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पंजाब के नगर निकाय चुनाव

पंजाब के स्थानीय निकाय चुनावों के बहुत ही रुचिकर परिणाम आये हैं।

10:30 AM Dec 23, 2024 IST | Aditya Chopra

पंजाब के स्थानीय निकाय चुनावों के बहुत ही रुचिकर परिणाम आये हैं।

पंजाब के नगर निकाय चुनाव

पंजाब के स्थानीय निकाय चुनावों के बहुत ही रुचिकर परिणाम आये हैं। राज्य की सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) ने जहां अपना दबदबा महापालिकाओं में बरकरार रखा है, वहीं प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने भी अपना दम-खम दिखाया है। राज्य में भारतीय जनता पार्टी हांशिये पर ही रही है मगर शहरी क्षेत्रों में इसने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है और अकाली दल की स्थिति भी एेसी ही रही है। पंजाब में कुल पांच शहरों अमृतसर, जालंधर, लुधियाना, पटियाला व फगवाड़ा में नगर निगम या महापालिकाएं हैं जबकि 44 नगर पालिका परिषद व नगर पंचायतें हैं। हालांकि स्थानीय निकाय चुनावों के लिए राजनीतिक पहचान जरूरी नहीं होती है मगर इस पहचान के साथ प्रत्याशियों द्वारा चुनाव लड़ने पर भी कोई प्रतिबन्ध नहीं होता है। इस नजरिये से देखा जाये तो आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन कमोबेश तरीके से अच्छा रहा है हालांकि कांग्रेस ने भी बेहतर परिणाम देने का प्रयास किया है।

स्थानीय निकाय चुनाव परिणामों से स्पष्ट है कि सत्तारूढ़ ‘आप’ पार्टी की शहरी क्षेत्रों में पकड़ कमजोर नहीं हुई है मगर कांग्रेस पार्टी भी उसका मुकाबला करने को तत्पर दिखाई पड़ती है। बेशक राष्ट्रीय स्तर पर ये दोनों पार्टियां विपक्षी गठबन्धन ‘इंडिया’ की सदस्य हैं मगर पंजाब में इन दोनों पार्टियों ने लोकसभा चुनाव भी एक-दूसरे के खिलाफ लड़े थे जिसमें कांग्रेस को अच्छी सफलता मिली थी। परन्तु आम आदमी पार्टी मूल रूप से शहरी मिजाज की पार्टी मानी जाती है जिसे देखते हुए पंजाब के शहरी क्षेत्रों में उसकी पकड़ का अन्दाजा इस हकीकत से लगाया जा सकता है कि पटियाला निगम चुनावों में उसने दिल्ली की भांति ‘झाड़ू’ लगा दी है। शहर की 60 सदस्यीय निगम के लिए कुल 45 वार्डों में चुनाव हुए थे जिनमें से आप ने 35 स्थान जीते। इससे पहले आठ वार्डों में निर्विरोध आप के प्रत्याशी चुन लिये गये थे और सात वार्डों का चुनाव किसी कारण से स्थगित कर देना पड़ा था।

इस प्रकार आम आदमी पार्टी को कुल 43 स्थान प्राप्त हुए जहां उसका महापौर चुना जाना निश्चित है। पटियाला इसलिए महत्वपूर्ण माना जा रहा था क्योंकि यह भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता कैप्टन अमरेन्दर सिंह की पूर्व रियासत का नगर है। उनकी सुपुत्री जय इन्दर कौर भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष हैं जिन्होंने निगम चुनावों में बहुत ही आक्रामक तरीके से प्रचार किया था परन्तु इसके बावजूद भाजपा को केवल चार सीटों पर ही सन्तोष करना पड़ा। जहां तक अमृतसर व फगवाड़ा का सवाल है तो इन दोनों शहरों की नगर निगमों पर कांग्रेस का मामूली बढ़त के साथ कब्जा हुआ माना जा रहा है। अमृतसर की 85 सदस्यीय निगम में कांग्रेस को 43 सीटें मिली हैं और कुछ स्थानों पर उसके स्थानीय सहयोगी दल भी जीते हैं। इसी प्रकार फगवाड़ा की नगर निगम में इसके 22 प्रत्याशी जीते हैं। यहां इसका समझौता बहुजन समाज पार्टी से था जिसे तीन सीटें मिली हैं।

मगर लुधियाना नगर निगम के चुनाव भी बहुत रोचक रहे। जिले के दो वार्डों से पार्टी के दो विधायकों की पत्नियां चुनाव लड़ रही थीं मगर उन्हें विजय हासिल नहीं हो सकी। हालांकि आप नगर निगम में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी है। लुधियाना की 95 सदस्यीय निगम में आप को 41 सीटें मिली हैं जबकि कांग्रेस को 30 पर सफलता मिली और भाजपा ने 19 स्थान जीते और शिरोमणि अकाली दल को मात्र दो सीटे ही मिल पाईं। इसी प्रकार जालंधर निगम चुनाव में आप पार्टी को 38 स्थान मिले और कांग्रेस को 25 पर विजय मिली तथा 19 पर भाजपा कामयाब रही।इन दोनों महानगरों में आप पार्टी सबसे बड़ी पार्टी तो बन कर उभरी मगर वह अपने बूते पर अपना महापौर चुनने से पीछे रह गईं। अतः इन दोनों निगमों में महापौर पद के लिए राजनैतिक दलों में उलझन हो सकती है। परन्तु स्थानीय निकाय चुनावों में दल-बदल कानून लागू नहीं होता है अतः महापौर का चुनाव बहुत रोचक हो सकता है। स्थानीय निकाय चुनावों का भारतीय संसदीय लोकतन्त्र में अपना विशिष्ट महत्व होता है।

इनका दलगत आधार पर चुनाव होना इसलिए जरूरी नहीं होता क्योंकि ये चुनाव आम नागरिकों की समस्याओं के समाधान के लिए होते हैं जिनमें पार्टीगत विचारधारा गौण रहती है और प्रत्याशी की अपनी योग्यता व ताकत महत्वपूर्ण होती है। इसके बावजूद यदि कोई उम्मीदवार अपनी पार्टी की पहचान के साथ चुनावों में जाता है तो वह अपनी पार्टी की लोकप्रियता के आधार पर ही उसके चुनाव निशान पर खड़ा होना पसन्द करता है। जिससे पार्टीगत पहचान प्रमुख हो जाती है। इस आधार पर यदि पंजाब के स्थानीय निकाय चुनावों का आंकलन किया जाये तो निश्चित रूप से आम आदमी पार्टी आगे लगती है मगर मुख्यमन्त्री के जिले संगरूर में हुए नगर पालिका चुनावों में निर्दलीय सबसे बड़ी संख्या में जीते हैं। इससे पंजाब की दलगत राजनीति का आंकलन हो सकता है। इसके साथ यह भी स्पष्ट है कि केन्द्र की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को अब शहरों में ही अपनी पैठ जमाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। जहां तक अकाली दल का सवाल है तो उसकी शहरी क्षेत्रों में पस्थिति शुरू से ही कमजोर मानी जाती रही है।

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Aditya Chopra

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