मोदी की सफल विदेश यात्रा
प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी की कनाडा यात्रा की सफलता के कई आयाम हैं। इस यात्रा..
प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी की कनाडा यात्रा की सफलता के कई आयाम हैं। इस यात्रा से दोनों देशों के बीच के सम्बन्धों में पुनः मिठास का दौर शुरू होने की जहां संभावना बढ़ गई है वहीं विश्व के अन्य देशों को भी सीधा सन्देश गया है कि भारत एेसा शान्ति प्रिय देश है जो वार्ताओं द्वारा ही हर समस्या का हल चाहता है। श्री मोदी कनाडा जी-7 देशों के निमन्त्रण पर गये थे जहां के कैलगरी शहर में यह सम्मेलन हुआ। मगर जी-7 देशों के सम्मेलन में श्री मोदी ने जो सन्देश दिया है वह पूरे विश्व के लिए वर्तमान समय की चुनौतियों से जूझने का है। भारत के प्रधानमन्त्री ने आतंकवाद की बढ़ती समस्या की तरफ दुनिया का ध्यान खींचा है और स्पष्ट शब्दों में कहा है कि आतंकवाद के प्रति हम दोहरे मापदंड नहीं हो सकते। श्री मोदी ने यह चेतावनी भी दी कि जो देश आतंकवाद को पनपाते या प्रश्रय देते हैं उन्हें हम किसी भी सूरत में पुरस्कृत नहीं कर सकते हैं। आतंकवाद का मुकबला करने के लिए दुनिया के सभी देशों को निजी स्वार्थों व लाभ से ऊपर उठना होगा और इस समस्या का मुकाबला करना होगा। इस सन्दर्भ में उन्होंने जो वक्तव्य दिया वह सभी देशों के लिए विचारणीय है।
भारत के प्रधानमन्त्री ने कहा कि हम देख रहे हैं कि जो देश खुले तौर पर आतंकवाद का समर्थन करते हैं उन्हें कुछ दूसरे अपनी कृपा से नवाज रहे हैं और आतंकवाद से आंखें मूंद रहे हैं। एेसा वे निजी हितों को साधने की वजह से कर रहे हैं। एेसा करना पूरी मानवता के विरुद्ध है। आतंकवाद मानवता के प्रति ही बहुत बड़ा अपराध है। श्री मोदी ने कहा कि इस बारे में मेरे कुछ गंभीर प्रश्न हैं जो इस सभा स्थल पर मौजूद सभी देशों के प्रतिनिधियों से हैं। क्या हम आतंकवाद के प्रति वास्तव में चिंतित हैं ? क्या हम आतंकवाद के प्रति तभी गंभीर होंगे जब यह हमारी खुद की चौखट पर दस्तक देगा? क्या उन देशों के साथ एक जैसा व्यवहार होना चाहिए जो आतंकवाद फैलाते हैं और जो इससे पीडि़त होते हैं? क्या हम एेसे देशों को एक ही तराजू पर रखकर तोल सकते हैं? एेसी स्थिति से क्या हमारे अन्तर्राष्ट्रीय संस्थान अपनी प्रासंगिकता खोते नहीं जा रहे हैं? एक तरफ तो हम अपने हितों और स्वार्थों काे साधने के लिए दूसरे देशों पर विभिन्न प्रतिबन्ध लगाने में देर नहीं करते हैं और दूसरी तरफ एेसे देशों को पुरस्कृत करते हैं जो आतंकवाद फैलाते हैं। यह दोहरापन क्यों ? एेसा श्री मोदी ने क्यों कहा यह समझने की सख्त जरूरत है। श्री मोदी ने बिना किसी देश का नाम लिये ही अमेरिका के दोहरेपन का खुलासा कर दिया।
