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नारायणी शिला, जहां तर्पण करने से पितरों को मिलती है मुक्ति

देशभर में पंचांग के अनुसार, आश्विन मास की अमावस्या तिथि रविवार, 25 सितंबर को दोपहर 03 बजकर 12 मिनट से प्रारंभ होगी और सोमवार, 26 सितंबर को दोपहर 03 बजकर 24 मिनट पर समाप्त होगी, ऐसे में सर्वपितृ अमावस्या 25 सितंबर को पूरे दिन मनाई जाएगी।

05:08 PM Sep 22, 2022 IST | Ujjwal Jain

देशभर में पंचांग के अनुसार, आश्विन मास की अमावस्या तिथि रविवार, 25 सितंबर को दोपहर 03 बजकर 12 मिनट से प्रारंभ होगी और सोमवार, 26 सितंबर को दोपहर 03 बजकर 24 मिनट पर समाप्त होगी, ऐसे में सर्वपितृ अमावस्या 25 सितंबर को पूरे दिन मनाई जाएगी।

नारायणी शिला  जहां तर्पण करने से पितरों को मिलती है मुक्ति
हरिद्वार, संजय चौहान (पंजाब केसरी)ः देशभर में पंचांग के अनुसार, आश्विन मास की अमावस्या तिथि रविवार, 25 सितंबर को दोपहर 03 बजकर 12 मिनट से प्रारंभ होगी और सोमवार, 26 सितंबर को दोपहर 03 बजकर 24 मिनट पर समाप्त होगी, ऐसे में सर्वपितृ अमावस्या 25 सितंबर को पूरे दिन मनाई जाएगी। इसी क्रम में पितरों की मुक्ति का प्रमुख स्थान नारायणी शिला में पितृ पक्ष के दौरान देश के कोने-कोने से हर रोज हजारों लोग अपने पितरों की शांति के लिए श्राद्ध , तर्पण और नारायणबलि करने पहुंचते हैं। पौराणिक मान्यता है कि हरिद्वार स्थित नारायणी शिला मंदिर पर तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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पितृ पक्ष में की जाने वाली पूजा के लिए बिहार के गया मंदिर के बाद हरिद्वार के नारायणी शिला मंदिर का विशेष स्थान है। इसके बाद अंतिम श्राद्ध व तर्पण बदरीनाथ स्थित ब्रह्म कपाली में करने का विधान है, जहां पिण्डदान करने से ब्रह्म हत्या का पाप भी दूर हो जाता है। पितृ दोष से पीडि़त लोग यहां पहुंचकर अपने पितरों के लिए दान और जप करते हैं।
मान्यता है कि जिनकी अकाल मृत्यु हो जाती है और वह प्रेत-आत्मा बनकर अगर बार-बार किसी को परेशान करते हैं तो उनके वंशज उनके नाम से यहां पर नारायण बलि करते हैं। साथ ही कई लोग अपने पितरों के आत्मा की शांति के लिए यहां पर एक जगह लेकर उनका छोटा सा टीला बनाकर आवास स्थापित भी करते हैं, जिससे उनको प्रेत योनि से मुक्ति मिल जाती है। यहां मंदिर के आसपास के हजारों छोटे-बड़े घरनुमा बनाए गए टीले हैं।
नारायण शिला मंदिर के महंत पंडित मनोज कुमार त्रिपाठी बताते हैं कि स्कंद पुराण के अनुसार, नारद जी की प्रेरणा पाकर एक बार गयासुर नामक राक्षस भगवान नारायण से मिलने बद्रीधाम पहुंचे, लेकिन धाम का द्वार बंद मिला। इस पर गयासुर वहां रखे भगवान नारायण के कमलासन रूपी श्री विग्रह को उठाकर ले जाने लगा। इसी दौरान गयासुर ने श्रीनारायण को युद्ध के लिए ललकारा।
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श्रीनारायण ने गदा से प्रहार किया तो गयासुर ने कमलासन आगे कर दिया। इससे कमलासन का एक भाग टूटकर वहीं गिरा, जिसे आज बद्रीधाम में ब्रह्म कपाल के नाम से जाना जाता है। इसका मध्य भाग टूटकर हरिद्वार व तीसरा भाग गया में गिरा। इससे यह तीनों स्थल पवित्र माने गए हैं। श्रीनारायण ने कहा था कि जो भी जीव मुक्ति इच्छा के लिए इन तीनों स्थानों पर तर्पण करेगा, उसे मुक्ति मिल जाएगी। वैसे तो प्रत्येक दिन यहां पितरों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण व नारायण बलि कराने के लिए लोगों की भीड़ रहती है, किन्तु प्रत्येक अमावस्या और पितृ पक्ष में विशेष भीड़ रहती है। पितृ अमावस्या पर तो कर्मकाण्ड कराने वालों के लिए भारी भीड़ रहती हैं। यहां मंदिर में भगवान नारायण की शिला के दर्शन करने मात्र से ही पितरों को सद्गति प्राप्त होती है। नारायणी शिला के बराबर में ही प्रेतशिला हैं। यहां पूजा करने से प्रेत योनि प्राप्त किए पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति मिलने के साथ सद्गति की प्राप्ति होती है।
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