Top NewsIndiaWorld
Other States | Uttar PradeshRajasthanPunjabJammu & KashmirMadhya Pradeshuttarakhand
Business
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

माता के दरबार में मातम

माता वैष्णो देवी की यात्रा अविचल, स्थिर और आस्था की यात्रा है। जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले की हिमाच्छादित पहाड़ियों के बीच त्रिकुटा पहाड़ी पर स्थित माता वैष्णो देवी के दर्शन कर अपने जीवन में सुख समृद्धि की कामना करते हैं और मनौतियां मांगते हैं।

02:12 AM Jan 02, 2022 IST | Aditya Chopra

माता वैष्णो देवी की यात्रा अविचल, स्थिर और आस्था की यात्रा है। जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले की हिमाच्छादित पहाड़ियों के बीच त्रिकुटा पहाड़ी पर स्थित माता वैष्णो देवी के दर्शन कर अपने जीवन में सुख समृद्धि की कामना करते हैं और मनौतियां मांगते हैं।

माता वैष्णो देवी की यात्रा अविचल, स्थिर और आस्था की यात्रा है। जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले की हिमाच्छादित पहाड़ियों के बीच त्रिकुटा पहाड़ी पर स्थित माता वैष्णो देवी के दर्शन कर अपने जीवन में सुख समृद्धि की कामना करते हैं और मनौतियां मांगते हैं। इस आस्था की यात्रा पर आने वालों के लिए यह मानसिक संतुष्टि देने वाला अनुभव होता है। नवरात्र और नववर्ष पर श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ जाती है। इस वर्ष नववर्ष पर माता वैष्णो देवी के दर्शन करने वालों का सैलाब उमड़ा हुआ था कि अचानक भगदड़ मचने से 12 श्रद्धालुओं की मौत और 15 के घायल होने से वहां आधी रात के बाद मातम छा गया। हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले मोक्ष के लिए कामना करते हैं, परन्तु यह कैसा मोक्ष है कि आस्था के केन्द्र में वे भगदड़ में लोगों के पांव तले कुचले गए। भगदड़ में परिवार अलग-अलग हो जाएं, कोई अपने बच्चों की तलाश में भटकता फिरे तो कोई अपने परिजनों को। नववर्ष के पहले ही ​दिन दुखद घटना ने पहले ही हताशा के माहौल को और गहरा कर दिया है। ऐसा नहीं है कि भगदड़ में पहली बार किसी की जान गई हो। भारत में ऐसे कई दर्दनाक हादसे हो चुके हैं, जिनमें सैकड़ों लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा है।  तीन अगस्त 2006 को हिमाचल के नैना देवी मंदिर में भगदड़ से 160 श्रद्धालु मारे गए थे और 400 से अधिक लोग घायल हुए थे। 2008 में राजस्थान में जोधपुर के नवरात्रि पर चामुंडा देवी मंदिर में भगदड़ मचने से 120 लोगों की मौत हो गई थी। 
Advertisement
14 जनवरी, 2011 को केरल के सबरीमाला मंदिर में भगदड़ से 106 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी और सौ से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। 2013 फरवरी में इलाहाबाद कुम्भ मेले के दौरान रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ में 36 लोगों की माैत हो गई थी। 2011 में हरिद्वार की हर की पौड़ी पर भगदड़ मचने से 22 लोगों की जान चली गई थी। ऐसी अनेक घटनाओं के बाद भी ऐसा लगता है कि हम भीड़ का प्रबंधन नहीं सीख पाए।
