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वक्फ को लेकर बंटा मुस्लिम समाज !

दिल्ली के जंतर-मंतर पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड…

11:30 AM Mar 18, 2025 IST | Firoj Bakht Ahmed

दिल्ली के जंतर-मंतर पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड…

वक्फ को लेकर बंटा मुस्लिम समाज

हाल ही में दिल्ली के जंतर-मंतर पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिंद, असदुद्दीन ओवैसी, मुहम्मद अदीब, सांसद महिबुल्लाह और जिया-उर-बर्क व अन्य कई संस्थाओं ने पूर्ण भारत के मुसलमानों को आह्वान किया कि वे वक्फ बोर्ड को बचाने के लिए सड़कों पर उतरें और आवश्यकतानुसार कुर्बानी देने को तैयार रहें। यह सब देखकर एक बात तो पूर्ण रूप से समझ में आ जाती है कि एक साधारण मुस्लिम को इस बात का आभास ही नहीं है कि वक्फ बोर्ड क्या है, जिसको लेकर नाना प्रकार की भ्रांतियां हैं मुस्लिम संप्रदाय में। लखनऊ के एक मुस्लिम संगठन ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की भर्त्सना करते हुए कहा है कि इस बोर्ड का कोई वर्चस्व नहीं है, आम मुसलमानों के बीच में और इस बोर्ड ने सदा ही मुस्लिम संप्रदाय को अल्लाह मियां की गाय की भांति अपने स्वार्थों और अपना उल्लू साधने के लिए उनका दोहन किया है।

सरकार ने न्यायाधिकरणों के कामकाज का विश्लेषण किया है और पाया है कि न्यायाधिकरणों में 40,951 मामले लंबित हैं, जिनमें से 9942 मामले मुस्लिम समुदाय द्वारा वक्फ का प्रबंधन करने वाली संस्थाओं के खिलाफ दायर किए गए हैं। इसके अलावा, मामलों के निपटान में अत्यधिक देरी होती है और न्यायाधिकरण के निर्णयों पर न्यायिक निगरानी का कोई प्रावधान नहीं है। अल्पसंख्यक मंत्रालय को मुसलमानों और गैर-मुसलमानों से वक्फ भूमि पर जानबूझकर अतिक्रमण और वक्फ संपत्तियों के कुप्रबंधन जैसे मुद्दों पर बड़ी संख्या में शिकायतें और अभ्यावेदन प्राप्त हुए हैं। मंत्रालय ने प्राप्त शिकायतों की प्रकृति और मात्रा का विश्लेषण किया है और पाया है कि अप्रैल, 2023 से प्राप्त 148 शिकायतें ज्यादातर अतिक्रमण, वक्फ भूमि की अवैध बिक्री, सर्वेक्षण और पंजीकरण में देरी और वक्फ बोर्डों और मुतवल्लियों के खिलाफ शिकायतों से संबंधित हैं।

मंत्रालय ने अप्रैल, 2022 से मार्च, 2023 तक सीपीजीआरएएमएस (केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली) पर प्राप्त शिकायतों का भी विश्लेषण किया है और पाया है कि 566 शिकायतों में से 194 शिकायतें वक्फ भूमि पर अतिक्रमण और अवैध रूप से हस्तांतरण से संबंधित थीं और 93 शिकायतें वक्फ बोर्ड/मुतवल्लियों के अधिकारियों के खिलाफ थीं। पूर्ण भारत में वक्फ बोर्ड के अंतर्गत किए गए घपलों और अनियमितताओं की इतनी संख्या बढ़ गई थी कि सैकड़ों कोर्ट केस इसके विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में लंबित हैं। जब इनकी संख्या असहनीय हो गई और मुस्लिमों में हाहाकार मच गया तो सरकार ने हस्तक्षेप करने की सोची। वक्फ संशोधन अधिनियम 2024 का प्राथमिक उद्देश्य मुसलमान वक्फ अधिनियम, 1923 को निरस्त करना है जो औपनिवेशिक युग का कानून है जो आधुनिक भारत में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए पुराना और अपर्याप्त हो गया है।

