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षड्यंत्रों का शिकार बन गया है नेपाल

05:45 AM Sep 16, 2025 IST | विजय दर्डा

चौबीस साल से भी ज्यादा हो गए लेकिन आज तक उस षड्यंत्र का राज दफन है कि नेपाल के राजकुमार दीपेंद्र ने अपने पिता राजा बीरेंद्र और अपनी मां रानी ऐश्वर्या सहित राज परिवार के नौ लोगों को मौत के घाट क्यों उतार दिया? उसने खुद को भी गोली मार ली थी इसलिए हत्याकांड का रहस्य कभी सुलझ नहीं पाया। नेपाल के ताजा खून-खराबे के बारे में भी शायद ही कभी पता चल पाए कि युवाओं के वाजिब आक्रोश की आग में राजनीति की रोटी किसने सेंक ली। इन दोनों घटनाक्रमों का एक-दूसरे से कोई संबंध नहीं है लेकिन मैंने चर्चा इसलिए की, क्योंकि स्वर्ग जैसी घाटी और भोले-भाले लेकिन बहादुर लोगों की मातृभूमि नेपाल बड़ी शक्तियों के षड्यंत्रों का शिकार बन गया है। यह बात तो समझ में आती है कि युवा इस बात से नाराज हुए कि केपी शर्मा ओली की सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बंदिश लगा दी, पहले दिन का प्रदर्शन इसी का नतीजा था लेकिन दूसरे दिन के प्रदर्शन में हथियारों से लैस जो लोग शामिल हुए और जिस तरह से उन्होंने संसद, 112 साल पुराने दरबार हॉल, राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री निवास और सर्वोच्च न्यायालय भवन में आग लगाई, वह बिल्कुल ही अप्रत्याशित था। तो क्या युवाओं की भीड़ में भाड़े के अपराधी घुस आए थे? लगता तो यही है लेकिन बगैर प्रमाण के किसी का नाम लेना वाजिब नहीं है, शायद वही शक्तियां जिन्होंने एकमात्र हिंदू राष्ट्र के राजपरिवार में कत्लेआम मचा दिया था। ऐसी शक्तियों को तख्तापलट में महारत हासिल है।

नेपाल में 239 साल की राजशाही जब समाप्त हुई और लोकतंत्र की बयार बही तो उम्मीदों की नई किरण पैदा हुई कि नेपाल के गरीबों के दिन बदलेंगे, वहां जीवन बहुत कठिन है। हर साल चार लाख युवा पलायन कर जाते हैं। वे जो पैसा अपने देश भेजते हैं, नेपाल की जीडीपी का वह 25 फीसदी होता है। कम से कम 50 लाख नेपाली लोग दुनिया के देशों में फैले हुए हैं। इस आंकड़े में भारत में काम करने वाले नेपालियों का आंकड़ा शामिल नहीं है क्योंकि भारत और नेपाल के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता है। दोनों देशों ने कभी भी एक-दूसरे में भेद नहीं किया। भारत ने नेपाल में लोकतंत्र का स्वागत किया लेकिन वास्तविकता यह थी कि माओवाद के कंधे पर सवार होकर चीन ने उस लोकतंत्र का अपहरण कर लिया। प्रधानमंत्री की कुर्सी केपी शर्मा ओली, पुष्प कमल दहल प्रचंड और शेर बहादुर देउबा के बीच म्यूजिकल रेस बन कर रह गई। इस बीच ओली को खूबसूरत चीनी राजदूत हाओ यांकी ने रिझा लिया। ओली और अन्य नेताओं की संपत्तियां बढ़ती चली गईं। वे शान-ओ-शौकत में जी रहे थे। उनके बच्चों का वैभव सोशल मीडिया पर छाने लगा। नेपाल की कुल आबादी में 50 प्रतिशत युवा 25 वर्ष से कम उम्र के हैं, जिनका भड़कना लाजिमी था। एप पर प्रतिबंध ने कैटेलिस्ट का काम किया। खेल खेलने वालों को मौका मिल गया, वही खेल जो उन शक्तियों ने अपने खुफिया तंत्र के माध्यम से श्रीलंका और बंगलादेश में खेला यानी तख्तापलट।

