‘एनडीए’ का घोषणा पत्र
बिहार विधानसभा चुनावों के प्रथम चरण के मतदान में अब चार दिन का ही समय शेष रह गया है और राजनैतिक दलों ने अपने घोषणा पत्रों को जारी कर दिया है। श्री तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले विपक्षी महा-गठबन्धन ने चार दिन पहले ही ‘तेजस्वी प्रण’ के रूप में अपने घोषणा पत्र को प्रकाशित किया था। बीते कल को सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन या एनडीए ने भी अपने घोषणा पत्र को ‘संकल्प पत्र’ के रूप में जारी किया। एनडीए का घोषणा पत्र आनन-फानन में कल पटना में जारी हुआ। लोकतन्त्र में घोषणा पत्र का बहुत महत्व होता है क्योंकि इसमें नीतिगत एेलान होते हैं। गौर से देखा जाये तो पिछले डेढ़ दशक से इन घोषणा पत्रों का कलेवर बदल रहा है और नीतियों के स्थान पर कार्यक्रम या लोक-लुभावन वादे ज्यादा जगह ले रहे हैं। राजनैतिक दल इनमें ‘आसमान से तारे तोड़कर’ जमीन पर उतारने की घोषणाएं कर रहे हैं। लोकतन्त्र का वैसे यह सिद्धान्त होता है कि इसमें नागरिकों को जो कुछ भी मिलता है वह उनके अधिकार के रूप में कानूनी तौर पर मिलता है। मगर पिछले डेढ़ दशक से मतदाताओं को रिझाने के लिए राजनैतिक दल एेसे नकद वादे ज्यादा करते दिखाई दे रहे हैं जिन्हें ‘रेवड़ी’ कहा जाता है। उत्तर भारत में इसकी शुरूआत राजधानी दिल्ली से आम आदमी पार्टी ने की थी। बेशक दक्षिण भारत में यह बीमारी बहुत पहले से ही थी मगर उत्तर भारत में इस बीमारी ने धीरे-धीरे अन्य राजनैतिक दलों को भी जकड़ लिया। इसके विस्तार में जाने का आज सही समय नहीं है।
सैद्धान्तिक रूप से इतना ही कहा जा सकता है कि रेवड़ी बांटने की बीमारी नागरिक को अनुत्पादक बनाती है और उसके पुरुषार्थ पर विपरीत प्रभाव डालती है। भारत के गांवों में यह कहावत आज भी प्रचिलित है कि ‘माले-मुफ्त , दिले- बेरहम’। कोई भी देश तभी तरक्की कर सकता है जब इसकी अर्थव्यवस्था में प्रत्येक नागरिक की उसकी काबलियत के अनुसार सक्रिय भागीदारी हो। लोकतन्त्र इस सूरत में ही लोक कल्याणकारी राज की तरफ बढ़ता है। मगर राजनैतिक दलों ने इस सिद्धान्त के विपरीत जो रुख अपना रखा है उससे नागरिकों में अकर्मण्यता का भाव ही जगता है। बेशक लोक कल्याणकारी राज में इस बात का दायित्व राजनैतिक दलों पर ही होता है कि सत्ता मिलने पर वे समाज के गरीब तबके के लोगों को उत्पादक बनाने हेतु उन्हें आर्थिक मदद दें। मगर यह मदद खैरात के रूप में न होकर गरीबों को अधिकार के रूप में मिले। इस मामले में एनडीए के घोषणा पत्र में कुछ ठोस कार्यक्रम पेश किये गये हैं। गरीब वर्ग की महिलाओं को अपना रोजगार शुरू करने के लिए उधार रूप में दो लाख रु. की किश्तों में मदद का वादा इसका उदाहरण है जबकि विपक्षी गठबन्धन का प्रत्येक बिहारी परिवार को एक सरकारी नौकरी देने का वादा भी इसी तरफ कदम माना जा सकता है। बिहार में कुल दो करोड़ 76 लाख परिवार हैं जिनमें से 25 लाख के लगभग परिवारों के पास पहले से ही नौकरियां हैं। तेजस्वी के घोषणा पत्र के बारे में मैं चार दिन पहले ही लिख चुका हूं अतः एनडीए के जारी घोषणा पत्र की मीमांसा इसी रोशनी में की जानी चाहिए। एनडीए ने भी एक करोड़ नौकरी देने का वादा किया है। बिहार में इसकी कमान मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार के हाथ में है क्योंकि उनके ही नेतृत्व में चुनाव लड़ा जा रहा है। घोषणा पत्र में कहा गया है कि बिहार में कम से कम एक करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाया जायेगा। बिहार में अति पिछड़े वर्ग की जनसंख्या 36 प्रतिशत के करीब है। अतः इस वर्ग के लोगों को अधिकाधिक व्यवसायी बनाने के लिए सरकार दस लाख रुपये तक का ऋण प्रदान करेगी। एनडीए वादा कर रहा है कि बिहार के हर गरीब परिवार के बच्चे को मुफ्त शिक्षा प्राथमिक स्कूल से लेकर स्नातकोत्तर की पढ़ाई तक के लिए मुहैया कराई जायेगी। इसके साथ ही हर दलित छात्र को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए दो हजार रु. मासिक की छात्रवृत्ति प्रदान की जायेगी।
एनडीए वादा कर रहा है कि किसानों की आर्थिक आय बढ़ाने की गरज से वह प्रत्येक छोटे किसान को तीन हजार रु. वार्षिक की मदद करेगा जो केवल तीन वर्षों के लिए होगी। यह मदद कर्पूरी ठाकुर किसान सम्मान नििध के छाते तले दी जायेगी। प्रत्येक गरीब परिवार को 125 यूनिट बिजली मुफ्त दी जायेगी और पांच लाख रुपए तक की चिकित्सा सुविधा हर परिवार के लिए उपलब्ध रहेगी। आटो रिक्शा व टैक्सी ड्राइवरों का चार लाख तक का बीमा कराया जायेगा। एनडीए वादा कर रहा है कि नये पटना शहर के साथ ही अन्य उपनगरों को भी ग्रीन फील्ड सिटी का दर्जा दिया जायेगा। बिहार में सात एक्सप्रेस हाईवे बनाये जाएंगे और 3600 कि.मी. लम्बे रेल मार्ग का आधुनिकीकरण किया जायेगा। निश्चित रूप से यह नीतिगत घोषणा है। इसके अलावा बिहार में चार अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे विकसित किये जायेंगे जो पटना, दरभंगा, पूर्णिया व भागलपुर होंगे।
नीतीश सरकार वादा कर रही है कि बिहार के हर जिले में एक उत्पादन इकाई या कारखाना लगाया जाएगा और साथ ही दस नये औद्योगिक पार्कों को विकसित किया जायेगा। नीतीश कुमार की सरकार यह भी वादा कर रही है कि वह राज्य में 50 लाख करोड़ रु. का नया निवेश लायेगी। बिहार के मिथिलांचल में एक नया आध्यात्मिक नगर सीतापुरम विकसित किया जायेगा। बिहार में जैन व बौद्ध धर्म से जुड़े स्थलों की भरमार है अतः इन्हें आपस में जोड़ने व धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए इनके कारीडोर बनाये जायेंगे। इसके अलावा गंगा व रामायण सर्किट भी विकसित किये जायेंगे। मोटे तौर पर हम कह सकते हैं कि एनडीए बिहार को विशिष्ट बनाने के वादे कर रहा है। मगर बिहार एक गरीब राज्य है जिसका कुछ वार्षिक बजट तीन लाख करोड़ रु. से कुछ ऊपर का है। अतः सरकार को अतिरिक्त राजस्व जुटाने के उपाय भी करने होंगे। एनडीए वादा कर रहा है कि राज्य में एक फिल्म सिटी का भी निर्माण किया जायेगा। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए एक लाख होम स्टेज बनाये जायेंगे जिन्हें सरकार जोखिम रहित ऋण प्रदान करेगी। कुल मिलाकर एनडीए ने अपने घोषणा पत्र को तेजस्वी प्रण से बेहतर बनाने का प्रयास किया है। मगर यह नहीं बताया कि पिछले पांच साल में उसने पुराने घोषणा पत्र के कितने वादे पूरे किये।