हम जानते हैं कि आजकल पाकिस्तान के फौजी सिपहसालार फील्ड मार्शल आसिम मुनीर अमेरिका के दौरे पर हैं, जहां उन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दोपहर के भोजन पर निमन्त्रित किया। ट्रम्प जिस तरह की टेढ़ी चालें चलते हैं उनसे पूरी दुनिया अब अच्छी तरह वाकिफ हो चुकी है। मुनीर पाकिस्तान के पहले एेसे फौजी जनरल हैं जिन्हें अमेरिका के राष्ट्रपति के साथ भोजन का न्यौता दिया गया। आसिफ मुनीर ने अपनी बयानबाजी से भारतीयों का ध्यान भी खींचा था क्योंकि वह वही भाषा बोलते हैं जो कभी पाकिस्तान बनवाने के लिए मोहम्मद अली जिन्ना बोला करता था। फिर पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान की फौज बाकायदा आतंकवादी संगठनों को अपनी जमीन पर पनपाती है और आतंकवादियों को फौजी प्रशिक्षण भी देती है। अतः श्री मोदी का जी-7 देशों से यह कहना कि यदि आज हमने आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं की तो इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा, साफ बताता है कि भारत आतंकवाद के प्रति क्यों चिन्तित है और पूरी दुनिया का ध्यान इस तरफ क्यों दिलाना चाहता है। श्री मोदी ने अपने भाषण में विगत 22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में हुई आतंकवादी घटना का भी जिक्र किया और उन देशों के प्रति कृतज्ञता भी प्रकट की जिन्होंने इस घटना की कड़ी निन्दा की थी और भारत के प्रति सद्भावना व्यक्त की थी। श्री मोदी ने पहलगाम की घटना को भारत और हर भारतीय की आत्मा पर चोट बताया। श्री मोदी ने यह वक्तव्य देकर पूरी दुनिया को साफ तौर पर चेताया कि वे आतंकवाद के उनकी चौखट पर पहुंचने का इतजार न करें और इस बारे में निर्णायक फैसले लें। श्री मोदी ने पाकिस्तान का नाम लिये बगैर आतंकवाद पनपाने व फैलाने में उसकी भूमिका पर भी कटाक्ष किया और कहा कि हमारे ही पड़ोस के देश में आतंकवाद को जमकर पनपाया जा रहा है। यह धरती आतंकवादियों के लिए सैरगाह बनी हुई है। अतः वैश्विक शान्ति और विकास के लिए बहुत जरूरी है कि हमारी नीतियां और सोच इस बारे में पूरी तरह स्पष्ट हों। इसलिए जो भी देश आतंकवाद का समर्थन करता है उसे जिम्मेदार ठहराया जाये और उसे इसकी कीमत भी चुकानी पड़े। श्री मोदी के उक्त उद्गारों से स्पष्ट है कि भारत आतंकवाद से निपटने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकता है।
इस सन्दर्भ में पहलगाम घटना के बाद भारत ने घोषित कर दिया था कि अब आगे से हर आतंकवादी घटना को भारत पर हमला माना जायेगा। श्री मोदी कनाडा के साथ ही क्रोएशिया व साइप्रस भी गये और वहां भी उन्होंने आतंकवाद और विश्व शान्ति की बात की। क्रोएशिया के साथ भारत के सांस्कृतिक व आर्थिक सम्बन्ध बहुत पुराने हैं। 1990-91 में जब सोवियत संघ का विघटन हुआ था तो इसका असर पूर्वी यूरोप के कम्युनिस्ट देशों पर भी पड़ा था। 1991 में क्रोएशिया युगास्लाविया से अलग होकर नया देश बना था। युगोस्लाविया के साथ आजादी के बाद से ही भारत के बहुत मधुर सम्बन्ध रहे हैं। युगोस्लाविया के स्व. राष्ट्रपति मार्शल टीटो पं. नेहरू के बहुत अच्छे मित्र थे और गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के नेता थे। 1991 के बाद भारत के किसी प्रधानमन्त्री की यह पहली क्रोएशिया यात्रा थी। इस यात्रा में श्री मोदी ने क्रोएशियावासियों की भारत के प्रति बहुत गर्मजोशी भी देखी। कुल मिलाकर मोदी की यह विदेश यात्रा बहुत सफल रही।