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समरकंद में मोदी की दो टूक

समरकंद में सम्पन्न हुई शंघाई सहयोग संगठन की शिखर बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार फिर अपनी छाप छोड़ी है।

01:22 AM Sep 18, 2022 IST | Aditya Chopra

समरकंद में सम्पन्न हुई शंघाई सहयोग संगठन की शिखर बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार फिर अपनी छाप छोड़ी है।

समरकंद में सम्पन्न हुई शंघाई सहयोग संगठन की शिखर बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार फिर अपनी छाप छोड़ी है। समरकंद में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी थे और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भी थे। लेकिन प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने दोनों को नजरंदाज कर एक बार फिर दिखा दिया कि भारत अब झुकने वाला नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन में बातचीत तय समय से अधिक समय तक चली और दोनों में क्षेत्रीय और वैश्विक विषयों पर चर्चा हुई जो काफी सकारात्मक रही। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत-रूस मैत्री का उल्लेख करते हुए यह कहकर पूरी दुनिया को संदेश दे दिया कि दोनों देशों की दोस्ती से पूरी दुनिया वाकिफ है। यह संदेश अमेरिका और पश्चिम देशों के लिए भी है जो भारत पर रूस से दूरी बनाने के लिए दबाव डाल रहे हैं। यद्यपि यूक्रेन पर हमले के लिए भारत ने रूस की कभी आलोचना नहीं की है। भारत का रुख शुुरू से यही रहा है कि इस संकट का हल बातचीत के जरिये निकाला जाना चाहिए। प्रधानमंत्री ने बातचीत के दौरान पुतिन से दो टूक कहा, ‘‘आज का युग युद्ध का नहीं है। डेमोक्रेसी, डिप्लोमेसी और डायलॉग ऐसी बातें हैं जिसका दुनिया को पालन करना चाहिए ताकि शांति की राह पर बढ़ा जा सके। जब प्रधानमंत्री मोदी यह कह रहे थे तो पुतिन कुछ असहज दिखे। लेकिन उन्होंने कहा कि मैं भी चाहता हूं कि युद्ध जल्द खत्म हो लेकिन समस्या यह है कि यूक्रेन ने बातचीत को ठुकरा दिया। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते पूरे विश्व में खाद्य संकट और ऊर्जा संकट पैदा हो चुका है और रूस ने भी यह स्वीकार किया कि युद्ध जल्द खत्म होना चाहिए। दोनों देशों में सहयोग बढ़ाए जाने पर भी बातचीत हुई। भारत-रूस में खाद का व्यापार बढ़ा है। पुतिन ने आश्वासन दिया कि वह भारत के साथ वीजा फ्री एंट्री के लिए  दोनों देश मिलकर काम करेंगे।
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बेबाक ढंग से की गई बातचीत की कूटनीतिक क्षेत्रों में सराहना हो रही है। जहां तक चीन का सवाल है यद्यपि प्रधानमंत्री की शी जिनपिंग से बातचीत नहीं हुई लेकिन चीन ने भारत के प्रति अपना गर्मजोशी भरा रवैया​ दिखाया। शंघाई सहयोग सम्मेलन से पहले लद्दाख के प्वाइंट-15 से चीनी सैनिकों की वापसी इस बात का संकेत है कि चीन भारत के साथ बेहतर रिश्तों के पक्ष में है। सीमा विवाद को लेकर दोनों देशों में वार्ता जारी है और उम्मीद है कि आने वाले दिनों में कुछ अन्य बिन्दुओं से भी सेनाएं वापिस चली जाएंगी। सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने सम्मेलन के सभी सदस्यों को जिसमें पाकिस्तान भी शामिल है, को सीधा संदेश दिया कि भारत अपने अनुभवों को इन सभी देशों से साझा करने का इच्छुक है, लेकिन इसके लिए  परस्पर सहयोग और सम्पर्क होना चाहिए। भारत आज विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है और भारत मैन्यूफैक्चरिंग हब बन रहा है। प्रधानमंत्री ने खाद्य सुरक्षा पर जोर देते हुए सदस्य देशों को और पूरी दुनिया को मोटे अनाज पैदा करने का मंत्र भी दिया।
समरकंद में पुतिन और शी जिनपिंग में बैठक के दौरान यूक्रेन युद्ध को लेकर हल्के मतभेद भी सामने आए। चीन ने यूक्रेन युद्ध को लेकर सवाल भी खड़े किए। जिनका जवाब पुतिन ने भी दिया। ऐसा लगता है कि यूक्रेन युद्ध के बाद शी जिनपिंग रूस के साथ ज्यादा करीब खड़े दिखना नहीं चाहते। जिनपिंग पहले ही चीन में कई आंतरिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। आर्थिक मोर्चे से लेकर कोविड नीतियों पर उनकी आलोचना हो रही है। चीन का सम्पत्ति बाजार इस समय बहुत बुरी तरह प्रभावित है। यूक्रेन युद्ध पर सवाल खड़े करने पर पुतिन को चीन से वह नहीं मिला ​जिसकी वह उम्मीद कर रहे थे। समरकंद सम्मेलन भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ क्योकि​ अगले साल इसकी अध्यक्षता भारत करेगा और इसका सम्मेलन भी अगले वर्ष भारत में ही होगा।
जी-20 की अध्यक्षता भारत को इसी वर्ष दिसम्बर में मिल जाएगी। विशेषज्ञों का मानना है कि विश्व में कूटनीति के स्तर पर भारत का कद अब काफी बड़ा हो गया है। संयुक्त राष्ट्र परिषद की ताकत को हर देश मानता है। परिषद की अध्यक्षता भी भारत को मिलने जा रही है। इसके अलावा दुनिया के सात ताकतवर देशों का संगठन जी-7 में भी भारत को शामिल करने की चर्चाएं होती रहती हैं। सम्भव है कि भारत इस संगठन में शामिल हो जाए। भारत इन सब अन्तर्राष्ट्रीय मंचों के जरिये अपनी एक बड़ी कूटनीतिक छाप छोड़ने जा रहा है। क्योंकि यह सभी मंच दुनिया की बड़ी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं।
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