निरसन का उद्देश्य वक्फ अधिनियम, 1995 के तहत वक्फ संपत्तियों के प्रशासन और प्रबंधन में एकरूपता, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना है, इस प्रकार इस निरर्थक कानून के निरंतर अस्तित्व के कारण होने वाली विसंगतियों और अस्पष्टताओं को समाप्त करना है। मुस्लिम तबके को जिस प्रकार से उसके स्वयंभू नेता वरगला रहे हैं, जिन में ओवैसी बंधु भी शामिल हैं और जिन्होंने स्वयं हजारों करोड़ की वक्फ संपत्ति कब्ज़ा रखी है, उससे सरकार की कुछ ऐसी छवि बनाई जा रही है कि वह वक्फ की साढ़े नौ करोड़ एकड़ ज़मीन डकारना चाह रही है, जबकि सच्चाई इसके बिल्कुल विपरीत है। वास्तव में सेना और रेलवे के बाद सबसे अधिक भूमि वक्फ बोर्ड के पास है। इसकी या किसी भी सरकार की मजाल नहीं कि वक्फ की 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत की संपत्ति की एक इंच जमीन भी कब्जाई जाए।

भारत में जब मुस्लिम सुलतानों और मुगलों का राज हुआ करता था तो कुरान के अनुसार इन बादशाहों, नवाबों और समृद्ध मुस्लिमों आदि ने समय-समय पर निर्धन मुसलमानों और बेवाओं के लिए धन संपत्ति अर्जित की है कि उनको हाथ न फैलाने पड़ें। यह एक सदाचारी गतिविधि थी, मगर इसके मुस्लिम जिम्मेदारों ने ही इसे खुर्द-बुर्द और बर्बाद किया। ऐसा सदियों से होता चला आया है। एक समय विधवा मुस्लिम महिलाओं को पचास रुपए का वजीफा (मासिक मदद) दिया जाता था, जो बंद का हो चुका है। वास्तव में वक्फ संगठन ने जब से किसी भी संपत्ति पर अपना अधिकार जमाना प्रारंभ किया तभी से उसके लिए समस्याएं उत्पन्न होने लगीं। तमिलनाडु के किसान राजगोपाल कर्ज चुकाने के लिए अपनी कृषि भूमि नहीं बेच पाए क्योंकि वक्फ बोर्ड ने उनके पूरे गांव थिरुचेंथुरई को अपनी संपत्ति बता दिया था।

अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) की इस आवश्यकता ने वित्तीय और भावनात्मक संकट पैदा कर दिया। गांव को ऐतिहासिक रूप से 1956 में नवाब अनवरदीन खान ने वक्फ के रूप में दान कर दिया था। दूसरे, आम अदालत में किसी भी वक्फ के मुक़दमे को चैलेंज नहीं किया जा सकता क्योंकि इसकी अपनी अलग ही अदालत है जिसे “वक्फ ट्रिब्यूनल” कहा जाता है और जिसके बूते इसके अधिकारी कहीं भी डोलते-फिरते हैं। इसके अतिरिक्त वक्फ के जिम्मेदारों ने जितना नुक्सान पहुंचाया है, किसी दूसरे ने नहीं। यदि यह सुव्यवस्थित ढंग से चलता तो न जाने कितने मुस्लिमों के बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर, आर्किटेक्ट आदि बन जाते, मगर समस्या यहां यह है कि वक्फ के रक्षक ही भक्षक बने हैं। मुस्लिम तबका न जाने कितना आगे पहुंच जाता, यदि ये मुसलमान ईमानदारी से अपना कर्त्तव्य निभाते।

ओवैसी एंड मदनी कंपनी तमाम क़ौम को यह कहकर भड़का रहे हैं कि सरकार उनकी मस्जिदें, मदरसे, क़ब्रिस्तान, खानकाहें व अन्य संपत्ति हड़प लेगी। न केवल ये लोग इस संप्रदाय को भड़का रहे हैं, ये लोग सरकार को धमका भी रहे हैं और रामलीला मैदान से कहा है कि उनके होते हुए वक्फ संशोधन बिल पास नहीं हो सकता। वक्फ के मामले में संपत्ति का स्वामित्व वक्फ से अल्लाह को हस्तांतरित हो जाता है, इसलिए एक बार जब कोई संपत्ति वक्फ हो जाती है, तो वह हमेशा वक्फ रहती है जिससे वह अपरिवर्तनीय हो जाती है। एक बार जब कोई संपत्ति वक्फ घोषित हो जाती है, तो वह हमेशा के लिए वक्फ ही रहती है।

उदाहरणों में बेंगलुरु ईदगाह मैदान शामिल है, जिसे 1850 के दशक से वक्फ संपत्ति के रूप में दावा किया जाता रहा है। इसी तरह, सूरत नगर निगम की इमारत, जिसे मुगल काल में हज के दौरान सराय के रूप में ऐतिहासिक उपयोग के कारण दावा किया गया था। इस संशोधन की वास्तव में नियत मुसलमान तबके को उसकी खोई और लुटी, पिटी जमीनों को कब्जों से निजात दिलाना और ग़रीबों व विधवाओं को उनका अधिकार दिलवाना है।

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Firoj Bakht Ahmed

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