मोदी का कोई जवाब नहीं!
आज की तारीख में पीएम मोदी शीर्ष पर हैं और आने वाले वर्षों तक वहीं रहेंगे, जब तक कि राजनीति करवट न बदल ले और परिस्थितियां दिशा न मोड़ दें। फिलहाल, मोदी के आलोचक भी यह मानने पर मजबूर हैं कि वह भारत के लिए “सबसे बेहतर विकल्प” हैं। राजनीतिक शून्य से इतर, सचाई यही है कि मोदी और राहुल गांधी के बीच कोई मुकाबला नहीं है, न कोई टॉस-अप, न कोई तुलना। मोदी ऐसे नेता हैं जो परिपक्व हैं, देश के लिए दृष्टि रखते हैं और भारत को आगे ले जाने के बड़े विचार रखते हैं और जब देश का सवाल आता है तो उनका रुख होता है- नो कम्प्रोमाइज।
इसके बरक्स जब गांधी के उतार-चढ़ाव और अपरिपक्व बयान रखे जाते हैं तो मोदी के पक्ष में खड़े होने में किसी को देर नहीं लगती। हालांकि, यह भी सच है कि राहुल गांधी के नेतृत्व वाला विपक्ष कुछ ऐसे मुद्दे उठा चुका है जिसने लोगों के दिल छुए हैं, चाहे वह “संविधान बचाओ” हो, “वोट चोरी” अभियान या उनकी जनसंपर्क यात्राएं। आज की स्थिति में गांधी एक मज़बूत प्रधानमंत्री के सामने एक अच्छे विपक्षी नेता के रूप में उभरे हैं। इसलिए जब तक देश को मोदी के बराबर का कोई नेता नहीं मिलता, तब तक यही व्यवस्था है, जिसे भारतीयों को स्वीकार करना और जीना सीखना होगा। तुलनाओं और विकल्पों से परे, मोदी का आंकलन उनके कार्यों, उनके निर्णयों और उनके कृत्यों पर होना चाहिए। उससे भी अधिक, उनके साहस और अडिग रवैये पर। यही साहस था जब पहलगाम के बाद उन्होंने पाकिस्तान को सीधी चुनौती दी और ऐलान किया- अंत तक लड़ाई लड़ी जाएगी। युद्ध को लेकर कोई कुछ भी कहे लेकिन यह तथ्य अटल है कि भारत ने पहलगाम हत्याकांड का बदला लेने के लिए हमला किया। मोदी के उत्तेजक बयान- घर में घुसकर मारेंगे, या वहां से गोली, यहां से गोला, लोगों को रोमांचित करने के लिए पर्याप्त थे।
अमेरिका और उसके अप्रत्याशित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दबाव के सामने भी मोदी अडिग रहे। जब ट्रंप ने भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया तब मोदी झुके नहीं। ब्लैकमेल के आगे नहीं गिरे। इसके बजाय उन्होंने रूस और चीन का रुख किया, यह त्रयी ट्रंप को पीछे हटाने के लिए पर्याप्त थी। मोदी पर भले ही वैश्विक मंच पर आत्म-प्रदर्शन का आरोप लगे लेकिन उनसे यह नहीं छीना जा सकता कि उन्होंने भारत को वह स्थान दिलाने की कोशिश की जहां दुनिया भारत की बात ध्यान से सुने। आज मोदी पश्चिमी दुनिया के हर घर का नाम न सही लेकिन निश्चित ही एक ऐसा नाम हैं जो कानों में गूंजता है। और इतना जोड़ लें, आज भारतीय मज़बूती से बोलते हैं और अपनी भारतीयता को गर्व से प्रदर्शित करते हैं।
देश के भीतर भी मोदी ने स्वयं को एक “डूअर” के रूप में स्थापित किया है, ऐसा नेता जो समय-सीमा तय करता है और उसे निभाता भी है। यही वजह है कि जो परियोजनाएं वर्षों से शिलान्यास के बाद ठप्प पड़ी थीं, वे पूरी हुईं। उदाहरण है- चिनाब रेल पुल, जिसका उद्घाटन इस वर्ष जून में हुआ। यह परियोजना सत्तर के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दौर में सोची गई थी। ऐसे ही कई और प्रोजैक्ट हैं-गोवा का अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, जिसे मंज़ूरी मिलने के 12 साल बाद तक ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था, उत्तर प्रदेश की सरयू सिंचाई परियोजना, जिसे मोदी ने उद्घाटित किया करीब 40 साल बाद जब इसे पहली बार सोचा गया था। सूची लंबी है, इतनी लंबी कि पिछली सरकारें उसके आगे सफाई देने को मजबूर हो जाएं। जहां तक अपने कामकाज का सवाल है, प्रधानमंत्री मोदी ने कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू कीं। महिलाओं के लिए शौचालय बनाने का विचार हो, गैस कनैक्शन उपलब्ध कराना हो या उन्हें घर की मालकिन के रूप में दर्ज करना- किसी प्रधानमंत्री ने पहले इस दिशा में सोचा तक नहीं था। दरअसल, महिलाओं को लेकर मोदी सरकार की संवेदनशीलता अनुकरणीय मानी जाती है। आलोचक इसे चुनावी हथकंडा बताने में देर नहीं लगाते। हो सकता है, लेकिन यह भी स्वीकार करना होगा कि महिला-केंद्रित योजनाओं ने जीवन स्तर को बेहतर बनाया है। जहां तक “आई डेयर” भावना का सवाल है, मोदी ने उसे बार-बार साबित किया है। मोदी के बारे में यह सर्वविदित है कि “अगर वे कहते हैं तो करके दिखाते हैं, चाहे कीमत कुछ भी हो।”
बेशक, इसका असर दोतरफ़ा हो सकता है लेकिन कल्याणकारी योजनाओं और भारतीयता को बढ़ावा देने में मोदी सरकार का कामकाज उल्लेखनीय रहा है लेकिन यही वह मोड़ है जहां ठहरना ज़रूरी है, क्योंकि मोदी का लेखा-जोखा केवल उपलब्धियों का ही है जो आगे चलकर संतुलन बना रही है। कुल मिलाकर मोदी आज एक बार फिर देश की जरूरत बनकर स्थापित हो चुके हैं तथा विपक्ष लड़ रहा है लेकिन माेदी सरकार बहुत आगे निकल
चुकी है।