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मोदी सरकार की 11 साल की स्वास्थ्य सुधार यात्रा

06:18 AM Jul 10, 2025 IST | Editorial

"स्वस्थ भारत" कभी बस एक स्लोगन हुआ करता था, लेकिन पिछले ग्यारह सालों में यह एक सच्चाई बन गया, जिसे आंकड़ों के साथ परखा जा सकता है। 2014 के बाद जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्यभार संभाला, तब भारत का स्वास्थ्य बजट मात्र 33,278 करोड़ था। प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा काफी बिखरी हुई थी और जब भी किसी के घर में बीमारी आती, लाखों लोग पुनः निर्धनता में चले जाते, लेकिन अब 2025-26 के बजट में यह खर्च लगभग तीन गुना बढ़कर 95,958 करोड़ हो गया है। यह आज़ादी के बाद का सबसे बड़ा सार्वजनिक स्वास्थ्य बदलाव है, जिसने स्वास्थ्य सेवा का प्रारूप हमेशा हमेशा के लिए बदल दिया। इस बदलाव की सबसे बड़ी बुनियाद है आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना। जिसने आज 50 करोड़ से ज्यादा लोगों के पास एक ऐसा कार्ड मुहैया कराया, जिससे उन्हें हर साल अपने परिवार के लिए 5 लाख तक का मुफ्त इलाज मिल सकता है। यह इलाज सरकारी और निजी अस्पतालों में बड़े और गंभीर रोगों के लिए होता है।

पिछले अक्तूबर में इस योजना में बड़ा परिवर्तन करते हुए 70 साल से ऊपर के सभी लोगों के लिए छूट दी गई, चाहे वो अमीर हों या गरीब। अब तक 40 करोड़ से ज्यादा लोग आयुष्मान कार्ड प्राप्त कर चुके हैं। बीमा तो सिर्फ आधी तस्वीर है। इस तस्वीर का दूसरा हिस्सा जन औषधि केंद्रों में दिखता है। 2014 के मात्र 80 दुकानों के छोटे नेटवर्क से बढ़कर आज ऐसे केंद्रों की संख्या 16,000 से ज्यादा है। इन दुकानों पर 2,000 से भी ज्यादा सस्ती जेनेरिक दवाइयां मिलती हैं, जो ब्रांडेड दवाओं से 50 से 90 प्रतिशत तक सस्ती होती हैं। इस सुधार की वजह से भारतीय परिवारों ने अब तक अनुमानित तौर पर 28,000 करोड़ बचाए हैं।

कोविड-19 महामारी, जो सौ साल में मानवता पर आई सबसे बड़ी आपदा मानी गई, उससे मुकाबले में भी हमारा दृढ़ निश्चय साफ नजर आया। जब यह महामारी आई, तो कुछ लोगों ने कहा कि भारत में हालात बिगड़ जाएंगे, लेकिन भारत ने कोविन पोर्टल से जवाब दिया। यह दुनिया का सबसे बड़ा और पारदर्शी वैक्सीनेशन प्लेटफॉर्म था, जिसे वैक्सीन आने के बाद शीघ्र ही लॉन्च कर दिया गया था। मार्च 2025 तक भारत ने 220.6 करोड़ टीके लगा दिए, और ये संभव हुआ देश में ही बने कोविशील्ड, कोवैक्सिन और दूसरे मेड-इन-इंडिया टीकों की वजह से।

अस्पतालों और दवाओं में आमूलचूल सुधार के साथ-साथ चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या बढ़ाना भी जरूरी था। इसलिए सरकार ने अस्पताल बनाने के साथ-साथ मेडिकल शिक्षा पर भी जोर दिया। मेडिकल कॉलेज 404 से बढ़कर 780 हो गए, एम्स की संख्या 7 से बढ़कर 23 हो गई, एमबीबीएस की सीटें दोगुनी होकर 1.18 लाख हो गईं और पीजी यानी विशेषज्ञ डॉक्टरों की सीटें 31,000 से बढ़कर 73,000 से ज्यादा हो गईं। अब हमारे पास डॉक्टरों का अनुपात 1 डॉक्टर प्रति 834 लोग है साथ ही राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की स्थापना ने डॉक्टरों की शिक्षा और प्रैक्टिस में पारदर्शिता और गुणवत्ता में जरूरी बदलाव किया है। कोविड कालखंड ये भी साफ हो गया कि दवाओं के लिए ज़रूरत के ज़्यादातर केमिकल विदेशों से मंगाना एक सामरिक संकट है।

इसी को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार ने तीन बल्क ड्रग पार्क गुजरात, आंध्र प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में बनाने की मंज़ूरी दी, जिनमें प्रत्येक को 1,000 करोड़ की मदद दी गई। टीबी (तपेदिक) के 1 करोड़ मरीजों को सीधे खाते में पैसे मिल रहे हैं, लैब्स की संख्या चार गुना हो चुकी है और 2015 के मुकाबले टीबी के केस में 80% और मौतों में 90% की गिरावट आई है। ई-अस्पताल और ओआरएस (आन लाइन पंजीकरण तंत्र) जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म से अस्पतालों में कतारें कम हुईं और इलाज की प्रक्रिया आसान हुई।

मांओं और बच्चों के स्वास्थ्य पर ज़्यादा ध्यान दिया गया और दवाइयों की गुणवत्ता और कीमत को लेकर नियम और सख्त किए गए। नड्डा जी के कार्यकाल में स्वास्थ्य क्षेत्र को मजबूत और सबके लिए सुलभ बनाने की बुनियाद रखी गई है, जो आने वाले सुधारों का मार्ग प्रशस्त करेगी। राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन के ज़रिए हेल्थ आईडी, मरीजों की साझा रजिस्ट्रियां और एआई आधारित डेटा विश्लेषण से बीमारी का इलाज शुरू होने से पहले ही पहचान लिया जाएगा, जिससे अस्पताल जाने की आवश्यकता कम से कम होती चली जाएगी। ये सब संभव हो पाया है बीते 11 सालों में हुए डिजिटल प्रगति से। जन औषधि केंद्रों से लेकर बल्क ड्रग पार्कों तक, एम्स से लेकर कोविन तक, मोदी सरकार ने स्वास्थ्य को खर्च नहीं बल्कि भविष्य में देश की तरक्की के लिए निवेश माना है "विकसित भारत @2047" के लक्ष्य की दिशा में। अगला दशक इन सुधारों को और मजबूत करेगा।

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