JNU में बदला 'कुलपति' का नाम, जानें क्यों लिया गया ये फैसला?
राजस्थान के बाद जेएनयू ने किया नाम परिवर्तन
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ने ‘कुलपति’ के स्थान पर ‘कुलगुरु’ शब्द को अपनाने का निर्णय लिया है ताकि पद को लिंग-तटस्थ बनाया जा सके. यह कदम भारतीय परंपरा में गुरु की भूमिका को उजागर करता है और इसे विश्वविद्यालय की कार्य परिषद की बैठक में स्वीकृति मिली है.
JNU News: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) ने प्रशासनिक पदों में एक महत्वपूर्ण बदलाव किया गया है. दरअसल, अब ‘कुलपति’ के स्थान पर ‘कुलगुरु’ शब्द को अपनाने का फैसला लिया गया है. यह कदम कुलपति पद को लिंग-तटस्थ (जेंडर न्यूट्रल) बनाने की दिशा में उठाया गया है. यह जानकारी विश्वविद्यालय की कार्य परिषद (वर्किंग काउंसिल) की हालिया बैठक में दी गई.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस पहल का सुझाव जेएनयू की कुलपति शांतिश्री धुलीपुडी पंडित ने दिया था. उनके अनुसार, ‘कुलगुरु’ शब्द न केवल अधिक समावेशी है बल्कि यह भारतीय परंपरा में गुरु की भूमिका को भी उजागर करता है. अब विश्वविद्यालय की डिग्रियों और शैक्षणिक प्रमाणपत्रों पर ‘कुलपति’ के स्थान पर ‘कुलगुरु’ शब्द दर्ज किया जाएगा.
पहले राजस्थान ने लिया था ऐसा फैसला
इससे पहले राजस्थान सरकार ने भी इसी तरह का बदलाव किया था. मार्च 2025 में राजस्थान विधानसभा में पारित एक विधेयक के तहत राज्य के सभी विश्वविद्यालयों में ‘कुलपति’ और ‘प्रतिकुलपति’ के स्थान पर ‘कुलगुरु’ और ‘प्रतिकुलगुरु’ शब्दों को अपनाया गया. उपमुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा ने इसे गुरु की गरिमा को पुनः स्थापित करने का एक प्रयास बताया था.
मध्य प्रदेश ने भी किया था बदलाव
मध्य प्रदेश सरकार ने भी पिछले वर्ष जुलाई में एक प्रस्ताव पारित करते हुए विश्वविद्यालयों में ‘कुलपति’ के बजाय ‘कुलगुरु’ शब्द का उपयोग करने का निर्णय लिया था. इस निर्णय को राज्य की मंत्रिपरिषद से स्वीकृति प्राप्त हुई थी.
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भारतीय परंपरा और आधुनिकता का समन्वय
इन सभी बदलावों का उद्देश्य भारतीय प्राचीन शैक्षणिक परंपराओं के साथ तालमेल बिठाना और साथ ही प्रशासनिक पदों को लिंग-तटस्थ बनाना है. ‘कुलगुरु’ शब्द गुरु परंपरा की महत्ता को दर्शाता है, जो भारतीय शिक्षा प्रणाली का आधार रही है.