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नायब सिंह का मास्टर स्ट्रोक

हरियाणा में नायब सिंह सैनी सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 20 प्रतिशत कोटे में उप-वर्गीयकरण लागू करके बाजी मार ली है

10:32 AM Nov 14, 2024 IST | Aditya Chopra

हरियाणा में नायब सिंह सैनी सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 20 प्रतिशत कोटे में उप-वर्गीयकरण लागू करके बाजी मार ली है

हरियाणा में नायब सिंह सैनी सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 20 प्रतिशत कोटे में उप-वर्गीयकरण लागू करके बाजी मार ली है। हरियाणा देश का ऐसा पहला राज्य बन गया है जिसने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को अपने यहां सबसे पहले लागू किया है। गत 18 अक्तूबर को नायब सिंह ​मंत्रिमंडल की पहली ही बैठक में एससी-एसटी वर्ग के ज्यादा जरूरतमंदों को आरक्षण का लाभ देने के लिए उप-वर्गीकरण पर मोहर लगा दी गई थी। कोटे में कोटा लागू होने से आरक्षण का लाभ उसी वर्ग के ज्यादा जरूरतमंद लोगों को मिल सकेगा जिन्हें वास्तव में इसकी अधिक जरूरत है। हरियाणा सरकार लगातार जनहित में फैसले ले रही है। आरक्षण से अब तक वंचित रही जातियों को आरक्षण का लाभ मिल जाए तो यह हरियाणा सरकार की बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। कोटे में कोटा की मांग 1960 में शुरू हुई थी। राज्य में अनुसूचित जातियों में आरक्षण का दो वर्गों में बंटवारा किया जाएगा। यह वर्ग वंचित अनुसूचित जाति और अन्य अनुसूचित जाति के होंगे। अनुसूचित जातियों के लिए 20 प्रतिशत कोटा तय है, इसमें से 10 प्रतिशत आरक्षण वंचित अनुसूचित जाति वर्ग में चिन्हित जातियों को मिलेगा जबकि शेष 10 फीसदी आरक्षण का लाभ अन्य अनुसूचित जातियों के लिए तय किया जाएगा। आरक्षण का मुद्दा देशभर में काफी उलझा हुआ है। एक वर्ग आरक्षण के पक्ष में है तो दूसरा इसके विरोध में है। आरक्षण ऐसा अमृत का प्याला बन चुका है जिसे हर कोई छू लेना चाहता है। आरक्षण के मसले पर राजनीति हमेशा से ही प्रभावित होती रही है। सभी बड़े दल आरक्षण के मसले पर उलझे पड़े हैं। सुप्रीम कोर्ट में लम्बे समय से नौकरियों में आरक्षण देने के लिए एससी-एसटी वर्ग को सब कैटेगरी में आरक्षण दिए जाने की मांग का मामला लम्बित चल रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने एक अगस्त को बड़ा फैसला सुनाते हुए 2004 में दिए गए अपने पुराने फैसले को पलट दिया।

संविधान पीठ ने 6-1 के बहुमत से फैसला दिया कि राज्यों को आरक्षण के लिए कोटा के भीतर कोटा बनाने का अधिकार है। यानी राज्य सरकारें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के लिए सब कैटेगरी बना सकती हैं ताकि सबसे जरूरतमंद को आरक्षण में प्राथमिकता मिल सके। राज्य विधानसभाएं इसे लेकर कानून बनाने में सक्षम होंगी। हालांकि, कोर्ट का यह भी कहना था कि सब कैटेगिरी का आधार उचित होना चाहिए। कोर्ट का कहना था कि ऐसा करना संविधान के आर्टिकल-341 के खिलाफ नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अनुसूचित जाति के भीतर किसी एक जाति को 100 प्रतिशत कोटा नहीं दिया जा सकता है। इसके अलावा, एससी में शामिल किसी जाति का कोटा तय करने से पहले उसकी हिस्सेदारी का पुख्ता डेटा होना चाहिए। यानी आरक्षण के मसले पर राज्य सरकारें सिर्फ जरूरतमंदों की मदद के लिए कानून बना सकती हैं ना कि राजनीतिक लाभ के लिए किसी तरह की मनमानी कर सकती हैं और ना भेदभावपूर्ण फैसला ले सकती हैं।

फैसले में एक महत्वपूर्ण बात यह सामने आई थी कि क्रीमी लेयर का ​िसद्धांत अनुसूचित जातियों पर भी उसी तरह लागू होता है जैसे यह ओबीसी पर लागू होता है। वर्तमान में वंचित अनुसूचित जातियों का सरकारी सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है, जबकि अन्य अनुसूचित जातियों का उनकी जनसंख्या के अनुपात की तुलना में अधिक प्रतिनिधित्व है। अनुसूचित जातियों के लिए बनाए गए आरक्षण में ग्रुप-ए, बी और सी में अन्य अनुसूचित जातियों को ज्यादा लाभ मिला है और ग्रुप-डी की सेवाओं में वंचित अनुसूचित जातियों को अधिक लाभ मिला है। इस असमानता को खत्म करने, सभी को समान अवसर सुनिश्चित करने और सार्वजनिक रोजगार में पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए उप-वर्गीकरण किया गया है। भर्ती में वंचित अनुसूचित जातियों और अन्य अनुसूचित जातियों के उम्मीदवारों की अंतर-वरिष्ठता भर्ती एजेंसी द्वारा तैयार की गई कामन मैरिट लिस्ट के अनुसार होगी। वर्तमान रोस्टर प्रणाली के भीतर प्रत्येक ब्लाक के लिए अलग-अलग रोस्टर अंक निर्धारित करने की आवश्यकता नहीं होगी।

हरियाणा सरकार के इस फैसले पर कुछ राजनीतिक दलों की तीखी प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई है। दलितों की राजनीति करने वाले दलों का कहना है कि कोटे में कोटा प्रणाली दलितों को बांटने की साजिश है। हरियाणा की नायब सिंह सैनी सरकार ने मास्टर स्ट्रोक चल दिया है लेकिन राज्य सरकार को यह काम बड़े ही ​िनष्पक्ष और ईमानदार ढंग से करना होगा। सामाजिक और आर्थिक आंकड़े इकट्ठे करके विभिन्न उप-वर्गों की स्थि​ित का विश्लेषण करना होगा। इसके लिए सर्वे, जनगणना आैर ​रिसर्च का सहारा लेना चाहिए। विभिन्न उप-वर्गों के लिए आरक्षण की जरूरत को समझने के​ लिए विशेषज्ञ कमेटियों का गठन भी ​किया जा सकता है। एक बार लाभार्थियों की सही ढंग से पहचान हो जाए तो उन्हें आरक्षण दिया जा सकता है लेकिन यह सारा काम पारदर्शिता के साथ होना चाहिए, ताकि अगर कोई कानूनी चुनौती आए तो भी सरकार कोर्ट में अपनी स्थिति को स्पष्ट कर सके।

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