मुसलमानों को न्यायालय का फैसला स्वीकार करना चाहिए : VHP
विश्व हिंदू परिषद् (विहिप) ने रविवार को कहा कि अयोध्या मामले में मुस्लिम समुदाय को उच्चतम न्यायालय का फैसला स्वीकार करना चाहिए और दावा किया कि महात्मा गांधी ने सोमनाथ मंदिर के मामले में इसी तरह की अपील की थी।
04:13 PM Nov 17, 2019 IST | Shera Rajput
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विश्व हिंदू परिषद् (विहिप) ने रविवार को कहा कि अयोध्या मामले में मुस्लिम समुदाय को उच्चतम न्यायालय का फैसला स्वीकार करना चाहिए और दावा किया कि महात्मा गांधी ने सोमनाथ मंदिर के मामले में इसी तरह की अपील की थी।
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विहिप के महामंत्री मिलिंद परांदे का बयान ऐसे वक्त में आया है जब ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने अयोध्या फैसले पर समीक्षा याचिका दायर करने की मांग का समर्थन किया है ।
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परांदे ने दावा किया, ‘‘महात्मा गांधी ने मुस्लिमों से इसी तरह की अपील करते हुए उन्हें सोमनाथ मंदिर (जिसे कई शताब्दी पहले ध्वस्त कर दिया गया था) के पुनर्निर्माण के लिए तत्कालीन केंद्र सरकार के फैसले को स्वीकार करने का अनुरोध किया था।’’
उन्होंने कहा, ‘‘गांधी ने कहा था कि मुस्लिमों को निर्णय स्वीकार करना चाहिए अन्यथा गलत संदेश जाएगा कि उनका लगाव मंदिर तोड़ने वालों के साथ है।’’
उन्होंने दावा किया कि गांधी ने अपने अखबार ‘‘हरिजन’’ में यह नजरिया व्यक्त किया था। विहिप नेता ने कहा, ‘‘रामजन्मभूमि पर अदालत का फैसला सर्वसम्मति से किया गया इसलिए मेरा मानना है कि पुनर्विचार याचिका की कोई जरूरत नहीं है।’’
परांदे ने कहा कि मंदिर के लिए आंदोलन करने वाले विहिप और अन्य संगठनों को अब इंतजार है कि केंद्र सरकार मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाए।
परांदे ने शहर में इलाज के लिए आने वाले गरीब कैंसर मरीजों के वास्ते विहिप द्वारा बनाए गए हॉस्टल का शुभारंभ करने के दौरान ये बातें कहीं ।
ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के सचिव जफरयाब जीलानी ने दिल्ली में कहा कि बोर्ड ने मस्जिद के बदले अयोध्या में पांच एकड़ जमीन लेने से भी साफ इनकार किया है।
उन्होंने बताया कि बोर्ड का कहना है कि मुसलमान मस्जिद की जमीन के बदले कोई और भूमि मंजूर नहीं कर सकते।
देश के प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने रविवार को कहा कि उनका संगठन अयोध्या मामले पर उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करेगा।
इस विषय पर संगठन की ओर से बनाए गए पांच सदस्यीय पैनल की कानून के विशेषज्ञों से विचार-विमर्श करने के बाद बनी राय के आधार पर यह निर्णय लिया गया।

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