देश और दुनिया की तमाम खबरों के लिए हमारा YouTube Channel ‘PUNJAB KESARI’ को अभी subscribe करें। आप हमें FACEBOOK, INSTAGRAM और TWITTER पर भी फॉलो कर सकते हैं।
Advertisement
Advertisement
मोपला विद्रोह : 20 अगस्त 1921, इतिहास के पन्नों में ये तारीख एक काले दिन के रुप में दर्ज है। आज से 103 साल पहले केरल के मोपला में एक ऐसा विद्रोह हुआ, जो बाद में नरसंहार में बदल गया। इस विद्रोह की शुरुआत अंग्रेजी हुकूमत के पुलिस थानों को जलाने से हुई थी। जो बाद में लोगों को जिंदा जलाने तक पहुंच गया। जहां तक भी नजर जाती, वहां तक सिर्फ खून से लथपथ लाल जमीन और लाशों के ढेर दिखाई देते। इस नरसंहार को इतिहासकारों ने 'मोपला विद्रोह', तो कुछ ने किसान विद्रोह का नाम दिया था, इसे मप्पिला दंगा भी कहा गया।
Highlight :
सी. गोपालन नायर ने अपनी किताब 'द मोपला रिबेलियन' में मोपला विद्रोह की वजहों का खुलासा किया है। सी. गोपालन नायर अपनी किताब में बताते हैं कि वरियामकुनाथ कुंजाहमद हाजी ने 1921 में हुए मोपला विद्रोह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह उन तीन नेताओं में से एक थे, जिसने इस आंदोलन को धार्मिक मोड़ दिया। वह एक कट्टर परिवार से ताल्लुक रखते थे। यही नहीं विनायक दामोदर सावरकर मोपला विद्रोह के पहले आलोचकों में से एक थे। उन्होंने इसे हिंदू विरोधी नरसंहार बताया।
वीर सावरकर की किताब 'मोपला कांड अर्थात् मुझे उससे क्या?' में मोपला कांड के सच से पर्दा उठाने की कोशिश की। इसमें बताया गया कि नारियल और सुपारी के पेड़ों से घिरे कुट्टम गांव को रातों-रात उजाड़ दिया गया। इस दौरान सड़कों पर खून से लथपथ लाशें पड़ी हुई थीं। नरसंहार के बीच गांव में खुलेआम गोमांस खाया जा रहा था और शराब पी जा रही थी। मोपला नरसंहार के तार 1920 के उस असहयोग आंदोलन से जुड़े थे जो भारत को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ एक जुट करने के इरादे संग शुरू हुई। तुर्की के खलीफा के समर्थन में भारत में खिलाफत शुरू हुआ और धीरे धीरे ये पूरे भारत में पकड़ मजबूत बनाता चला गया।
केरल के मालाबार तट पर बसे मोपिल्ला समुदाय ने भी इसमें अपना सहयोग दिया। दरअसल, 19वीं सदी की शुरुआत में ब्रिटिश सरकार ने नए भूमि कानूनों को लागू किया था। इसके विरोध में आवाजें उठनी लगी। इस आंदोलन का नेतृत्व केरल के मालाबार क्षेत्र के मुस्लिम समुदाय मोपलाओं ने किया था।
काश्तकारी कानून जमींदारों के पक्ष में थे और किसानों का शोषण करते थे, जिसके कारण यह आंदोलन शुरू हुआ। ये जमींदार नम्बूदरी ब्राह्मण थे, जबकि अधिकतर किरायेदार मप्पिला मुसलमान थे। वहां मुस्लिम धार्मिक नेताओं ने उग्र भाषण दिए। और इनका असर लोगों पर ऐसा पड़ा कि उनमें ब्रिटिश विरोधी भावनाएं भड़क उठीं। भीड़ का कोई ईमान नहीं होता ये बात सच साबित हुई और विद्रोह हिंदू बनाम मुसलमान हो गया। शुरुआत में आंदोलन को महात्मा गांधी और अन्य भारतीय नेताओं का समर्थन प्राप्त था, लेकिन जैसे ही यह हिंसक हो गया तो उन्होंने खुद को इससे दूर कर लिया।
कई इतिहासकारों का मानना है कि मप्पिला में किसानों और उनके जमींदारों के बीच कई बार झड़पें हुई। 19वीं और 20वीं सदी में इसे ब्रिटिश सरकार का समर्थन हासिल था। साल 1921 के अंत तक अंग्रेजों ने इस विद्रोह को कुचल दिया था। लेकिन, तब तक काफी देर हो चुकी थी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इन दंगों में 10,000 से अधिक हिंदुओं की हत्याएं की गई। इस दौरान बर्बरता की हदें भी पार हुईं और महिलाओं के साथ बलात्कार, जबरन धर्म परिवर्तन और हिंदू मंदिरों को निशाना तक बनाया गया था।
(Input From IANS)