बंगलादेश में तख्तापलट के कारण भारत को भारी खामियाजा भुगतना पड़ा है। जिस बंगलादेश से हमारे रिश्ते बेहद-बेहद अच्छे थे, वही पाकिस्तान की गोद में जाकर बैठ गया है और ये दोनों ही अमेरिका की गोद में हैं। मेरे जेहन को बार-बार यह सवाल कुरेदता है कि हमारी खुफिया एजेंसियों से चूक क्यों हो रही है? कारगिल से लेकर पहलगाम तक एक के बाद एक इतनी चूक हो चुकी है कि आश्चर्य होता है। बंगलादेश में पक रही खिचड़ी के बारे में हमें पहले क्यों भनक नहीं लगी? खुफिया एजेंसियों का काम होता है षड्यंत्रों पर नजर रखना और अपने देश के हितों के अनुरूप एजेंडा तय करना। नेपाल में चीन सीधे तौर पर सत्ता को निर्देशित कर रहा था। ओली के मुंह में शब्द डाल कर कहलवा रहा था कि श्रीराम भारत में नहीं बल्कि नेपाल में पैदा हुए, यह भी कहलवा रहा था कि लिपुलेख उसका है। नेपाल के मानचित्र में भारत के हिस्से छप रहे थे, मधेसी आंदोलन के समय चीन यह भ्रम फैला रहा था कि भारत ने हमेशा नेपाल को दबा कर रखा है। सवाल है कि हम उस समय क्या कर रहे थे? उससे पहले भी चीन ने दार्जिलिंग वाले हिस्से में गोरखालैंड की मांग को हवा दी थी। खुफिया एजेंसियों से हुई चूक की लंबी फेहरिस्त है। क्या हमारी एजेंसियों ने पिछले साल काठमांडौ के मेयर बालेंद्र शाह और अमेरिकी राजदूत के बीच मुलाकात का विश्लेषण किया? वही बालेंद्र अब युवाओं के चहेते बने हैं।

क्या हमने कभी इस बात पर गौर करने की कोशिश की कि नेपाल में लोकतंत्र आने के बाद ईसाइयत और इस्लाम का अप्रत्याशित विकास हुआ है। जो देश सदियों से हिंदू राष्ट्र था, वहां इतनी तेजी से धर्मांतरण कैसे हुआ? ओली को झप्पी देने वाली चीनी राजदूत यांकी पहले पाकिस्तान की राजदूत थी और नेपाल में वह पाकिस्तान का भी गेम खेल रही थी। आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि भारत-नेपाल सीमा पर 2018 में कुल 760 मस्जिदें हुआ करती थीं जिनकी संख्या अब 1000 पार हो चुकी है। मदरसों की संख्या 508 से बढ़कर 645 से ज्यादा हो गई है और इसका निर्माण तुर्की के पैसों से हुआ है। इस छोटे से देश में करीब 8 हजार चर्च हैं, मैं मस्जिद और चर्च के निर्माण के खिलाफ कतई नहीं हूं लेकिन इस पर सवाल तो करना पड़ेगा क्योंकि ये हमारी सीमा पर हैं और उन्हें नेपाल ने नहीं, दूसरे देशों ने बनाया है।

हमारे भारत के लिए वाकई यह चिंता का विषय है कि हमारे पड़ोस में आग लगाई जा रही है ताकि उसकी आग हमें भी झुलसाए। नेपाल के युवाओं को हमें भरोसा दिलाना होगा कि नेपाल की संप्रभुता का पूरी तरह सम्मान करते हुए हम तन, मन और धन से उनके साथ खड़े हैं। अब जब नेपाल के सर्वोच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश रह चुकी सुशीला कार्की वहां की अंतरिम प्रधानमंत्री बन चुकी हैं और अंतरिम सरकार के गठन की कवायद हो रही है, मैं उम्मीद कर रहा हूं कि नेपाल में जल्दी शांति लौटे और वह तरक्की की राह पर तेजी से आगे बढ़े।

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