2014 के ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स के मुताबिक भारत में एक करोड़ चार लाख से अधिक लोग आधुनिक गुलामी में जकड़े हुए हैं। हालांकि भारत में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मानव तस्करी की समस्या को बेहद कम करके आंका गया है। विदेश मंत्रालय को एक के बाद एक अरब देशों से पत्र और ट्वीट ​मिलते रहते हैं जिनमें गुलाम बनकर जिन्दगी जीने को मजबूर लोग खुद को वहां से मुक्त कराने की गुहार लगाते हैं। विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने स्वयं पहल कर ऐसे लोगों को नारकीय जीवन से मुक्ति दिलाई है। पीड़ित लोगों के पुनर्वास में एक बड़ी समस्या यह होती है कि पीड़ित का हर स्तर पर इतना अधिक शोषण हो चुका होता है कि उसका विश्वास ही सभी से उठ जाता है, उसमें फिर से जिन्दगी की उम्मीद जगाना बेहद मुश्किल भरा होता है। मानव तस्करी के अपराध समाज पर कलंक हैं। मानव तस्करी की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए लोकसभा ने मानव तस्करी विधेयक 2018 पारित कर दिया है जिसमें महिलाओं और बच्चों के संरक्षण, सुरक्षा और पुनर्वास के लिए प्रावधान किए गए हैं। विधेयक में मानव तस्करी में दोषी पाए जाने वालों के लिए 10 साल का कठोर कारावास और एक लाख के जुर्माने का भी प्रावधान है। विधेयक के तहत हर राज्य सरकार एक स्टेट नोडल अधिकारी की नियुक्ति करेगी। राष्ट्रीय तस्कर रोधी ब्यूरो के गठन का भी प्रावधान है। नए विधेयक के तहत मानव तस्कर विरोधी कानून के दायरे में विदेशी नागरिकों को भी लाया गया है। ऐसे मामलों की सुनवाई एक साल में पूरी की जाएगी। मानव तस्करों को पकड़ने वाले पुलिस अधिकारियों को मैजिस्ट्रेट की शक्तियां दी जाएंगी जिससे वह सीधे कार्रवाई कर सकता है। विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि यह विधेयक पूरी तरह पीड़ितों को केन्द्रबिन्दु में रखकर तैयार किया गया है। मानव तस्करी सीमारहित अपराध है। हम सभी पीड़ितों, विशेष रूप से महिलाओं आैर बच्चों की तस्करी के लिए जिम्मेदार हैं। चर्चा के बाद लोकसभा ने इस विधेयक काे मंजूरी दे दी, जिसे एक बड़ा कदम माना जा रहा है। मानव तस्करी को हर हाल में रोका जाना चाहिए।

इस विधेयक में पूर्व के विधेयक में कमियों को पाटने की कोशिश की गई जिससे इसमें जुड़े कई आैर भी अपराधों काे पहचाना जा सके। कानून तो पहले भी बनते रहे हैं और आज भी बन रहे हैं लेकिन मानव तस्करी से जुड़े अपराध तब कम होंगे जब समाज खुद आगे आए। मानव तस्करों ने गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी को अपने धंधे के लिए मुनासिब अड्डा बना लिया है। उन्हें सुनहरे भविष्य के सब्जबाग दिखाए जाते हैं। मानव तस्करी का शिकार लोग कम पढ़े-लिखे होते हैं, जिन्हें नौकरी या विवाह आदि का लालच देकर फंसा लिया जाता है। समाज, शिक्षकों और स्वयंसेवी संगठनों को चाहिए कि स्कूलों, कॉलेजों, कम्प्यूटर प्रशिक्षण केन्द्रों, अन्य संस्थानों, बाजार, हॉट आदि पर बच्चों को जागरूक बनाएं और मानव तस्करों से सतर्क रहने को कहें। अगर वे जागरूक होंगे तो उन्हें फंसाने वाले लोगों का सामना होने पर अपनी सहज बुद्धि से काम ले सकेंगे। सामाजिक संस्थाओं, श्रमिक संगठनों, राजनीतिक दलों, म​हिला एवं आदिवासी कल्याणकारी संस्थाओं को आगे आकर इस समस्या के समाधान के लिए रास्ता खोजना होगा।

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