मोदी की सफल रूस यात्रा
भारत-रूस सम्बन्धों की प्रगाढ़ता उसी तरह है जिस तरह प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति श्री पुतिन की मौजूदगी में दोनों देशों के बीच अन्तरिक्ष से लेकर गहरे समुद्री क्षेत्र में हुए 15 समझौतों की सहमति है।
04:43 AM Sep 06, 2019 IST | Ashwini Chopra
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भारत-रूस सम्बन्धों की प्रगाढ़ता उसी तरह है जिस तरह प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति श्री पुतिन की मौजूदगी में दोनों देशों के बीच अन्तरिक्ष से लेकर गहरे समुद्री क्षेत्र में हुए 15 समझौतों की सहमति है। इतिहास और समय की कसौटी पर हमेशा खरी उतरने वाली दोनों देशों के बीच की दोस्ती इनकी आन्तरिक राजनीति के उलझे हुए पेचों की मोहताज कभी नहीं रही है और निरपेक्ष भाव से भारत व रूस के लोगों को मित्रता के पवित्र बन्धन में बांधे रही है।
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श्री नरेन्द्र मोदी ने रूस के पूर्वी शहर व्लादिवोस्तोक की धरती पर खड़े होकर जब यह कहा कि दोनों देशों की नीति किसी भी तीसरे देश के घरेलू मामलों में दखलन्दाजी के खिलाफ है तो जम्मू-कश्मीर में धारा 370 के समाप्त किये जाने से तड़प रहे पाकिस्तान को स्पष्ट सन्देश चला गया कि भारत के रुतबे के साये तक को छू पाना उसकी कूव्वत से बाहर की बात है और परोक्ष रूप से उसकी पीठ पर हाथ फेरने की फिराक में बैठे अमेरिका को भी पता चल गया कि भारत कूटनीतिक स्तर पर भी बुद्ध (शान्ति) और युद्ध (लड़ाई) को अपनी सह-अस्तित्व और सहयोग की घोषित नीति का अनुषंगी अंग बनाकर चलने के बजाय स्पष्ट वार्तानुलाप में विश्वास रखता है जिसके नियामक किसी से छिपे हुए नहीं हैं।
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साफ है कि दोनों देशों के बीच जिस प्रकार तमिलनाडु के कुडनकुलम में परमाणु संयन्त्र के निर्माण में रूस का सहयोग मिला है उससे पूरी दुनिया को यह सन्देश गया है कि भारत और रूस युद्ध और शान्ति दोनों ही समय में एक-दूसरे के साथ सहयोग करने के भाव से जुड़े हुए हैं। वास्तव में रूस की दोस्ती भारत के लिए इसकी आजादी के समय से ही अमूल्य रही है क्योंकि भारत के औद्योगिक विकास से लेकर इसकी सामरिक क्षमता बढ़ाने में रूस ने सर्वदा दिल खोलकर मदद की है और पाकिस्तान ने जब भी भारत पर अपनी शैतानी नजर डालने का काम किया है रूस हमेशा इसके साथ खड़ा हुआ नजर आया है।
यह ऐतिहासिक दस्तावेज है कि जब 1955 में सोवियत संघ कम्युनिस्ट पार्टी के सर्वाधिक शक्तिशाली नेता स्व. ख्रुश्चेव लम्बी भारत यात्रा पर आये थे तो उन्होंने श्रीनगर की जमीन पर खड़े होकर ही कह दिया था कि जम्मू-कश्मीर राज्य का फैसला हो चुका है और उसका विलय भारतीय संघ में होने के बाद वह भारत का हिस्सा है। इसी प्रकार 1965 के भारत-पाक युद्ध में रूस ने भारत का पूरी ताकत के साथ समर्थन किया और 1971 के बांग्लादेश युद्ध में तो उसने ऐलान कर दिया था कि यदि बंगाल की खाड़ी में पाकिस्तान की मदद को आये अमरीका के सातवें एटमी जंगी जहाजी बेड़े से जरा भी हरकत हुई तो ‘खैर’ नहीं।