30 अगस्त, 1986 में जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन द्वारा इस तीर्थस्थल को सरकारी एकाधिकार में लेने तथा श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की स्थापना के बाद यात्रा का रूप पूरी तरह ही बदल गया। तीर्थयात्रियों के ​लिए सुविधाओं का विकास किया गया। सदियों से वैष्णो देवी गुफा लोगों के ​लिए धार्मिक और मानसिक शांति का एक मुख्य स्थान रही है। वर्ष 1950 में जिस पवित्र गुफा के दर्शनार्थ मात्र दो-तीन हजार श्रद्धालु आया करते थे लेकिन अब श्रद्धालुओं की संख्या सालाना एक करोड़ को भी पार कर रही है। वैष्णो देवी में यात्रा को सुचारू रूप से संचालित करने के ​लिए श्रद्धालु श्राइन बोर्ड की प्रशंसा करते नहीं थकते थे, लेकिन इस हादसे ने हमारे तंत्र की लापरवाही और खामियों को फिर से उजागर कर दिया है। आखिर ऐसे हादसों को लेकर हमारे पास कोई ठोस नीति क्यों नहीं, जिसके आधार पर ऐसे हादसों की जिम्मेदारी तय की जा सके। 
वैष्णो देवी में इतनी भीड़ का जुटना कोरोना प्रोटोकॉल का खुला उल्लंघन है। श्रद्धालुओं के कोरोना टैस्ट भी होते हैं लेकिन लाखों की भीड़ का बिना मास्क के इकट्ठे होना अपने आप में बहुत भयावह है। प्रबंधन को इस बात का अंदाजा तो होगा कि नववर्ष पर दर्शनों के लिए भारी भीड़ होगी तो व्यवस्थाएं भी उसके हिसाब से होनी चाहिए थीं। यात्रा मार्ग पर भीड़ ज्यादा हो गई थी तो फिर उसे रोका क्यों नहीं गया? श्रद्धालु बताते हैं कि भीड़ को सम्भालने के लिए पर्याप्त सुरक्षा कर्मी नहीं थे।
यह भी सच है कि देश में भीड़तंत्र एक खतरनाक मनोवैज्ञानिक और सामाजिक घटना बनकर उभरा है। भीड़ कभी किसी  की नहीं सुनती। देश में भीड़तंत्र के कई रूप देखने को मिले हैं। महामारी पर आस्था भारी पड़ रही है तो प्रबंधन पुख्ता होना चाहिए था। भीड़ के बीच लोगों ने भी कोई जिम्मेदाराना व्यवहार नहीं किया। धक्का-मुक्की के बीच कुछ लोगों में विवाद हो गया और भगदड़ मच गई। मौके पर मौजूद लोगों का कहना है कि मंदिर के प्रवेश द्वारों पर भारी भीड़ थी। मंदिर परिसर में आए लोग भी पहले से ही जमा थे क्योंकि वे नववर्ष की सुबह दर्शन करना चाहते थे। निकलने का कोई रास्ता ही नहीं बचा था। इतनी भीड़ में धक्के लगना स्वा​भाविक है लेकिन लोगों का सहनशील नहीं होना बेहतर चिंताजनक है।
ऐसा नहीं कि हमारे पास कुम्भ जैसे विशाल आयोजनों का अनुभव नहीं है। दु​निया के इस विशालतम मेले के लिए बेहतरी व्यवस्था कैसे की जाती है, इस पर अमेरिका के हावर्ड विश्वविद्यालय ने शोध भी किया है। प्रयागराज में कुम्भ मेले का सफल आयोजन किया गया। इसके ​लिए दिन-रात ड्यूटी पर मुस्तैद रहे 43,377 पुलिसकर्मी, पीएसी, अर्द्धसैनिक बल, होमगार्ड और पीआरडी के जवान। कोई हादसा नहीं हुआ। इस आयोजन की बड़ी सराहना हुई। वैष्णो देवी मंदिर में हादसा निश्चित रूप से तंत्र की लापरवाही है। पहले की ही तरह जांच समिति बैठा दी गई है। मुआवजा भी घोषित कर दिया गया है। कोई जांच और मुआवजा उन लोगों को वापिस नहीं ला सकता, जो हमेशा के लिए अपनों का साथ छोड़ गए। लोगों को भी अपनी सुरक्षा के लिए सतर्क होना चाहिए था। केन्द्र सरकार बार-बार चेतावनी दे रही है कि कोरोना के नए वैरियंट का प्रसार रोकने के लिए भीड़ वाली जगह पर मत जायें लेकिन लोग मानने को तैयार नहीं हैं। लेकिन भीड़ को रामभरोसे नहीं छोड़ा जा सकता तो फिर कोरोना काल में इतने लोगों को दर्शन की अनुमति कैसे दी गई, प्रशासन पर सवाल तो उठेंगे ही।
Advertisement
Next Article