वर्तमान समय में विश्व परिस्थितियां बदल जाने और पूरी दुनिया के एकल ध्रुवीय शक्ति सन्तुलन में परिवर्तित हो जाने के बावजूद रूस ने हमेशा भारत के इन प्रयासों को अपना समर्थन दिया है कि विश्व में आर्थिक सन्तुलन को बनाये रखने के लिए भारत जैसे विकासशील देशों की बढ़ती शक्ति का संज्ञान लेते हुए उन्हें अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर यथोचित सम्मान मिलना चाहिए। इसी वजह से राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का वह पुरजोर समर्थक है और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष से लेकर विश्व बैंक तक में स्रोतों के बंटवारे की नई प्रणाली का समर्थक है। साथ ही आतंकवाद के विरुद्ध भारत के प्रयासों को वह लगातार सराहता रहा है और इस कार्य में वह श्री मोदी द्वारा चलायी जा रही अंतर्राष्ट्रीय मुहिम को भी समर्थन देता रहा है।
कश्मीर मुद्दे पर जब पाकिस्तानी प्रधानमन्त्री बेहोशी के आलम में ऊल-जुलूल बयान अपने परमाणु शक्ति से लैस होने को लेकर दे रहे हैं उस समय कुडनकुलम परमाणु संयन्त्र का जिक्र किया जाना कूटनीतिक भाषा में बहुत महत्वपूर्ण है। इसका सीधा अर्थ है कि भारत एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति है जिसका मुकाबला पाकिस्तान जैसे आतंकवाद परस्त देश से किसी भी सूरत में नहीं हो सकता। अतः चेन्नई से रूसी शहर व्लादिवोस्तोक तक समुद्री मार्ग का विकास करना स्वयं में क्षमताओं से भरा हुआ मार्ग है।
इस मार्ग को विकसित करने का समझौता भी श्री पुतिन व मोदी के बीच हुआ है। भारत के दुख-सुख का साथी रूस यह भलीभांति जानता है कि पाकिस्तान की भूमिका अफगानिस्तान में क्या रही है और उसकी नीयत क्या है इसीलिए दोनों देशों ने इस देश में स्थानीय लोगों की इच्छानुसार सत्ता संचालन का समर्थन किया है, लेकिन यह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है कि सामरिक क्षेत्र में टैक्नोलोजी हस्तांतरण से लेकर रूसी हथियार सामग्री के कलपुर्जे उत्पादन करने के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच नये समझौते हुए हैं।
इससे पता चलता है कि इस क्षेत्र में रूस भारत को आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए मदद करना चाहता है। यह भी उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश के रूपपुरम में उच्च क्षमता का बिजलीघर स्थापित करने में भारत व रूस दोनों ही मिलकर सहयोग कर रहे हैं और ऐसे सहयोग को वे अन्य देशों में भी बढ़ाना चाहते हैं। इससे स्पष्ट है कि रूस भारत की क्षेत्रीय आर्थिक ताकत का सम्मान करता है और सहयोग में काम करना चाहता है। रूस ने अपने यहां भी भारतीय उद्योगपतियों को संयुक्त क्षेत्र में परियोजनाएं स्थापित करने हेतु नये समझौते किये हैं।
अतः बाजार मूलक अर्थव्यवस्था के दायरे में वह अपना विस्तार भी करना चाहता है और पूंजी की महत्ता को भी नवाजना चाहता है और गैस, तेल व ऊर्जा क्षेत्र में परस्पर सहयोग को और प्रगाढ़ करना चाहता है मगर हर काम वह बराबरी के स्तर पर करता है और भारत को अपना खास बेशकीमती मित्र समझता है। श्री मोदी की इस यात्रा से दोनों देशों के सम्बन्ध और अधिक मजबूत होंगे।
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